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तपा देने वाली गरमी में शौपिंग बैग संभाले एकएक पग रखना दूभर हो गया मधु के लिए. गलती कर बैठी जो घर से छाता साथ नहीं लिया. पल्लू से उस ने माथे का पसीना पोंछा. शौपिंग बैग का वजन ज्यादा नहीं था, मगर जून की चिलचिलाती धूप कहर ढा रही थी. औटो स्टैंड थोड़ी दूर ही था. वहां से औटो मिलने की आस में उस ने दोचार कदम आगे बढ़ाए ही थे कि सिर तेजी से घूमने लगा. अब गिरी तब गिरी की हालत में उस का हाथ बिजली के खंबे से जा टकराया और उस का सहारा लेने की कोशिश में संतुलन बिगड़ा और वह सड़क पर गिर पड़ी. शौपिंग बैग हाथ से छूट कर एक तरफ लुढ़क गया.

कुछ लोगों की भीड़ ने उसे घेर लिया.

‘‘पता नहीं कैसे गिर गई? शायद चक्कर आ गया हो.’’

‘‘इन को अस्पताल ले कर चलो, बेहोश है बेचारी.’’

‘‘अरे, कोई जानता है क्या, कहां रहती हैं.’’

अर्धमूर्च्छित हालत में पड़ी मधु को देख कर लोग अटकलें लगाए जा रहे थे. मगर अस्पताल या घर तक पहुंचाने की जिम्मेदारी कोई लेना नहीं चाहता था. तभी वहां से गुजरती एक सफेद गाड़ी सड़क के किनारे आ कर रुक गई. एक लंबाचौड़ा आदमी उस गाड़ी से उतरा और लोगों का मजमा लगा देख भीड़ को चीरता आगे आया. मधु की हालत देख कर उस ने तुरंत गाड़ी के ड्राइवर की मदद से उसे उठा कर गाड़ी में बिठा लिया.

‘‘यहां पास में कोई हौस्पिटल है क्या?’’ उस आदमी ने भीड़ की तरफ मुखातिब हो कर पूछा.

‘‘जी सर, यहीं, अगले चौक से दाहिने मुड़ कर एक नर्सिंगहोम है.’’

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