‘‘तुम्हें मुझ से शादी कर के पछतावा होता होगा न रूबी…’’ करन ने इमोशनल होते हुए कहा.
‘‘नहींनहीं, पर आज आप ऐसी बातें क्यों ले कर बैठ गए हैं,’’ रूबी ने कहा.
‘‘क्योंकि… मैं एक नाकाम मर्द हूं… मैं घर में निठल्ला बैठा रहता हूं … तुम से शादी करने के 6 साल बाद भी तुम्हें वे सारी खुशियां नहीं दे पाया, जिन का मैं ने तुम से कभी वादा किया था,’’ करन ने रूबी की आंखों में देखते हुए कहा.
‘‘नहीं… ऐसी कोई बात नहीं है. आप ने मुझे सबकुछ दिया है… 2 इतने अच्छे बच्चे… यह छोटा सा खूबसूरत घर… यह सब आप ही बदौलत ही तो है,’’ रूबी ने करन के चेहरे पर प्यार का एक चुंबन देते हुए कहा. करन ने भी रूबी को अपनी बांहों में कस लिया.
गोपालगंज नामक गांव में ही रूबी और करन के घर थे. दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना होता था और घर के बाहर दोनों का प्यार धीरेधीरे परवान चढ़ रहा था. दोनों ने शादी की योजना भी बना ली थी, साथ ही दोनों यह भी जानते थे कि यह शादी दोनों के घर वालों को मंजूर नहीं होगी, क्योंकि दोनों की जातियां इस मामले में सब से बड़ा रोड़ा थीं.
करन ब्राह्मण परिवार का लड़का था और उस का छोटा भाई पारस राजनीति में घुस चुका था और गांव का प्रधान बन गया था. रूबी एक गड़रिया की बेटी थी.
इस इश्क के चलते रूबी शादी से पहले ही पेट से हो गई थी और अब इन दोनों पर शादी करने की मजबूरी और भी बढ़ गई थी. फिर क्या था, दोनों ने अपनेअपने घर पर विवाह प्रस्ताव रखा, पर दोनों ही परिवारों ने शादी के लिए मना कर दिया. इस के बाद इन दोनों ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ एक मंदिर में शादी कर ली.
पर दोनों के ही घर वाले उन्हें अपनाने और घर में पनाह देने के खिलाफ थे, इसलिए रूबी और करन को उसी गांव में अलग रहना पड़ा.
दोनों ने गांव के एक कोने में एक झोंपड़ी बना ली थी, दोनों का जीवन प्रेमपूर्वक गुजरने लगा. करन के पास तो कोई कामधाम नहीं था, इसलिए रूबी को ही घर के मुखिया की तरह घर चलाने की जिम्मेदारी लेनी पड़ी.
गोपालगंज से 15 किलोमीटर दूर एक कसबे के एक पोस्ट औफिस में रूबी को कच्चे तौर पर लिखापढ़ी का काम मिल गया था. उसे रोज सुबह 12 बजे से शाम 5 बजे तक की ड्यूटी देनी पड़ती थी, पर वह मेहनत करने से कभी पीछे नहीं हटी.
धीरेधीरे रूबी की मेहनत रंग लाई. घर में चार पैसे आने लगे, तो समय को मानो पंख लग गए और इसी दौरान रूबी 2 बेटियों की मां भी बन गई थी.
रूबी ने उन के पालनपोषण और अपने काम में बहुत अच्छा तालमेल बिठा लिया था. बच्चों की दिक्कत कभी उस के काम के आड़े नहीं आई, जिस का श्रेय करन को भी जाता है, क्योंकि जब भी रूबी बाहर जाती है, करन पर घर रह कर बच्चों का ध्यान रखता है.
रूबी ने कसबे के स्कूल जा कर इंटरमीडिएट तक पढ़ाई कर ली थी और उस के बाद प्राइवेट फार्म भर कर ग्रेजुएशन भी कर ली थी.
