एक हफ्ते पहले ही शादी की सिल्वर जुबली मनाई है हम ने. इन सालों में मु झे कभी लगा ही नहीं या आप इसे यों कह सकते हैं कि मैं ने कभी इस सवाल को उतनी अहमियत नहीं दी. कमाल है. अब यह भी कोई पूछने जैसी बात है, वह भी पत्नी से कि तुम कैसी हो. बड़ा ही फुजूल सा प्रश्न लगता है मु झे यह. हंसी आती है. अब यह चोंचलेबाजी नहीं, तो और क्या है? मेरी इस सोच को आप मेरी मर्दानगी से कतई न जोड़ें. न ही इस में पुरुषत्व तलाशें.

सच पूछिए तो मु झे कभी इस की जरूरत ही नहीं पड़ी. मेरा नेचर ही कुछ ऐसा है. मैं औपचारिकताओं में विश्वास नहीं रखता. पत्नी से फौर्मेलिटी, नो वे. मु झे तो यह ‘हाऊ आर यू’ पूछने वालों से भी चिढ़ है. रोज मिलते हैं. दिन में दस बार टकराएंगे, लेकिन ‘हाय... हाऊ आर यू’ बोले बगैर खाना नहीं हजम होता. अरे, अजनबी थोड़े ही हैं. मैं और आशा तो पिछले 24 सालों से साथ में हैं. एक छत के नीचे रहने वाले भला अजनबी कैसे हो सकते हैं? मेरा सबकुछ तो आशा का ही है. गाड़ी, बंगला, रुपयापैसा, जेवर मेरी फिक्सड डिपौजिट, शेयर्स, म्यूचुअल फंड, बैंक अकाउंट्स सब में तो आशा ही नौमिनी है. कोई कमी नहीं है. मु झे यकीन है आशा भी मु झ से यह अपेक्षा न रखती होगी कि मैं इस तरह का कोई फालतू सवाल उस से पूछूं. आशा तो वैसे भी हर वक्त खिलीखिली रहती है, चहकती, फुदकती रहती है.

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