Valentine’s Special : गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर सिर टिकाए और होंठों पर मधुर मुसकान लिए अक्षत अपनी प्रेमिका के साथ बात करने में इस कदर मशरूफ था कि उसे बाहरी दुनिया की किसी भी खबर की भनक तक नहीं थी.

एक कौल जो बारबार उस के प्रेमालाप में बाधा उत्पन्न कर रही थी जिसे वह हर बार अनदेखा कर रहा था फिर भी वह कौल हर बार उसे बाधित करने के लिए दस्तक दे ही डालती.

अक्षत ने परेशान हो कर एक भद्दी सी गाली देते हुए, ‘‘एक बार होल्ड करना स्वीटहार्ट. कोई बेवकूफ मुझे बारबार फोन कर के डिस्टर्ब कर रहा है. पहले उस की कौल ले लूं, फिर आराम से बात करता हूं.’’

‘‘हैलो, कौन बात कर रहा है?’’ उस ने कड़क कर पूछा.

‘‘हैलो मैं पुलिस इंस्पैक्टर बोल रहा हूं.’’

‘‘जी, कहिए,’’ उस ने नर्म पड़ते हुए कहा.

‘‘मैं आप के फ्लैट से बोल रहा हूं, आप तुरंत यहां आइए.’’

‘‘जी, लेकिन बात क्या है सर?’’ उस की जबान लड़खड़ाने लगी.

‘‘आप आ जाइए. आप की पत्नी ने आत्महत्या कर ली है.’’

‘‘क्या? कब?’’ अक्षत के माथे पर पसीने की बूंदें उभरने लगीं और दिल की धड़कनें छाती फाड़ने के लिए प्रहार करती प्रतीत होने लगीं. भय से उस का गला सूखने लगा और मारे घबराहट के पूरे शरीर में कंपकंपी छूटने लगी. उस ने तुरंत गाड़ी स्टार्ट की और वहां से निकल लिया.

दनदनाती हुई कार फ्लैट के सामने आ कर रुकी तो अपनी आंखों के सामने ऐसा माहौल देख कर वह घबरा गया. पुलिस की गाड़ी और ऐंबुलैंस पर लगे सायरन ने चीखचीख कर सब को इकट्ठा कर लिया था. अक्षत गाड़ी से उतरा और फ्लैट की तरफ लपक पड़ा. बैडरूम के फर्श पर सफेद चादर में लिपटी लाश को देख कर वह दहाड़े मार कर उस से लिपट गया, ‘‘यह तुम ने क्या किया अलका, मु?ो छोड़ कर क्यों चली गई?’’ और उस की आंखों से अनवरत आंसू बहने लगे.

‘‘अब इस नाटक का कोई फायदा नहीं,’’ एक कर्कश आवाज ने उस का ध्यान भंग कर दिया, उस ने सिर उठा कर ऊपर देखा. तनी हुई भृकुटि से इंस्पैक्टर अक्षत को आपराधिक दृष्टि से घूर रहा था.

‘‘आप की पत्नी ने सुसाइड नोट छोड़ा है जिस में आप को इस आत्महत्या का जिम्मेदार ठहराया है. आप को अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के जुर्म में हिरासत में लिया जाता है.’’

अक्षत टकटकी लगा कर अलका के चेहरे को देख रहा था उसे ऐसा लग रहा था कि वह उस से कुछ कहने का प्रयास कर रही हो.

सायरन की तेज आवाज में दौड़ती हुई पुलिस की गाड़ी अपने गंतव्य की ओर बढ़ रही थी और अक्षत अब भी सिर ?ाकाए सुबक रहा था. उस के सामने बैठे पुलिसकर्मी ने अलका का लिखा सुसाइड नोट खोला और उसे ऊंची आवाज में पढ़ना शुरू कर दिया. उस की आवाज सुन कर अक्षत ने अपना सिर ऊपर उठाया और खिड़की के बाहर झांकने लगा. ज्योंज्यों गाड़ी तीव्र गति से आगे बढ़ रही थी त्योंत्यों हर चीज पीछे छूटती जा रही थी और वह आगे बढ़ता ही जा रहा था लेकिन, केवल अतीत के पन्नों में…

ऐसा लग रहा था जैसे उस के अतीत के चलचित्र उस की आंखों के सामने चल रहे हैं और वह समय के बीते हुए लमहों में गोते खाता चला जा रहा है. वह जा रहा था वहां जहां से किया था शुरू उस ने सफर अपनी जिंदगी का.