बचपन से ही रूबी को समाजसेवा करने का बहुत शौक था. उस के मन में गरीबों के लिए खूब दया का भाव था, इसलिए वह अब पोस्ट औफिस में डाक को छांटने और लिखापढ़ी के काम के साथसाथ शहर की एक समाजसेवी संस्था के साथ जुड़ गई थी, जो महिलाओं पर हो रहे जोरजुल्म के खिलाफ काम करती थी.
इस संस्था से जुड़ कर रूबी को मशहूरी मिलनी भी शुरू हो गई थी. शुरुआत में तो वह महिलाओं में जनजागरण करने के लिए पैदल ही गांवगांव घूमती थी, इस काम में उस की सहायक महिलाएं भी उस के साथ होती थीं, पर जब काम का दायरा बढ़ा तो
उस ने अपने लिए एक ईरिकशा भी खरीद लिया.
फिर क्या था, वह खुद आगे ड्राइविंग सीट पर बैठ जाती और पीछे अपनी सहायक महिला दोस्तों को
वह खुद बिठा लेती और गांवों में महिलाओं को सचेत करती और उन्हें आत्मनिर्भर होने का संदेश देती.
…धीरेधीरे रूबी पूरे इलाके में रिकशे वाली भाभी के नाम से जानी जाने लगी.
समाजसेवा का काम बढ़ जाने के चलते रूबी ने पोस्ट औफिस वाला काम भी छोड़ दिया था और अपने को पूरी तरह से समाजसेवा में लगा दिया.
गैरजाति में शादी कर लेने के चलते रूबी और करन पहले से ही गांव के सवर्ण लोगों की आंख में बालू की तरह खटक रहे थे, ऊपर से रूबी के इस समाजसेवा वाले काम ने घमंडी मर्दों के लिए एक और परेशानी खड़ी कर दी थी.
गांव के लोगों को लगने लगा कि अगर रूबी इसी तरह से लोगों को अपने होने वाले जोरजुल्म के खिलाफ जागरूक करती रही, तो एक दिन मर्दों का दबदबा ही खत्म हो जाएगा.
एक दिन जब रूबी अपने ईरिकशा से काम के बाद वापस आ रही थी, तो करन के छोटे भाई पारस, जो गांव का प्रधान भी था, ने उस का रास्ता रोक लिया.
‘‘क्या भाभी… कहां चक्कर में पड़ी हो… इस झमेले वाले काम के चक्कर में जरा अपनी कोमल काया को तो देखो… कैसी काली पड़ गई हो,’’ पारस ने रूबी के सीने पर नजरें गड़ाते हुए कहा. दिनरात मेहनत करने से तुम्हारा मांस तो गल ही गया है… सूख कर कांटा होती जा रही हो और इन कोमल हाथों में ईरिकशा चला कर छाले पड़ गए हैं…
‘‘क्या इसी दिन के लिए तुम ने भैया से शादी की थी कि तुम्हें गलियों की धूल खानी पड़े…’’ पारस की नजरें अब भी रूबी के शरीर का मुआयना कर रही थीं.
‘‘क्या… भैया… आज बड़ी चिंता हो रही है मेरी…’’ रूबी ने ऊंची आवाज
में कहा.
‘‘क्यों नहीं होगी चिंता… अब आप भले ही नीची जाति की हों… पर अब तो मेरी भाभी बन गई हो न… तो हम लोग अपनी भाभी की चिंता नहीं करेंगे, तो कौन करेगा?
‘‘वैसे, सच कहते हैं भाभी… तुम्हें देखने से यह नहीं लगता है कि तुम
2 बच्चों को पैदा कर चुकी हो… बड़ा फिगर मेंटेन किया है आप ने.’’
‘‘ये आप किस तरह की बातें कर रहे हो? आखिर चाहते क्या हो…?’’ रूबी की आवाज तेज थी.
