ससुराल में पति, सास और ससुरजी के बाद मुझेचौथे सब से प्रिय अपनी छत पर दाना चुगने आने वाले मुक्त मेहमान तोते और गौरैया थे. उस के बाद 5वें नंबर पर यह नीम का पौधा था. यह मेरा इकलौता पुरुष मित्र है.

इस पौधे को मैं ने नीम के बीज से अपने गमले में तैयार किया था. मैं प्रतिदिन इसे अपना स्पर्श और पानी देती हूं, इस की सुखसुविधा का खयाल रखती हूं.

6 माह पहले हमारी शादी हुई थी. यह समय हम ने रूठनेमनाने में बरबाद कर दिया. कोरोना महामारी के कारण पिछले 1 माह से अपने डाक्टर पति योगेश से एक क्षण के लिए नहीं मिली थी. कोरोना के मरीजों की देखभाल में व्यस्त थे.

आज मुझेअपना अकेलापन बहुत बुरा लग रहा था. मैं अपनी विरहपीढ़ा सह नहीं पा रही थी. अपने अकेलेपन से ऊब कर ही मैं ने नीम के इस पौधे से दोस्ती की थी.

यह पौधा मुझेप्रतिदिन ताजा, मुलायम,

हरी पत्तियां देता है. उन्हें चबा कर मैं अपने

शरीर से जहरीले पदार्थों को निकाल कर

तरोताजा महसूस करती हूं. नीम एक अच्छा ऐंटीऔक्सीडैंट है. अब यह बड़ा हो रहा था. कुछ दिनों में यह गमला और घर उस के लिए छोटा पड़ने लगेगा.

शादी के तुरंत बाद पहले भी  मैं ने एक नीम का एक पौधा तैयार किया था. मेरे पति ने उसे मुझ से मांग कर मैडिकल कालेज में अपने औफिस के प्रांगण में लगा दिया था. कुछ दिनों तक उस के हालचाल मुझेदेते रहे, पर अब उस नीम के पौधे से मेरा कोई संपर्क नहीं है.

इस बार अपने वृक्ष मित्र को अपने से

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