राइटर- रेखा शाह आरबी
22 वर्षीय नंदिता बहुत सुंदर थी. मगर उस के सुंदर चेहरे पर आज सुबह से ही ?ां?ालाहट और परेशानी नजर आ रही थी. वह आज बहुत परेशान थी. सुबह से बहुत सारा काम कर चुकी थीं. फिर भी बहुत सारा निबटाना था. कंप्यूटर पर बिल अपलोड करते हुए जब सुरेश जो इस बड़ी सी शौप में चपरासी था सब की देखभाल करना उसी की जिम्मेदारी थी. सब को पानी देना, कस्टमर को चायपानी पिलाना सब उस की जिम्मेदारी थी. सुरेश ने जब आ कर कहा कि नंदिताजी आप को बौस बुला रहे हैं तो नंदिता का मन किया कि सिर दीवार से टकरा कर अपना सिर फोड़ दे.
मन में एक भददी गाली देते हुए सोचने लगी कि कमीना जब तक 4 बार देख न ले उसे चैन नहीं पड़ता है. एक तो जब उस के कैबिन में जाओ लगता है नजर से ही खा जाएगा. उस की नजर, नजर न हो कर इंचीटेप बन जाती है और इंचइंच नापने लगता है... खूसट बुड्ढे को अपनी बीवी अच्छी नहीं लगती. सारी दुनिया की औरतें अच्छी लगती हैं और लड़कियां अच्छी लगती है... हां कुदरत ने दिल खोल कर दौलत दी है तो ऐयाशी सू?ोगी ही... एक को छोड़ो 4 भी रख सकता है... पैसे की कौन सी कमी है.
लेकिन भला हो इस की बीवी का जिस ने इस की चाबुक खींच कर रखी है... और उस के आगे इस की चूं नहीं निकलती है. नहीं तो अब तक न जाने कितनी लड़कियों की जिंदगी बरबाद कर चुका होता.’’
नंदिता यह सब सिर्फ सोच सकती थी. बोल नहीं सकती थी अत: उस ने सुरेश से कहा, ‘‘भैया, आप चलिए मैं आती हूं.’’
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