‘‘कुछ नहीं भाभी… बस इतना चाहते हैं कि आप एक रात के लिए हमारे साथ सो जाओ. बस… कसम से… खुश कर देंगे आप को…’’
पारस अपनी बात को अभी खत्म भी नहीं कर पाया था कि तभी रूबी के एक तेज हाथ का जोरदार थप्पड़ उस के गाल पर पड़ा
पारस गाल पकड़ कर रह गया. कुछ दूरी पर खड़े लोगों ने भी यह मंजर देख लिया था.
अचानक पड़े थप्पड़ के चलते और मौके की नजाकत को देखते हुए पारस वहां से तुरंत हट गया. मन में रूबी से बदला लेने की बात ठान ली.
उस दिन की घटना का जिक्र रूबी ने किसी से नहीं किया और सामान्य हो कर काम करती रही.
जिस समाजसेवी संस्था के लिए रूबी काम करती थी, वह संस्था उस के द्वारा की जा रही कोशिशों से काफी खुश थी और रूबी अपने काम को और भी बढ़ाने में लगी हुई थी.
दिनभर जनसंपर्क के बाद जब रूबी शाम को घर लौटती, तो पति और बच्चे घर के दरवाजे पर इंतजार करते मिलते. उन्हें देख कर उस की सारी थकान मिट जाती और वह अपनी बच्चियों को अपने बांहों में भर लेती और अपनी स्नेहभरी आंखों से अपने पति को भी धन्यवाद देती कि उस ने बेटियों का ध्यान रखा.
आज जब काम के बाद रूबी घर लौट रही थी, तो उस की दोनों बेटियां गांव की टौफी और चिप्स की दुकान पर चिप्स खरीदती दिखीं, उन्हें इस तरह बाहर का सामान खरीदने के लिए रूबी ने पैसे तो दिए नहीं थे, फिर इन के पास पैसे कहां से आए…?
‘‘अरे, तुम यहां चिप्स खरीद रही हो… पर यह तो बताओ कि तुम्हारे पास चिप्स के लिए पैसे कहां से आए…?’’ रूबी ने उन्हें बहला कर पूछा.
‘‘मां… हमें पापा ने पैसे दिए थे और यह भी कह रहे थे कि बाहर जा कर खेलना… तभी हम लोग बाहर घूम रहे हैं,’’ बड़ी बेटी ने जवाब दिया.
न जाने क्यों, पर रूबी को यह बात कुछ अजीब सी लगी, पर फिर भी उस ने सोचा कि बच्चे अकेले करन को परेशान कर रहे होंगे, तभी उस ने पैसे दे कर बाहर भेज दिया होगा. इसी सोच के साथ वह बच्चों को ले कर घर आ गई.
घर में करन बिस्तर पर पड़ा हुआ आराम कर रहा था. रूबी के घर पहुंचने पर भी वह लेटा रहा और सिरदर्द होने की बात भी बताई. रूबी ने हाथपैर धो कर चाय बनाई और दोनों साथ बैठ कर पीने लगे.
चाय पीने के बाद जब रूबी रसोईघर में काम करने गई, तो वहां उस को एक पायल मिली. पायल देख कर उसे लगा कि क्या उस के पीछे किसी से करन का मामला तो नहीं चल रहा है?
रूबी ने वह पायल अपने पास रख ली और करन से इस बात का जिक्र तक नहीं किया.
एक दिन की बात है. रूबी काम से थकीहारी आ रही थी. उस ने देखा कि उस की दोनों बेटियां उसी दुकान पर फिर से कुछ खाने का सामान खरीद रही थीं. आज वह चौंक उठी थी, क्योंकि इस तरह से बच्चियों को पैसे ले कर दुकान पर आना उसे ठीक नहीं लग रहा था.
‘‘अरे आज फिर पापा ने पैसे दिए क्या?’’ रूबी ने पूछा.
‘‘नहीं मां… आज हमारे घर में गांव की एक आंटी आईं और उन्होंने ही हमें पैसे दिए.’’
