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मां ने तो वैसे भी उसे तीसरी क्लास से ही होस्टल में डाल दिया था. कई बार रोने के बाद भी उन का दिल नहीं पसीजा. खैर, पापा हर शनिवार की शाम को उसे घर ले जाने के लिए आ जाते और सोमवार की सुबह उसे स्कूल छोड़ जाते. रेवा के लिए वह एक दिन बड़ा सुकूनभरा होता, दिनभर वह अपने पापा के साथ मस्ती करती. मां कई बार पूछतीं कि कोर्स की कोई कौपीकिताब लाई कि नहीं, और वह इन प्रश्नों से बचने के लिए पापा के पीछे दुबक जाती. उस के 8वीं पास करने के साथ ही पापा का ट्रांसफर दूसरी जगह हो गया. सो, सप्ताह में एक दिन घर आनेलाने का चक्कर भी खत्म हो गया.

इस शहर से जाने के बाद भी पापा, हर महीने एक बार छुट्टी वाले दिन जरूर मिलने आते और कभीकभार मम्मी भी साथ में आतीं. मां आते ही उस के हालचाल जानने से पहले ही पढ़ाई के बारे में पूछने बैठ जातीं. सो, पापा का अकेले आना, उसे हमेशा बड़ा भाता था. वह जो भी फरमाइश करती, पापा तुरंत पूरी करते, तरहतरह की ड्रैसेस दिलाते, लंच व डिनर बाहर ही होता व उस की मनपसंद आइसक्रीम दिन में कई बार खाने को मिलती. इस तरह धीरेधीरे रेवा अपनी मां से दूर होने लगी और अकसर एक रटारटाया मुहावरा उस के मुंह पर आने लगता, ‘‘मां तो बस, रेवती की ही मां हैं. सारा प्यार मां ने उस के लिए ही रख छोड़ा है, मुझ से तो वे प्यार करती ही नहीं.’’ इंटर तक रेवा उसी कालेज में पढ़ती रही और उस ने हाईस्कूल व इंटरमीडिएट में पूरे प्रदेश में मैरिट में प्रथम स्थान प्राप्त कर कीर्तिमान स्थापित कर दिया. उस कालेज की पिं्रसिपल ने तो फेयरवैल पार्टी वाली स्पीच में यहां तक कह दिया कि इस लड़की रेवा का चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा में होेने से कोई नहीं रोक सकता और इस कालेज को उस पर बहुत गर्व है.

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छोटे से शहर लखनऊ के उस छोटे कालेज से निकल कर रेवा को लेडी श्रीराम कालेज, दिल्ली में दाखिला हाथोंहाथ मिल गया. साथ ही, मां ने उसे आईएएस के ऐंट्रैंस की कोचिंग भी जौइन करा दी. फिर तो रेवा अपनी पढ़ाई की भागदौड़ में इस तरह मसरूफ हो गई कि उसे मां के पास रहने और उन का प्यारदुलार पाने का मौका ही नहीं मिला जिस के लिए वह हमेशा तरसती रही थी.

पता नहीं कैसे, एक दिन अचानक रेवा को लगने लगा कि वह तो एकदम मशीन बनती जा रही है और इस के लिए अब उस का मन कतई तैयार नहीं था. रहरह कर उसे अब बचपन के वे दिन याद आ रहे थे, जब वह मांबाप के प्यार से वंचित रही. धीरेधीरे उस में विद्रोह के मूकस्वर उठने लगे. सब से पहले उस ने कालेज में टौप करने के लक्ष्य को ढीला छोड़ना शुरू कर दिया. उस के मन में एकाएक खयाल आया कि अगर वह दूसरे स्थान पर आ जाती है, तो किसी को क्या फर्क पड़ने वाला है. इस के बाद उस ने आईएएस कोचिंग में भी ढील देनी शुरू कर दी. इन बातों से रेवा की एक अजीब सी जिद हो गई. इस कारण वह क्लास में पहले द्वितीय, फिर तृतीय स्थान पर आ गई जिस से उस के सभी साथी आश्चर्यचकित रह गए. इसी तरह आईएएस कोचिंग के साप्ताहिक टैस्टों में उस के नंबर कमतर आने शुरू हो गए. जैसे ही मां को इस का पता चला, वे दिल्ली पहुंच गईं और उसे लगातार डांटती रहीं. रेवा को यह देख कर बड़ा सदमा लगा कि रेवती को हर साल नंबर कम आने पर प्यार से समझाने वाली मां, आज कहां खो गई हैं. मां तो डांट कर चली गईं, पर रेवा के मन में एक विद्रोह की चिनगारी को अनजाने में और भड़का गईं. रेवा सोचती रही कि मां अगर प्यार के दो बोल बोल कर समझा देतीं तो कौन सा आसमान छूना उस के लिए संभव न था.

इसी बीच एक और बात हो गई. मां की खास सहेली मंदिरा का लड़का और उस का बालपन का सखा सरस भी दिल्ली आ गया. एक दिन सरस से उस की मुलाकात एक मौल में हो गई. दोनों ने वहां कौफी पी और एकदूसरे का मोबाइल नंबर एक्सचेंज किया. फिर तो आपस में बातों का सिलसिला ऐसा चला कि बचपन की दोस्ती प्यार में कब बदल गई, पता ही न चला. सरस ने अपनी मां से जब इस बारे में बात की तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा. अगला अवसर मिलते ही, सरस की मां मंदिरा आंटी, मां के पास पहुंच गई. जैसे ही उन्होंने मां को बताया कि सरस व रेवा आपस में प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं, मां का चेहरा उतर गया. जब उन्हें पता चला कि सरस ने इंजीनियरिंग की है और वह जौब पाने के लिए प्लेसमैंट फौर्म भर रहा है, तो मां ने इस शादी के लिए यह कह कर इनकार कर दिया कि रेवा को तो अभी आईएएस बनना है. एक इंजीनियर व आईएएस में शादी कैसे हो सकती है.

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जैसे ही रेवा को इस बात का पता चला, विद्रोह की वह छोटी सी चिनगारी एकदम ज्वाला बन गई. परिणामस्वरूप, उस ने प्रतियोगिता परीक्षा का एक पेपर ही छोड़ दिया. मां को जब इस का पता चला तो वे बहुत चीखीचिल्लाईं. कितनी ही बार पूछने पर भी कि उस ने ऐसा क्यों किया, रेवा खामोश बनी रही. कुछ असर न होता देख, मां रेवा को समझाने बैठ गई. काफी देर बाद, रेवा ने जो पहला वाक्य कहा, वह यह था कि वे उसे सरस से विवाह करने देंगी या नहीं, अन्यथा दोनों कोर्टमैरिज कर लेंगे. अब तो मां रोने बैठ गईं, परंतु इन बातों का रेवा पर कोई असर नहीं हुआ. कुछ दिन रुक कर वह दिल्ली लौट गई और उस ने पत्रकारिता के कोर्स में प्रवेश ले लिया. धीरेधीरे रेवा ने घर आना भी कम कर दिया. इधर, सरस को एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पैकेज पर जौब मिल गई और उधर रेवा को दूरदर्शन के न्यूज चैनल में काम मिल गया. मां ने लाख समझाया, पर रेवा ने भी जिद पकड़ ली और इस के बाद फिर आईएएस की प्रतियोगिता में बैठी ही नहीं. बाद में सरस और रेवा ने विवाह कर लिया जिस में मां शामिल तो हुईं पर बड़े ही बेमन से. इस के कुछ सालों बाद, रेवा सरस के साथ लास एंजिल्स चली गई और वहीं की नागरिकता ले ली.

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