उसने बिना भूमिका बांधे अपने मन की बात उस से कह दी और उस से साफसाफ हां या न में जवाब मांगा. नमिता जिस बात से इतने बरसों से बचती आ रही थी वह सामने आ ही गई. वह कुछ क्षणों तक हतप्रभ सी आकाश को देखती रह गई. उस की आंखों में नमी तैरने लगी.
‘‘देखो अगर तुम्हारे जीवन में कोई और है तो कह दो. अगर तुम मु झे पसंद नहीं करती तो भी बता दो लेकिन आज मैं तुम्हारे दिल की बात जानना चाहता हूं. जो भी हो साफ कह दो,’’ आकाश ने नम्रता से कहा.
‘‘म... मैं क्या कहूं. सच तो यह है कि मैं किसी से भी शादी नहीं कर सकती,’’ नमिता के माथे पर पसीना आ गया और आंखों में आंसू. ‘‘जो भी बात हो मन में वह कह डालो नमिता और कुछ नहीं तो हम दोस्त तो हैं, दोस्ती के नाते ही अपना हाल सुना दो,’’ आकाश में दोस्ताना स्वर में कहा.
नमिता कुछ देर असमंजस की स्थिति में बैठी रही मानो अपने भीतर साहस जुटा रही हो, फिर जैसे खुद को संयत कर के इस तरह कहने लगी जैसे वह भी इस स्थिति को साफ कर लेना चाहती हो.
‘‘मैं तुम्हारी भावनाओं को बरसों से सम झ रही हूं आकाश. मु झे पता है तुम सालों से मु झे मन ही मन चाहते हो इसलिए मैं तटस्थ रह कर तुम से एक दूरी बना कर रखती रही,’’ नमिता बोली.
‘‘उस दूरी का ही कारण जानना चाहता हूं मैं आज,’’ आकाश ने कहा.
‘‘बचपन में हम सभी एक खेल खेलते हैं विष अमृत. उस में एक बच्चा दाम देता है और बाकी बच्चे उस से दूर भागते हैं क्योंकि दाम देने वाला जिस पर भी हाथ रख कर विष कह देता वह बच्चा खेल से अलग हो कर एक ओर स्थिर हो कर बैठ जाता है. फिर वह खेल का हिस्सा नहीं रह जाता. विष उसे मार देता है,’’ नमिता आंसू पोंछते हुए एक गहरी सांस लेते हुए कुछ पलों के लिए चुप हो गई.