बच्चों की बात पर सीधा भरोसा करने के बजाय रूबी ने घर जा कर देखना ही उचित समझा.
घर का दरवाजा अंदर से बंद था. अंदर क्या हो रहा है, यह जानने के लिए रूबी ने दरवाजे के र्झिरी से आंख लगा दी तो अंदर का सीन देख कर वह दंग रह गई. कमरे में करन किसी औरत पर झुका हुआ था और अपने होंठों से उस औरत के पूरे शरीर पर चुंबन ले रहा था, वह औरत भी करन का पूरा साथ दे रही थी.
यह सब देख कर रूबी वहीं धम्म से दरवाजे पर बैठ गई. आंसुओं की धारा उस की आंखों से बहे जा रही थी.
कुछ देर बाद ‘खटाक’ की आवाज के साथ दरवाजा खुला और एक औरत अपनी साड़ी के पल्लू को सही करते हुए बाहर निकली. रूबी ने उसे पहचान लिया था. यह गांव की ही एक औरत थी, जिस का पति बाहर शहर में ही रहता है और तीजत्योहार पर ही आता है. गांव में यह औरत अपने ससुर के साथ रहती है.
रूबी उस औरत से एक भी शब्द न कह पाई, अलबत्ता वह औरत पूरी बेशर्मी से रूबी को देख कर मुसकराते हुए चली गई.
रूबी बड़ी मुश्किल से अंदर गई. करन ने रूबी से हाथ जोड़ लिए. ‘‘मैं बेकुसूर हूं रूबी… यह औरत गांव में बिना मर्द के रहती है… आज जबरन कमरे में घुस आई… और बच्चों को बाहर भेज दिया. फिर मुझ से कहने लगी कि अगर मैं ने उस की प्यास नहीं
बुझाई, तो वह मुझ पर बलात्कार का आरोप लगा देगी… अब तुम्हीं बताओ… मैं क्या करता… मैं मजबूर था,’’ रोने लगा था करन.
रूबी कुछ नहीं बोल सकी. शायद अभी उस में सहीगलत का फैसला करने की हिम्मत नहीं रह गई थी.
अगले 15 दिनों तक रूबी अपने पति का बरताव देखने और नजर रखने की गरज से काम पर नहीं गई और न ही घर से बाहर निकली. इन दिनों में करन ने बड़ा ही संयमित जीवन बिताया. रोज नहाधो कर पूजापाठ में ही रमा रहना उस के रोज के कामों में शामिल था. उस का आचरण देख कर रूबी को लगने लगा कि करन जो कह रहा था, वही सही है. गलती करन की नहीं है, गलती उसी औरत की ही है.
कुछ दिनों बाद सबकुछ पहले की तरह ही हो गया. फिर रूबी काम पर जाने लगी. उसे विश्वास हो चला था कि उस का पति उस से सच बोल रहा है, पर उस का यह विश्वास तब गलत साबित हो गया, जब उस ने एक बार फिर करन और उस औरत को एकसाथ संबंध बनाते हुए पकड़ लिया.
रूबी दुख और गुस्से में डूब गई थी और अब उस ने मन ही मन कुछ कठोर फैसला ले लिया था.
रूबी अपनी बेटियों को अपने साथ ले कर सीधे गांव के प्रधान पारस के पास पहुंची. उसे देख कर पारस की बांछें खिल गईं.
‘‘अरे… अरे भाभीजी… आज हमारे दरवाजे पर आई हैं… अरे, धन्य भाग्य हमारे… बताइए, हमारे लिए क्या
आदेश है?’’
‘‘करन का एक दूसरी औरत के साथ गलत संबंध है… मैं खुद अपनी आंखों से उन दोनों को गलत काम करते देख चुकी हूं… मुझे इंसाफ मिलना चाहिए… अब मैं करन के साथ और नहीं रहना चाहती हूं… तुम इस गांव के प्रधान हो, इसलिए मैं तुम्हारे पास आई हूं.’’
