आजलगभग 16 साल बाद श्वेता ने सलोनी की तसवीर फेसबुक पर देखी और श्वेता फिर से छलांग लगा कर कालेज वाली छुईमुई उमराव जान बन गई. अदअसल 2 दशक पहले श्वेता और सलोनी अभिन्न मित्र थीं. दोनों के घरों में कोई समानता नहीं थी. सलोनी का राजमहल सा घर जो शहर की सब से पौश कालोनी कवि नगर में स्थित था वहीं श्वेता का छोटा सा घर निम्नवर्गीय कालोनी विजय नगर में था, पर इन सब बातों के बावजूद श्वेता और सलोनी की दोस्ती कलकल बहते हुए पानी की तरह चलती रही.
सलोनी जहां सांवले रंग, साधारण नैननक्श पर गजब के आत्मविश्वास की स्वामिनी थी वहीं श्वेता गौर वर्ण, भूरी आंखें, तीखे नैननक्श की मलिका थी. दोनों एकदूसरे के न केवल रंगरूप में, बल्कि आचारविचार में भी बिलकुल विपरीत थीं. जहां सलोनी बेहद बिंदास और दिल की साफ थी वहीं श्वेता थोड़ी सी सिमटी हुई और खुद में खोई रहती थी.
श्वेता मन ही मन अपने जीवनस्तर की तुलना सलोनी से करती और खुद को सदा कमतर पाती थी. पर उसे पूरा विश्वास था कि उस के राजसी रूपसौंदर्य के कारण वह किसी अमीर खानदान की ही बहू बनेगी और श्वेता के घर वह बडे़ और अमीर लोगों के तौरतरीके का अनुकरण करने ही जाती थी.
आज सलोनी का जन्मदिन था और सभी सहेलियां कानपुर के पांचसितारा होटल में इकट्ठा हुई थीं. वहीं पर सलोनी ने अपनी सब सहेलियों की मुलाकात विभोर से कराई, जो उस के पिता के मित्र का बेटा था और इंजीनियरिंग की पढ़ाई कानुपर के सरकारी कालेज से कर रहा था. विभोर 5 फुट 10 इंच लंबा आकर्षक नौजवान था.