लेखक- संजय सिंह
लोचन को गांव वालों ने अपनी बिरादरी से निकाल दिया था, क्योंकि उस ने नीची जाति की एक लड़की से शादी कर अपनी बिरादरी की बेइज्जती की थी.
गांव के मुखिया की अगुआई में सभी लोगों ने तय किया था कि लोचन के घर कोई नहीं जाएगा और न ही उस के यहां कोई खाना खाएगा.
लोचन अपनी बस्ती में हजारों लोगों के बीच रह कर भी अकेला था. उस का कोई हमदर्द नहीं था. एक दिन अचानक उस के पेट में तेज दर्द होने लगा, तो उस की बीवी घबरा कर रोने लगी. जो पैर शादी के बाद चौखट से बाहर नहीं निकले थे, वे आज गलियों में घूम कर गांव के लोगों से लोचन को अस्पताल पहुंचाने के लिए गिड़गिड़ा रहे थे. लेकिन हर दरवाजे पर उसे एक ही जवाब मिलता था, ‘गांव के लोगों से तुम्हारा कैसा रिश्ता?’
जब वह लोचन के पास लौट कर आई, तब तक लोचन का दर्द काफी कम हो चुका था. उसे देखते ही वह बोला, ‘‘गांव वालों से मदद की उम्मीद मत करो, लेकिन जरूरत पड़े तो तुम उन की मदद जरूर कर देना.’’ इस के बाद लोचन ने खुद जा कर डाक्टर से दवा ली और थोड़ी देर बाद उसे आराम हो गया.
दूसरे दिन दोपहर के 12 बजे हरखू के कुएं पर गांव की सभी औरतें जमा हो कर चिल्ला रही थीं, पर महल्ले में कोई आदमी नहीं था, जो उन की आवाज सुनता. सभी लोग खेतों में काम करने जा चुके थे.
लोचन सिर पर घास की गठरी लिए उधर से गुजरा, तो औरतों की भीड़ देख कर वह ठिठक गया. औरतों ने उसे बताया कि बैजू चाचा का एकलौता बेटा कुएं में गिर गया है.
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