‘‘सही कहा आप ने भाभीजी… मैं इस गांव का प्रधान हूं… और इस नाते मेरा फर्ज बनता है कि मैं लोगों की मदद करूं और आप की भी… पर, गांव का प्रधान कोई भी फैसला अकेला नहीं
सुना सकता. उस के लिए पंचायत बुलानी पड़ेगी…
‘‘और भाभीजी आप का मामला तो बहुत संगीन है… तो हम ऐसा करते हैं कि कल ही पंचायत बुला लेते हैं. आप कल सुबह 11 बजे पंचायत भवन में आ जाना… तब तक हम करन भैया को भी संदेश पहुंचवा देते हैं.’’
यह सुन कर रूबी वहां से चली आई और अगले दिन 11 बजने का इंतजार करने लगी.
अगले दिन ठीक 10 बजे पंचायत बुलाई गई, जिस में दोनों पक्षों के लोग भी थे. रूबी के मातापिता भी थे, पर करन के मातापिता ने यह कह कर आने से मना कर दिया कि लड़के ने अपनी मरजी से निचली जाति में शादी की है, अब हमें उस से कोई मतलब नहीं है… जैसा किया है… वैसा भुगते… लिहाजा, करन अपना पक्ष खुद ही रखने वाला था.
पंचायत की कार्यवाही शुरू हुई. पहले रूबी को अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया.
‘‘मैं कहना चाहती हूं कि मैं ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ जा कर करन से शादी की थी, जिस से मैं
खुश भी थी, पर अब मेरे पति के गांव की ही दूसरी औरत के साथ गलत संबंध बन गए हैं, जिन्हें मैं ने अपनी आंखों से देखा है.
‘‘इस के बावजूद मैं ने करन को संभलने का एक मौका भी दिया, पर वह फिर भी गलत काम करता रहा, इसलिए मैं उस के साथ और नहीं रहना चाहती. मैं करन से तलाक लेना चाहती हूं. कार्यवाही आगे कोर्ट तक ले जाने से पहले मैं पंचायत की इजाजत चाहती हूं.’’
इस के बाद करन बोला, ‘‘मैं ने तो गले में कंठी धारण कर रखी है. मैं तो ऐसा कर ही नहीं सकता. और सारा गांव जानता है कि जब रूबी काम पर जाती है, तो मैं अपनी बेटियों के साथ घर पर रहता हूं. अब अपनी बेटियों के सामने कोई भला ऐसा काम कैसे कर सकता है… फिर भी रूबी के पास मेरे खिलाफ कोई सुबूत हो तो वह अभी पेश करे. अगर आरोप सही निकलेगा, तो मैं तुरंत ही तलाक दे दूंगा.’’
पारस तो पहले से ही रूबी से बदला लेना चाहता था, पर ऐसा कर नहीं पा रहा था. आज उस के सामने रूबी को जलील करने का अच्छा मौका था और पंचायत में भी सभी पारस की मंडली के ही लोग थे.
पारस द्वारा पंचायत का फैसला सुनाया गया, ‘‘रूबी किसी भी तरह से अपने पति को गुनाहगार साबित नहीं कर पाई और न ही करन के खिलाफ कोई सुबूत ही पेश कर पाई है. पंचायत को लगता है कि करन बेकुसूर है, इसलिए पंचायत के मुताबिक दोनों को एकसाथ ही रहना होगा. इन का तलाक नहीं कराया जा सकता.
‘‘रूबी ने अपने बेकुसूर पति पर बेवजह आरोप लगाए और पंचायत का समय खराब किया, इसलिए रूबी को सजा भुगतनी होगी.
‘‘रूबी को यह पंचायत 30,000 रुपए बतौर जुर्माना जमा करने का हुक्म देती है. और पैसे न जमा कर पाने की हालत में रूबी पर कड़ी कार्यवाही भी हो सकती है. जुर्माना परसों शाम तक प्रधान के पास जमा हो जाना चाहिए.’’
