अभी वह सोच ही रहा था कि दरवाजे पर हलकी सी दस्तक हुई जिस से उस की तंद्रा भंग हुई. कौन हो सकता है इस समय? उस ने जल्दी से स्टूल किनारे किया और शर्ट पहन कर दरवाजा खोला तो एकदम जड़ सा हो गया.
‘‘तुम…रंजना…तुम यहां,’’ बस, आगे के शब्द जैसे पिघल कर बह गए.
‘‘क्यों? क्या मैं नहीं आ सकती यहां?’’ रंजना हंसती हुई बोली.
‘‘नहीं, मैं ने ऐसा तो नहीं कहा, पर तुम…’’ वह कहना कुछ और ही चाह रहा था, पर जबान ने उस का साथ न दिया.
‘‘अंदर आ जाऊं कि यहीं खड़ी रहूं,’’ रंजना बोली.
वह एकदम से शर्मिंदा हो कर दरवाजे से हट गया.
रंजना कमरे के अंदर आई और दीवार से लगी फोल्ंिडग कुरसी खोल कर बैठ गई.
‘‘अब तुम भी बैठोगे कि वहीं खड़े रहोगे. यह आज तुम्हें क्या हो रहा है. अरे, तुम्हारे चेहरे पर तो हवाइयां उड़ रही हैं. क्या कहीं भागने की योजना बना रहे थे और मैं पहुंच गई?’’ रंजना ने अपनी स्वाभाविक हंसी के साथ यह प्रश्न उछाल दिया.
अभिषेक के माथे पर यह सोच कर पसीना आ गया कि रंजना कैसे जान लेती है उस की हर बात. पर अपने को संयत रखने की भरपूर कोशिश करते हुए वह बोला, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं बिलकुल ठीक हूं. अच्छा, छोड़ो ये सब बातें, यह बताओ, तुम यहां कैसे?’’
‘‘अब कैसे क्या मतलब, जनाब से कल से मुलाकात नहीं हुई थी सो बंदी खुद हाजिर हो गई,’’ रंजना शरारत भरे अंदाज में बोली, ‘‘क्या बात है…कल मिलने क्यों नहीं आए?’’
‘‘कुछ नहीं, बस ऐसे ही, मूड ही नहीं बना,’’ अभिषेक बोला.
‘‘अच्छा, अब मुझ से मिलने के लिए मूड की जरूरत पड़ती है,’’ रंजना उसी अंदाज में बोली.
अभिषेक खामोश हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या बात करे.
‘‘क्या बात है, मुझे बताओ?’’
‘‘नहीं, कुछ नहीं, बात क्या हो सकती है, कुछ तो नहीं हुआ…पर…’’ आगे अभिषेक बोलताबोलता रुक गया.
‘‘पर क्या?’’ रंजना एकदम पास आ कर बोली, ‘‘मुझे बताओ तो सही.’’
‘‘पता नहीं क्यों मुझे कल से कैसाकैसा लग रहा है. घर से खत आया है. बस, उसी को पढ़ कर जाने क्याक्या मैं सोचने लगा.’’
‘‘क्या लिखा है पत्र में?’’ रंजना ने पूछा.
‘‘तुम खुद ही पढ़ लो. वहां दराज में रखा है.’’
रंजना पत्र पढ़ कर बोली, ‘‘ऐसा क्या लिखा है इस में. सही तो है. वास्तव में अभि, अब तुम्हें कुछ न कुछ करना चाहिए.’’
‘‘मैं क्या करूं, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा. तुम तो देख ही रही हो कि कोई भी नौकरी नहीं मिल रही है.’’
‘‘अभी तक नहीं मिली है तो आगे मिल जाएगी, तुम इतने काबिल और समझदार हो,’’ रंजना उस का साहस बढ़ाती हुई बोली.
‘‘नहीं, रंजना. कुछ भी नहीं होने वाला. मैं सोचता हूं कि घर चला जाऊं, और वहीं खेतीबाड़ी शुरू करूं. कुछ घर में अपना सहयोग दूं. आखिर मेरी भी कुछ जिम्मेदारियां हैं. हां, एक बात और…’’ इतना कहतेकहते उस के होंठ थरथरा उठे.
‘‘क्यों, रुक क्यों गए. कहो न और अब…क्या?’’ रंजना उस की आंखों में झांकती हुई बोली.
‘‘नहीं, कुछ नहीं.’’
‘‘नहीं, कुछ तो जरूर है?’’ रंजना उसी तरह आंखों में झांकती हुई बोली.
‘‘तुम तो बेकार में पीछे ही पड़ जाती हो,’’ अभिषेक थोड़ा परेशान हो कर बोला.
‘‘पहले कभी तुम इस तरह मुझ से व्यवहार नहीं करते थे, अभिषेक. आखिर क्या बात है, कुछ मैं ने गलती की है? कुछ पता तो चले,’’ रंजना एक सांस में बोलती चली गई.
‘‘देखो रंजना, मैं…अब तुम्हें कैसे समझाऊं कि इसी में तुम्हारी बेहतरी है.’’
