किसी तरह बस में सवार हुई और किनारे की सीट पर बैठ गई. बस में आनाजाना भी उसे बहुत ही उबाऊ लगता है. पापा अकसर कहते हैं कि बेटा कोई छोटी कार ही ले लो. मेरा रिटायरमैंट का पैसा तो है ही. समय से घर आओगी और दफ्तर भी समय से चली जाओगी.
आजकल जमाना बहुत खराब हो गया है. रात को छोड़ो आजकल दिनदहाड़े हत्या और बलात्कार हो रहे हैं. तुम जब बाहर निकलती हो तो मेरा जी बहुत घबराता है. कल मैं ने अखबार में पढ़ा था कि दिल्ली में एक बुजुर्ग महिला के साथ रेप हो गया है.’’
मगर मेघा बहुत ही स्वाभिमानी है, यह उस के पिता भी बखूबी जानते हैं. वह सबकुछ अपने कमाए पैसों से खरीदती है. घर भी अब उस के पैसों से ही चलता है. किसी प्राइवेट फाइनैंश कंपनी में काम करती है.
वह छेड़छाड़ से भी डरती है. अकेली औरत सब को ‘मुफ्त’ का माल लगती है. कोई हाथ छूने का बहाना ढूंढ़ता है, कोई कमर या कूल्हे का एक दिन बस में किसी ने उस का हाथ पकड़ लिया. खड़े रहने का सहारा ढूंढ़ते हुए. वह सब सम?ाती है. यह और बात है कि कभी किसी से कुछ कहा नहीं.
देशमुख उस दिन फाइल लेने के बहाने उस का हाथ पकड़ना चाहते थे. उस ने तब देशमुख को डपट दिया था, ‘‘आप को शर्म नहीं आती देशमुखजी? आप बालबच्चों वाले आदमी हैं. आप की पत्नी को जब यह सब पता चलेगा तब उस को कैसा लगेगा? मैं आप की बेटी की उम्र की हूं. मुझे घिन आती है आप जैसे लोगों से,’’ और वह फाइल फेंक कर चली गई.
उस दिन के बाद मेघा आज तक देशमुख
के कैबिन में नहीं गई. जब कोई फाइल
देनी होती तो चपरासी के हाथों भिजवाती है. देशमुख और उस के जैसे लोग मेघा को फूटी आंख नहीं सुहाते.
कंडक्टर ने आ कर पूछा, ‘‘टिकट… टिकट… टिकट… लीजिए.’’
मेघा की तंद्रा टूटी. उस ने टिकट लिया और पर्स से पैसे निकाल कर कंडक्टर की ओर बढ़ाए.
किसी को शायद उतरना था. कोई परिवार था. बस वहां काफी देर खड़ी रही.
सामने ढेर सारी सुहागिन औरतें वटवृक्ष
की पूजा कर रही थीं. लालनारंगी साडि़यों में सब कितनी सुंदर लग रही हैं. आपस में बोलतीबतियातीं, हंसीठहाके लगातीं, मांग में केसरिया सिंदूर नाक से ले कर मांग तक भरा हुआ था. कितनी हंसीखुशी से जीवन भरा हुआ है इन का. इस पृथ्वी पर सुख और दुख एक ही साथ पलते हैं. अलगअलग लोग एक ही समय में उस को
जीते हैं.
मेघा का गला रुंध आया था. एक टीस उस के अंदर पैदा होने लगी. उस के अंदर एक घाव है जो रहरह कर टीसता है. ऐसे मौके उसे बेचैनी से भर देते हैं.
मेघा के जीवन में अब तक दुख ही दुख भरे थे, लेकिन उस के जीवन में इधर
2 महीनों से एक सुख का पौधा अंकुराने लगा
था. निशांत से उस की मुलाकात इसी बस में
हुई थी, दफ्तर से लौटते वक्त. वह उस की
बगल में ही किसी बीमा कंपनी में काम करता है. अभी नयानया ही आया है इस शहर में. एकदम नई उम्र का लड़का है निशांत. औफिस से लौटते वक्त उस से इसी बस में रोज मुलाकात होने
लगी थी.
मुलाकातों का यह सिलसिला जब लंबा चला तो एक दिन मोबाइल पर बातचीत भी
होने लगी.
‘‘हाय,’’ मोबाइल पर पहला मैसेज निशांत ने ही किया था.
‘‘हैलो… अब तक सोए नहीं?’’ मेघा ने लिखा.