स्नातकोत्तर की पढ़ाई के दौरान अलका की मुलाकात अक्षत से हुई और जल्द ही दोनों की दोस्ती ने प्रेम का रूप ले लिया. अंतर्जातीय विवाह  होने के कारण अलका और अक्षत को घर छोड़ना पड़ा और दूर शहर में अपना आशियाना बना लिया.

कुछ ही समय के संघर्ष के बाद कालेज में अक्षत की सहायक प्रोफैसर के रूप में नौकरी लग गई.

अलका ने घरगृहस्थी संभालने का फ़ैसला किया और दोनों खुशहाल जीवन बिताने लगे.

कालेज के दिनों में जब अलका को पहुंचने में देर हो जाती थी तो वह पलपल फोन कर के पूछता और उस की छोटीछोटी बातों को ले कर विचलित हो जाता था.

उस की चंचल आंखें कालेज गेट पर आने वाली हर बस पर टिकी होती थीं. वह हर क्षण अलका का बेसब्री से इंतजार करता था. वह जैसे ही उस के सामने आती वह लपक कर उस का हाथ थाम लेता और क्लास तक का सफर तय करता.

दोनों अकसर घंटों पेड़ के नीचे बैठते और अपनी आने वाली जिंदगी की ढेर सारी प्लानिंग करते रहते. अक्षत अलका की गोद में सिर रख लेता. वह भी उस के घुंघराले बालों में गोरी पतली नेलपैंट वाली उंगलियां घूमाती हुई कहा करती, ‘‘अगर हम एक नहीं हो पाए तो? तुम मुझे छोड़ कर जाओगे तो नही न?’’ वह ऐसे सैकड़ों सवाल एक पल में कर दिया करती.

अक्षत उसे अपनी बांहों में भरते हुए हर बार बस यही कहता, ‘‘पागल, मैं ने तुम्हें मन से अपना मान लिया है फिर जातिपाती की बात ही कहां रहती है? हमारी संस्कृति रही है कि प्राण जाए पर वचन न जाई.’’

एम. फिल के बाद घर वालों की नाराजगी के चलते दोनों ने कोर्ट मैरिज कर अपनी दुनिया बसा ली. प्रेमसिक्त पलों में 3 साल कब गुजरे पता ही नहीं चला.

मगर पिछले 1-2 सालों में अक्षत के स्वभाव में अचानक परिवर्तन होने लगा जिसे अलका सम?ा नहीं पाई वह तो समझती थी कि शायद यह बदलाव काम की व्यस्तता को ले कर है लेकिन माजरा तो कुछ और ही था.

उस रात तूफान ने प्रचंड रूप दिखाना शुरू कर दिया था. हवा के तेज झांके दरवाजे, खिड़कियों पर दस्तक दे रहे थे और गरजते बादल किसी अमंगल घटना के लिए ललकार रहे थे. कौंधती हुई बिजली बारबार आंखें दिखा कर यों गायब हो रही थी जैसे फुंफकारती नागिन के मुंह में जीभ.

बिजली गुल हो चुकी थी लेकिन खिड़की से आ रही मद्धम रोशनी से घर में अब भी थोड़ा उजाला शेष था.

अलका खिड़की के पास काले डरावने साए की तरह शांत खड़ी थी और अक्षत उस के सामने पीठ किए चुपचाप खड़ा था. घर में गहन सन्नाटा पसरा था जिस से तूफान और भी भयानक लगने लगा था. कौन जानता था कि तूफान जिंदगी में आने वाला है और बिजली रिश्तों पर गिरने वाली है.

‘‘क्यों. क्यों किया तुम ने ऐसा और कब से चल रहा है ये सब?’’ उस के शांत स्वर ने सन्नाटे को चीर कर रख दिया.

‘‘पिछले 1 साल से,’’ उस ने धीमें से

जवाब दिया.

‘‘एक बार भी खयाल नहीं आया मेरा?

