‘‘हां...हैलो...’’ ‘‘हां बोल... बहरी नहीं हूं सुनाई दे रहा है.’’ ‘‘हां, मैं अमरावती ऐक्सप्रैस में बैठ गई हूं 5:30 तक नागपुर पहुंच जाऊंगी.’’ ‘‘अरे बेवकूफ तु झे आजाद हिंद पकड़?ने को बोला था न. उस ट्रेन में इतनी भीड़ होगी कि तु झे बैठने की जगह भी नहीं मिलने वाली... उस के टौयलेट भी गंदे मिलेंगे, ऊपर से हमेशा लेट चलती है...’’ यह थी मेरी बड़ी बहन राशि जो एक मैडिकल स्टूडैंट है. पिछले 3 सालों से रायपुर टू नागपुर अपडाउन कर अपनेआप को रेलवे की इनसाइक्लोपीडिया सम झने लगी है. उसे जहां जब मौका मिले अपना ज्ञान झाड़ने का मौका नहीं छोड़ती... ‘‘मगर मेरा तो रिजर्वेशन है और बस 6 घंटे का रास्ता है काट लूंगी.’’ ‘‘तेरी सीट कन्फर्म है उस के लिए तु झे पदमश्री अवार्ड मिलना चाहिए... जो करना है कर, मैं अभी कालेज के लिए निकल रही हूं. तेरे उतरने से पहले प्लेटफौर्म में खड़ी मिलूंगी... न आई तो वापस चली जाना बाय.’’ ‘‘बाय.’’ ‘ये बड़ी बहनें होती ही ऐसी हैं. उन का कहा मान लिया तो ठीक, नहीं तो हर काम में गलतियां निकल कर बहस करने की रस्ता निकालती बैठती हैं. अरे, भई अब ट्रेन में भीड़ नहीं होगी तो कहां होगी और भीड़ है तो बाथरूम गंदे होंगे ही... लगता है पागलों के बीच में रहती है.’’
आज मैं बहुत ऐक्साइटेड हूं क्योंकि मेरी ट्वैल्थ बोर्ड में अच्छी परसैंटेज आई है और यह मेरी लाइफ का पहली सोलो ट्रैवलिंग ट्रिप है. हम दोनों की छुट्टियां साथ चालू हो रही हैं इसलिए उस के होस्टल में रह कर खूब मौजमस्ती करने का शानदार प्रोग्राम बना रखा है. ‘‘भाई वाह क्या खुशबू है. कहीं से अचार तो कहीं से पूरियां, तरहतरह का तड़का लगी सब्जियां सूंघसूंघ कर मु झे भी भूख लगने लगी.’’ ‘‘खाना अपना भी पूरी टक्कर का बना है मेरे दोस्त, आलू, भिंडी की लजीज सब्जी, परांठे और छोटे से डब्बे में रखा राशि का पसंदीदा गाजर का हलवा.’’ ‘‘चलो भई खाना तो भरपूर हो गया अब थोड़े बाहर के नजारे देख लिए जाएं.’’ मैं अपनी गरदन सीट पर टिकते हुए अपने चेहरे पर खिड़की से आतीजाती हवा के झोंकों को महसूस करते हुए कभी खाली खेत, तो कभी रोड पर दौड़ती बड़ीबड़ी गाडि़यां देखते सोचने लगी कि क्या यही लोग, यही नजारे मु झे फिर से देखने को मिलेंगे? नहीं हमारी नियति में बस ये कुछ सैकंड्स का मिलना लिखा है.