‘‘बेटी मेघा, अजय साहब के लिए चाय ले आओ,’’ रंजीत बाबू ने बैरेक से ही आवाज लगाई.
मेघा किचन से ही आवाज देती हुई बोली, ‘‘हां पापा बस 2 मिनट में लाती हूं.’’
वह थोड़ी ही देर में चाय ले आई. मेघा देखने में बहुत खूबसूरत थी. बैरेक में घुसते ही सब से पहले उस ने अजय साहब को नमस्ते की और फिर चाय के कप मेज पर सजा कर वापस नमकीन लाने किचन में चली गई.
अब बातों का सिलसिला चल पड़ा. अजय साहब अफसोस जताते हुए बोले, ‘‘इतनी सीधीसादी लड़की के साथ ये लोग ऐसा व्यवहार कर रहे हैं. अरे, कम से कम सासससुर को तो बीच में कुछ कहना ही चाहिए था...’’
तभी बीच में रंजीत बाबू ने अजय साहब को टोका, ‘‘अरे, छोडि़ए भी अजय साहब अगर मेघा ने मना न किया होता तो मैं मनोज को छोड़ने वाला नहीं था. मैं अपनी बेटी का मुंह देख कर ही रह गया. मेघा कह रही थी कि जब मनोज ही मेरे साथ नहीं रहना चाहता, तो मैं क्यों जबरदस्ती उन के साथ रहूं. और सासससुर क्या करेंगे? जब मेरा दामाद मनोज ही नालायक निकल गया. हमारे समधि और समधन तो ऐसे सरल हैं कि पूछिए मत. आज भी हमारे संबंध उतने ही प्रगाढ़ हैं जितने पहले हुआ करते थे,’’ रंजीत बाबू मेघा के दिन ही खराब बता कर संतोष कर रहे थे.
‘‘सुबहसुबह मेघा को बहुत आपाधापी रहती है. सुबह सब से पहले नाश्ता तैयार करो. फिर खुद तैयार हो कर पापा का नाश्ता टेबल पर लगाओ. उस के बाद खुद नाश्ता कर के अपना टिफिन पैक करो. उस के बाद बच्चों का टिफिन पैक करो. यह मेघा की पिछले 4-5 सालों से एकजैसी दिनचर्या हो गई है.