क्या कमी रह गई थी मुझ में अक्षत जो बाहर मुंह मारने की नौबत आ गई?’’ अलका का लहजा कठोर और स्वर तेज होता गया, ‘‘मैं ने तुम्हारे लिए अपना सबकुछ छोड़ दिया, अपना घर, परिवार और अपने सपने भी. क्या इसलिए कि तुम मुझे छोड़ कर किसी और के साथ रंगरलियां मनाते फिरो?’’ वह चीखती हुई आगे बढ़ी और अक्षत को कंधे से पकड़ कर अपनी ओर पलट लिया. वह उस से नजरें नहीं मिला पा रहा था पर उस के चेहरे पर पश्चात्ताप का नहीं बल्कि गुस्से का भाव था.

अक्षत ने अलका के सामने यह साबित कर दिया था कि उस की जिंदगी में कोईऔर है जिस के बिना वह नहीं रह सकता. उस रात दोनों के बीच झगड़ा बढ़ता गया और इतना कि अक्षत ने अलका पर हाथ तक छोड़ दिया. उसी दिन इस खुशहाल घर में एक दरार पनपती गई और दूरियों की खाई बढ़ती गई.

अलका की भले उस से से बोलचाल बंद थी परंतु उसे उस की फिक्र आज भी उतनी ही थी जितनी पहले वह था कि उसे इग्नोर ही करता रहा.

एक घर, एक कमरे में, एक बिस्तर, एक कंबल में होने के बावजूद उन में दूरियों की खाई बढ़ती गई जिसे पाटना शायद अब मुमकिन न था.

आज की सुबह अलका के लिए निहायत बो?िल और उदासी भरी थी. वह जब बिस्तर से उठी तो देखा कि अक्षत अपने बिस्तर पर नहीं है. उस ने खिड़की के परदा हटाया तो हलकी धूप ने भीतर प्रवेश किया और पूरे कमरे में बिखर गई.

अक्षत बालकनी में खड़ा फोन पर बात कर रहा था. आज उस के होंठों पर मुसकान नहीं थी और वह बहुत गंभीर नजर आ रहा था.

अलका प्रतिदिन की भांति किचन में चली गई और कुछ देर बाद जब वह चाय ले कर लौटी तो अक्षत बिलकुल शांत भाव से बैडरूम में पलंग पर बैठा कुछ सोच रहा था.

‘‘क्या हुआ?  इतना परेशान क्यों हो? सब ठीक है न?’’ अलका ने चाय का कप अक्षत की तरफ बढ़ाते हुए एकसाथ कई सवाल कर डाले.

अक्षत कुछ नहीं बोला और उस ने कप को थाम लिया. अलका भी उस के सामने बैठ गई और उस की ओर देखने लगी. उसे फिक्र हो रही थी कि कुछ तो हुआ है जिस की वजह से वह इतना परेशान और गंभीर है.

अक्षत की चुप्पी अलका को परेशान कर रही थी. उस के मन को आज किसी अनहोनी होने की भनक लग गई थी शायद.

‘‘मैं तुम से अलग होना चाहता हूं अलका,’’ अचानक उस के मुंह से निकले इन शब्दों ने जैसे उसे हजारों टन मलबे के नीचे दबा दिया हो. उस की आंखें विस्मय से फट गईं और कलेजा छाती फाड़ कर बाहर निकलने को प्रहार करने लगा.

‘‘क्या…? तुम होश में तो हो अक्षत?’’

अक्षत कुछ नहीं बोला बस खिड़की से बाहर नजरें गढ़ाए सिर्फ शांत भाव से बैठा रहा.

‘‘मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता अलका. अगर तुम मेरे साथ रहना चाहती हो तो तुम्हें दिव्यांशी के साथ रहना होगा इसी घर में,’’ उस ने अलका के सामने एक विकल्प पेश किया.

‘‘पागल हो गए हो तुम? मेरे ही घर में मेरे जीते जी किसी और औरत के साथ रहना होगा मु?ो? मैं पत्नी हूं तुम्हारी,’’ वह क्रोध से कांप रही थी.

‘‘जीते जी या मरने के बाद कैसे भी हो, दिव्यांशी इस घर में रहेगी मेरे साथ. यह मैं तुम्हें बता रहा हूं, तुम्हारी परमिशन नहीं ले रहा हूं. अगर तुम मेरे साथ रहना चाहती हो तो,’’ उस ने अपनी बात बहुत कठोरता से पूरी की.