यह फैसला सुन कर रूबी टूट गई थी. जो रूबी कुछ दिनों पहले तक महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जगा रही थी, वही रूबी जिस ने अपने मांबाप की मरजी के खिलाफ जा कर शादी की थी, उसे ही धोखा मिला.
और सब बातों के साथसाथ रूबी के सामने इतने पैसे जुर्माने के तौर पर जमा करने का हुक्म भी बजाना था, नहीं तो जालिम पंचायत न जाने क्या करवा दे.
एक दिन बीत गया था. पोस्ट औफिस में कुछ पैसे जमा थे और कुछ संदूक में थे, उन्हें मिला कर 20,000 रुपए ही हो सके. जब और पैसे का इंतजाम नहीं हो सका, तो तय समय पर रूबी इतने ही पैसों को ले कर पंचायत के सामने पहुंची और जुर्माने के पूरे पैसे जमा कर पाने में अपनी मजबूरी दिखाई.
प्रधान पारस ने बोलना शुरू किया, ‘‘रूबी हमारी भाभी लगती हैं… ये कहें तो हम सारा जुर्माना खुद ही जमा कर देंगे, पर क्यों करें, इंसाफ और धर्म के हाथों मजबूर हैं. हम ऐसा नहीं कर सकते… और हमारी रूबी भाभी जुर्माना नहीं जमा कर पाई हैं, इसलिए पंचों का फैसला है कि इन को बाकी के बचे 10,000 रुपयों के बदले दूसरी तरह का जुर्माना देना होगा.
‘‘और वह जुर्माना यह होगा कि हमारे खेत में जितना कटा हुआ गेहूं पड़ा हुआ है, उसे किसी भी तरह से हमारे आंगन तक पहुंचाना होगा.’’
एक बार फिर यह पंचायती फरमान सुन कर रूबी दंग रह गई थी,
हां, शायद भाग ही जाती, पर दो बच्चियों को छोड़ कर जाना संभव नहीं था. और फिर करन का क्या भरोसा?
‘‘बोलो… जुर्माने के तौर पर दी जाने वाली सजा मंजूर है तुम्हें?’’ प्रधान पारस की आवाज गूंजी. कोई चारा नहीं था उस अबला रूबी के पास, पर वह इस समय एक ऐसे दर्द में थी, जिस से एक दूसरी औरत ही समझ सकती है.
रूबी ने हिम्मत जुटाई और सभी के सामने बोल दिया, ‘‘फैसला मंजूर है, पर मैं अभी यह सजा नहीं झेल सकती.’’
‘‘पर क्यों?’’ एक पंच बोला.
‘‘क्योंकि, मैं रजस्वला हूं…’’
सारी बैठी औरतें सन्न रह गईं और आपस में खुसुरफुसुर करने लगीं.
‘‘मैं इस समय कोई भारी चीज नहीं उठा पाऊंगी, इसलिए मैं विनती करती हूं कि मेरी यह सजा माफ कर दी जाए.’’
प्रधान और पंचायत के कानों में जूं तक नहीं रेंगी. और नहीं किसी औरत के प्रति इस हालत में जरा भी हमदर्दी आई.
लिहाजा रूबी को पंचायत की बात माननी पड़ी. उस ने खेत में पड़ा गेहूं बोरियों में भरना शुरू किया और बोरी को लादलाद कर प्रधान के घर में रखना शुरू कर दिया, सूरज ऊपर तप रहा था, रूबी की आंखों में आंसू थे, पर वह अपने को किसी जाल में फंसा हुआ महसूस कर रही थी.
वह अभी कुछ ही बोरे रख पाई थी कि उस के पैर कांपने लगे. उस की जांघें छलनी हो गई थीं. उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वह और नहीं सह सकी और वहीं बेहोश हो गई.
