‘‘जी, डाक्टर साहब. हम ने तो सब आप पर छोड़ दिया है,’’ अमोल और अमृता अब कुछ निश्चिंत से हुए, बोले, ‘‘ठीक है, आप इस प्रक्रिया पर हमें गाइड करना शुरू कर दीजिए, कल उस से मिल कर पेमैंट भी कर देते हैं.’’
क्लीनिक से निकल कर इस समय दोनों को कुछ राहत सी मिली थी. दोनों के मन में यही भाव थे कि जब सोच लिया है तो कर ही लेते हैं.
दोनों अपनीअपनी सोच में गुम घर की तरफ लौट गए. अमृता को घर छोड़ अमोल शोरूम जाने वाला था. अमोल ने कहा, ‘‘अब तुम बस खुश रहो, अमृता. सब?ठीक हो जाएगा.’’
‘‘हां, पर पैसे काफी खर्च होंगे न.’’
‘‘तुम्हारी खुशी के लिए मु?ो सब मंजूर है. बस वह औरत हमारे लिए एक स्वस्थ, संस्कारी बच्चा पैदा कर दे. यह तो अच्छा है कि एजेंट अशोक ने हमारे धर्म की औरत ढूंढ़ ली है, अब कोई चिंता नहीं मेरी सब से बड़ी चिंता यही थी कि हमारा बच्चा अपने धर्म की ही औरत की कोख में पले.’’
‘‘हां, ठीक कह रहे हो.’’
दोनों का दिन अगले दिन सिम्मी से मिलने की प्रतीक्षा में ही बीता. अशोक का फोन आ गया, ‘‘अमोलजी, डाक्टर साहब ने बताया कि आप सिम्मी से मिलना चाहते हैं... वह तैयार है... आप के घर ही ले आऊं?’’
‘‘नहीं, घर नहीं उन के क्लीनिक के पास वाले होटल विजय पर ही ले आओ. हम बाहर ही मिल जाएंगे.’’
अमृता और अमोल सुबह नाश्ता कर के 10 बजे के करीब एक छोटे से होटल में बैठ कर अशोक और सिम्मी का इंतजार करने लगे. अमोल के ही एक दोस्त ने अशोक से उन्हें मिलवाया था. दोनों ने देखा, लगभग 35 साल का अशोक बाइक से उतरा. उस के साथ एक बहुत सुंदर सी युवा, चुप सी सकुंचाई लड़की भी बाइक से उतर कर एक किनारे खड़ी हो गई. लड़की बहुत खूबसूरत थी पर चेहरा उदास था. वह अशोक के पीछेपीछे चलती हुई आई. अशोक ने सब का परिचय करवाया. अमृता ने उसे ध्यान से देखते हुए बैठने का इशारा किया. सम?ा नहीं आ रहा था, बात कहां से शुरू करे. अमोल भी चुप था.