‘‘नहीं, नींद नहीं आ रही है. कुछ सोच
रहा हूं.’’
‘‘क्या सोच रहे हो?’’ मेघा बोली.
‘‘नहीं, जाने दो तुम बुरा मान जाओगी,’’ निशांत बोला.
‘‘अच्छा, ठीक है, नहीं मानूंगी. अब बोलो भी,’’ मेघा बोली.
‘‘मैं बहुत दिनों से तुम से एक बात कहना चाहता हूं,’’ निशांत बोला.
‘‘बोलो, क्या बोलना चाहते हो?’’ मेघा बोली.
‘‘कैसे कहूं, मुझ से कहा नहीं जा रहा है?’’ निशांत बोला.
‘‘अब कह भी दो. कोई बात कह देने से मन का बोझ हलका हो जाता है,’’ मेघा बोली.
निशांत ने किसी तरह हिम्मत की और अपना मैसेज पूरा किया, ‘‘आई
लव यू… मेघा…’’ लेकिन ऐसा लिखते ही उस का दिल बल्लियों उछलने लगा.
उधर से मेघा का कोई जबाब नहीं मिला.
निशांत परेशान हो गया. वह मेघा के मैसेज का बहुत देर तक इंतजार करता रहा कि उस का कोई जवाब मिले.
इस चक्कर में उसे सारी रात नींद नहीं आई. वह रहरह कर सारी रात मोबाइल चैक करता रहा.
एक दिन बस से लौटते वक्त निशांत मेघा से बोला, ‘‘मुझे सांवला रंग बहुत
पसंद है.’’
‘‘क्यों?’’ उस ने निशांत से ऐसे ही पूछ लिया.
‘‘क्योंकि मुझे बादल बहुत पसंद है. जोकि काले होते हैं. घटाएं भी बहुत पसंद हैं क्योंकि वे स्याह होती हैं और मेघा यानी वर्षा भी मुझे बहुत अच्छी लगती है. ये तीनों स्याह होतेहोते काले
हो जाते हैं. वर्षा के कारण ही इस धरती पर जीवन है, हरियाली है. इसलिए मुझे सांवला रंग बहुत पसंद है.’’
निशांत द्वीअर्थी भाषा में बोल रहा था. जिसे मेघा ने ताड़ लिया था. बोली, ‘‘और क्या पसंद
है तुम्हें?’’
‘‘तुम्हारी आंखों का स्याहपन और कत्थईरंग,’’ निशांत मेघा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोला.
मेघा अपना हाथ धीरे से निशांत के हाथ से छुड़ाते हुए बोली, ‘‘इन कत्थई रंग के खूबसूरत आंखों की रूमानियत में मत बहो निशांत. रंग आदमी को हमेशा धोखा दे जाते हैं और आदमी भी समय के साथ रंग बदलने लगता है और बादल और घटाएं धरती के दुख को ही देख कर रोती हैं. जब आसमान से धरती का दुख नहीं देखा जाता तो वह बादल और घटाओं की आड़ ले कर रोता है,’’ और सचमुच मेघा की आंखें भीगने लगी थीं. वह अपनी आंखें पोंछते हुए बोली, ‘‘तुम्हें मालूम है, मैं तलाकशुदा हूं और मेरे 2 बच्चे भी हैं.’’
‘‘हां जानता हूं.’’
‘‘फिर भी तुम मुझ से शादी करोगे?’’ मेघा उसी अंदाज में बोली.
‘‘हां, फिर भी तुम से ही शादी करूंगा. तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. और… और… मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं… आई लव यू मेघा.’’
‘‘और तुम्हारे घर वालों को कोई ऐतराज नहीं है?’’ मेघा बोली.
‘‘मैं बचपन से अनाथ हूं. एक बूढ़ी चाची हैं. उन्होंने ही मुझे पालपोस कर बड़ा किया है. उन्हें मैं ने बताया था. उन्हें कोई ऐतराज नहीं है,’’ निशांत बोला.
‘‘आई लव यू जैसा सस्ता और हलका शब्द प्रेम के लिए मत यूज करो निशांत, प्लीज. मैं सोच कर बताऊंगी… अपने पापा से पूछ कर,’’ मेघा ने टालने की गरज से कहा.
‘‘मुझे इस का बेसब्री से इंतजार रहेगा,’’ निशांत बस से उतरते हुए बोला.
अभी और 30 मिनट लगेंगे औफिस पहुंचने में. उस ने एक बार फिर घड़ी पर नजर डाली. अभी तो 9 ही बजे हैं.