जयश्री को गुजरे एक महीना भी नहीं हुआ था कि उस के मम्मीपापा उस के ससुराल आ धमके. लगभग धमकीभरे लहजे में अपने दामाद प्रशांत से बोले, ‘‘राजन मेरे पास रहेगा.’’
‘‘क्यों आप के पास रहेगा? उस का बाप जिंदा है,’’ प्रशांत ने भी उसी लहजे में जवाब दिया.
‘‘उस की परवरिश करना तुम्हारे वश में नहीं,’’ वे बोले.
‘‘बड़े होने के नाते मैं आप की इज्जत करता हूं लेकिन यह हमारा निजी मामला है.’’
‘‘निजी कैसे हो गया? राजन मेरी बेटी का पुत्र है. उस की उम्र अभी मात्र 6 महीने है. तुम नौकरी करोगे कि बेटा पालोगे,’’ प्रशांत के ससुर रामानंद बोले.
‘‘आशा दीदी के हाथों वह सुरक्षित है,’’ प्रशांत ने सफाई दी.
‘‘तो भी यह बच्चा तुम्हें मुझे देना ही होगा,’’ रामानंद ‘देना’ शब्द पर जोर दे कर बोले.
‘‘रवि, तू अंदर जा कर बच्चा ले आ,’’ रवि उन का इकलौता बेटा था. भले ही उम्र के 40वें पायदान पर था तथापि स्वभाव से उद्दंडता गई न थी. आशा दौड़ कर कमरे में गई और राजन को सीने से लगा कर शोर मचाने लगी. प्रशांत ने भरसक प्रतिरोध किया लेकिन रवि ने उसे झटक दिया. रवि की उद्दंडता से नाराज प्रशांत, रवि को थप्पड़ मारने ही जा रहा था कि रामानंद बीच में आ गए. तब तक आसपड़ोस की भीड़ इकट्ठी हो गई. भीड़ के भय से रामानंद ने अपने पांव पीछे खींच लिए. उस रोज वे खाली हाथ लौट गए जिस का उन्हें मलाल था. प्रसंगवश, यह बता देना आवश्यक है कि प्रशांत और जयश्री का अतीत क्या था.
प्रशांत की जयश्री से शादी हुए 16 साल हो चुके थे. इन सालों में जब जयश्री गर्भवती नहीं हुई तो उन दोनों ने टैस्टट्यूब बेबी का सहारा लिया. इस तरह जयश्री की गोद भर गई. जब तक जयश्री मां न बन सकी थी तब तक प्रशांत ने उसे सरकारी नौकरी में जाने की पूरी छूट दे रखी थी. इसी का परिणाम था कि वह एक सरकारी स्कूल में अध्यापिका बन गई. नौकरी मिलते ही जयश्री के मांबाप, भाईबहन सब उस के इर्दगिर्द मंडराने लगे. जयश्री का मायका मोह अब भी नहीं छूटा था. कहने के लिए वह प्रशांत की बीवी थी पर रायमशवरा वह मायके से ही लेती. एक दिन रामानंद जयश्री से बोले, ‘बेटी, तुम्हारे पास रुपयों की कोई कमी न रही. तुम दोनों सरकारी नौकरी में हो.’ जयश्री चुपचाप उन की बात सुनती रही.