अलका भी हार मानने वाली नहीं थी उस ने अपना विरोध जारी रखा. ‘‘मेरी मुहब्बत वैकलपिक नहीं है सम?ो तुम और न ही मैं ने तुम से प्यार करते समय कोई शर्त तय की थी. मैं तुम्हारी तरह स्वार्थी और बेशर्म नहीं जो मन भर जाने के बाद दूसरी जगह मुंह मारना शुरू कर दूं,’’ अलका ने अक्षत को गले से पकड़ते हुए क्रोधित स्वर में कहा.

अक्षत गुस्से से तमतमा उठा और फिर उसे पलंग पर धकेलते हुए बाहर निकल गया. वह निढाल सी बिस्तर पर औंधी पी सुबकती रही. अक्षत ने गाड़ी स्टार्ट की और घर से निकल गया.

अलका की सिसकारियां अब मंद पड़ चुकी थीं. घंटों तक आंसुओं की धारा बहती रही थी, उस की सुबकियां थमने का नाम नहीं ले रही थीं. आज उसे बीता हुआ हर वह पल याद आ रहा था जब उस ने निडर हो कर समाज और परिवार का सामना किया था, सिर्फ अक्षत को पाने के लिए और आज एक वक्त है कि वही अक्षत किसी और को पाना चाहता है. ज्योंज्यों एक के बाद एक दृश्य उस की आंखों के सामने आ रहे थे त्योंत्यों उस के चेहरे के भाव भी कठोर होते जा रहे थे.

उस ने अपने चेहरे पर बिखरे आंसुओं को अपनी उंगलियों से समेटा और चेहरे पर कठोर भाव लिए बिस्तर से उठी और डैस्क पर जा बैठी. उस ने कागजकलम उठाई और कुछ लिखने लगी. उस का चेहरा गुस्से से कठोर जरूर था पर उस की आंखों से अब भी अनवरत आंसुओं का बहना जारी था. उस ने कागज पर लिखे अपने अल्फाजों को मन ही मन पढ़ा और फिर उठ कर अलमारी की तरफ बढ़ गई.

उस ने अलमारी को खोला और उस में कुछ टटोलने लगी. ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी अतिमत्त्वपूर्ण चीज की तलाश में जुट गई हो.

अचानक उस की वह तलाश पूरी हो गई और वह जहर की एक छोटी सी शीशी को निहारती हुई मुसकराई.

अलका के होंठों पर एक हलकी सी मुसकान थी, ‘‘मैं ने तुम्हारे बिना एक पल भी रहने की कभी कल्पना तक नहीं की अक्षत. तुम मुझे छोड़ सकते हो पर मैं नहीं. मैं तुम्हें किसी और के साथ कभी नहीं देख सकती न जीते जी और न मरने के बाद. अलका अपना सबकुछ खो सकती है और उस ने खोया भी है केवल तुम्हारे लिए. तुम्हें पाने के लिए सबकुछ करेगी, सबकुछ बशर्ते कि मुहब्बत हो तुम से. अब तुम दिव्यांशी के साथ रहोगे तो जरूर लेकिन… जेल में. अपना खयाल रखना… अक्षत.’’

अलका की मुसकान और भी गहरी हो गई. वह मुसकान जो उस की जीत की थी. उस जीत की जो उस ने हासिल की थी, परिवार, समाज और रूढि़यों के विरुद्ध. उस जीत की जो उस ने हासिल की थी छद्म नारीवादी पुरुष के विरुद्ध. उस जीत की जो बीच थी धोखे और समर्पण के. उस ने अलमारी का जोर से बंद कर दिया.

पुलिसकर्मी ने सुसाइड नोट को पढ़ कर समेटना शुरू कर दिया. उस ने अक्षत की ओर गुस्से और नफरत भरी निगाहों से दृष्टिपात किया, पर वह अब भी शून्य में  झांक रहा था. वह अतीत के पन्नों से बाहर नहीं आना चाहता था, जहां सिर्फ प्यार ही प्यार था, अब तो सिर्फ और सिर्फ नफरत थी सब की नजरों में. उस के लिए.

शून्य में ठहरी उस की आंखें आंसू बहा रही थीं, दिल लानत बरसा रहा था और दुनिया जैसे नफरत से धिक्कार रही थी.

गाड़ी हौर्न बजाती हुई थाने में प्रवेश कर गई और अक्षत अपनी आखिरी मंजिल पर पहुंच गया.

डा. राजकुमारी

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