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‘‘सब तेरा ही कियाधरा तो है निक्की, सो तुझे ही भुगतना भी पड़ेगा,’’ अर्पिता ने रुखाई से कह कर फोन रख दिया.

वैसे अर्पिता का कहना था भी सही. निक्की तो उस रोज जिद कर के सब को सूरजकुंड मेला दिखाने ले गई थी. मेले में घूमते हुए अचानक पापा की ममेरी बहन रूपा बूआ मिल गईं. कई वर्ष पहले एक सरकारी आवासीय कालोनी में वे पड़ोस में ही रहती थीं. रातदिन का आनाजाना था. लेखाकार फूफाजी अर्पिता और निक्की को गणित पढ़ाते थे. फिर पापा ने नोएडा में फ्लैट खरीद लिया और फूफाजी ने द्वारका में, धीरेधीरे संपर्क खत्म हो गए. आज मिल कर सब बहुत खुश हुए और गपशप करने के लिए एक रेस्तरां में जा कर बैठ गए.

‘‘अर्पिता तो सौफ्टवेयर इंजीनियर बन गई, तू क्या बनेगी निक्की?’’ फूफाजी ने पूछा.

‘‘आप की दी शिक्षा को सार्थक कर रही हूं फूफाजी, कौमर्स कालेज में लेक्चरर हूं और पीएच.डी. की तैयारी भी कर रही हूं.’’

‘‘बड़ी खुशी हुई यह सुन कर,’’ रूपा बोलीं, ‘‘लेकिन इन के शादीब्याह के बारे में क्या कर रहे हो उदय भैया?’’

‘‘अभी तो कुछ सोचा नहीं. दोनों ही अपनेअपने कैरियर को बनाने में व्यस्त हैं,’’ उदय शंकर ने कहा.

‘‘कैरियर तो उम्र भर बनता रहेगा, लेकिन शादी की एक खास उम्र होती है और अच्छे लड़केलड़कियों के रिश्ते इसी उम्र में हो जाते हैं. अर्पिता 27 साल की हो रही है, जल्दी से इस के लिए लड़का तलाश करो वरना तुम्हें भी शंभु दयालजी वाली परेशानी होगी,’’ रूपा बोलीं.

‘‘शंभु दयाल कौन? वही पंडारा रोड वाले आप के मुंहबोले जेठ?’’ मम्मी ने पूछा, ‘‘कहां हैं वे आजकल?’’

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