‘‘अरे, किस में मेरी बेहतरी है?’’ रंजना लगभग चीखती हुई बोली.
‘‘तुम और मैं अब न ही मिलें तो अच्छा है.’’
रंजना आश्चर्यमिश्रित गुस्से के स्वर में बोली, ‘‘मेरी बेहतरी इस में है कि मैं अब तुम से न मिलूं. तुम से…’’
‘‘हां, रंजना,’’ अभिषेक उसे समझाते हुए बोला, ‘‘मैं अब तुम्हें क्या दे सकता हूं. मेरे पास कुछ नहीं है. रंजना, मैं तुम से बेहद प्यार करता हूं और कभी तुम्हें उदास या परेशान नहीं देख सकता और मेरे पास कुछ भी नहीं है जिस से मैं तुम्हें सुख दे पाऊं.’’
‘‘वाह…क्या बात है…तुम मुझ से बेहद प्यार करते हो इसलिए मुझे छोड़ने की बात कह रहे हो. यह बात कुछ समझ में नहीं आई और रही बात यह कि तुम्हारे पास कुछ नहीं है, तो सुनो, तुम्हारे पास तुम खुद हो और तुम से बढ़ कर खुशी देने वाली चीज कोई दूसरी नहीं हो सकती मेरे लिए,’’ आखिरी शब्द बोलतेबोलते रंजना की आंखें भर आईं और गला रुंध गया.
‘‘नहीं, मैं कुछ नहीं दे सकता तुम्हें. तुम मुझ से न ही मिलो तो अच्छा है. तुम्हारे पापा किसी अच्छे घर में तुम्हारी शादी कर देंगे, जहां तुम्हें देने को ऐशोआराम की सारी चीजें होंगी. खुद सोचो, भविष्य के लिए ये सब बेहतर है कि मैं…सोच कर देखो,’’ अभिषेक एक प्रवाह में बोलता चला गया.
‘‘तुम जानते हो कि तुम क्या कह रहे हो?’’
‘‘हां, मैं जानता हूं कि मैं क्या कह रहा हूं.’’
‘‘नहीं, तुम नहीं जानते कि तुम क्या कह रहे हो. तुम मुझ से मर जाने को कह रहे हो,’’ रंजना रुंधे स्वर में बोली.
‘‘यह कैसी बात कह रही हो, मैं और तुम्हें…’’
‘‘हां, तुम अच्छी तरह जानते हो अभि,’’ वह जैसे फूट पड़ी, ‘‘मैं तुम्हारे बिना कुछ सोच भी नहीं सकती कि तुम इतने कमजोर भी हो सकते हो. पर इतना सुन लो, अगर तुम समझते हो कि मैं तुम से इस तरह अलग हो सकती हूं तो तुम गलत सोचते हो. मैं तुम्हारी तरह कमजोर नहीं हूं. मैं उम्र भर इंतजार कर सकती हूं. तुम्हें ही प्यार करती रहूंगी उम्र भर…और सुनो, तुम्हारी जगह कोई दूसरा मेरी जिंदगी में नहीं आ सकता…’’ यह कह कर रंजना उठ खड़ी हुई.
‘‘प्लीज, मेरी बात समझने की कोशिश करो. जिंदगी उतनी आसान नहीं है जितनी दिखाई पड़ती है. तुम्हें क्या हासिल होगा मुझ से. मेरी परेशानियों में घुट जाओगी और फिर तुम्हें उदास देख कर क्या मैं भी खुश रह पाऊंगा, बोलो?’’ अभिषेक उस का हाथ पकड़ते हुए विवशता के स्वर में बोला.
‘‘तुम्हारे साथ अगर मुझे घुटघुट कर भी जीना पड़ा तो विश्वास मानो मैं इस के लिए कभी उफ तक नहीं करूंगी. अच्छा, एक बात का जवाब दो,’’ रंजना फैसले के स्वर में बोली, ‘‘क्या तुम मुझे खुद अपनेआप को दे पाओगे? सोच कर बताना,’’ इतना कह कर वह चली गई.
उसे लगा कि वह सवाल ही नहीं छोड़ गई बल्कि उस के षड्यंत्रकारी दिमाग की पीठ पर कोड़े बरसा कर चली गई. उस ने कान को छू कर देखा, मिट्टी नहीं लगी हुई थी. उस ने जैसे खुद अपनेआप को ही झटका दिया और वह सारा बोझ उतार दिया जो समय उस पर धीरेधीरे रखता चला गया था.
उस ने अपने हाथ को छू कर देखा, वे ठंडे नहीं थे. उस ने अपनी बांह उठाई और अपनी उलझनों के जाले को साफ करने लगा. उस के पैर जीवंत हो उठे और तेज कदमों से कमरे के बाहर निकल कर उस ने एक ठंडी भरपूर सांस भरी और चल पड़ा वह लड़ाई लड़ने जो उसे जीतनी ही थी. तभी दिमाग में आया, ‘अभि, आखिर कब तक तू हारता रहेगा?’