रूबी की आंख जब खुली, तो उस ने अपने आसपास सभी साथियों को पाया, जो समाजसेवा के काम में रूबी के साथ ईरिकशे पर बैठ कर जाती थीं, उन लोगों ने ही रूबी को अस्पताल में भरती कराया और उस से बिलकुल भी चिंता न करने की सलाह दी.
जब अस्पताल से रूबी को छुट्टी मिली, तो वह वहां से अपनी साथियों की मदद से महिला आयोग पहुंची, जहां उस ने अपने ऊपर हुए जुल्म की दास्तां बताई और यह भी बताया कि किस तरह से उस का पति एक दूसरी औरत के साथ जिस्मानी संबंध रखे हुए है, जबकि उन दोनों ने आपसी सहमति से प्रेम विवाह किया था.
महिला आयोग ने रूबी से हमदर्दी तो दिखाई, पर यह भी कहा कि आप पढ़ीलिखी लगती हैं… और जब तक आप के पास अपने पति के खिलाफ दूसरी महिला के साथ संबंध होने का कोई सुबूत नहीं होगा. तब तक हम
चाह कर भी आप की कोई मदद नहीं कर पाएंगे.
रूबी निराश हो कर वहां से लौट आई और यह सोचने लगी कि सुबूत कैसे जुटाया जाए.
फिर कुछ दिन बीतने के बाद रूबी एक दिन दोपहर में चोरीछुपे अपने गांव के घर में पहुंची और दरवाजा खटखटाया.
दरवाजा करन ने खोला और रूबी को देखते ही बिफर गया, ‘‘तू फिर यहां आ गई अपनी शक्ल दिखाने के लिए.’’
‘‘करन… एक मिनट मेरी बात तो सुनो… हम ने तो प्रेम विवाह किया था, फिर मुझ से इतनी नफरत क्यों?’’ रूबी ने पूछा.
‘‘प्रेम विवाह… हुंह… क्या तुम नहीं जानती कि हम दोनों अलगअलग जाति से संबंध रखते हैं… और हमारे गांव में किसी भी छोटी जाति वाली लड़की से शादी करने वाले को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता… पूरे गांव ने मेरा बहिष्कार कर दिया… मैं अब और नहीं सह सकता… और फिर तुम्हारे अंदर भी मैं ने एक कमाऊ औरत होने का अहंकार देखा… तुम काम से आ कर मुझ पर अहसान दिखाती थी और अकसर ही मेरा बिस्तर बिना गरम किए ही सो जाती थी. और मैं रातभर करवट बदलता रहता था… और फिर तुम्हारे भी तो बाहर और भी कई मर्दों के साथ संबंध हैं, इसीलिए मैं ने भी इस औरत के साथ संबंध बना लिया है और आगे भी मैं इसी के साथ रहूंगा,’’ करन ने सब स्वीकार कर लिया.
‘‘पर, मैं ने तुम से प्रेम…’’ रूबी का स्वर बीच में ही रुक गया.
‘‘हट साली… गड़रिया की जाति… चली है एक ब्राह्मण से इश्क लड़ाने… भाग जा यहां से और दोबारा इस दरवाजे पर मत आना,’’ दहाड़ उठा था करन.
रूबी पीछे चल दी, आगे चल कर उस ने अपने हैंडबैग में छुपा खुफिया कैमरा निकाला और उस में होने वाली रिकौर्डिंग बंद की और अब उस के चेहरे पर विजयी मुसकान थी.
ये वीडियो रिकौर्डिंग उस ने कोर्ट में पेश की, जहां पर करन को अपने पत्नी को मानसिक रूप से प्रताडि़त करने के लिए और दूसरी महिला से संबंध रखने के आरोप में सजा सुनाई गई.
यही नहीं, पंचायत द्वारा एक स्त्री पर अमानवीय व्यवहार करने के जुर्म में पंचायत के सभी सदस्यों को भी सजा दी गई और प्रधान को तत्काल प्रभाव से उस के पद से भी हटा दिया गया.
ये एक औरत की जीत थी, उस के सम्मान की जीत…