तभी अचानक उस की नजर बस के साइड मिरर पर पड़ गई. सांवला सा चेहरा. चेहरे पर उदासी पुती हुई थी. सांवलापन एकाएक उस के पूरे बदन में एक जहर की तरह फैल गया और उस का पूरा बदन गुस्से से सुलगने लगा, ‘‘राइज ऐंड लवली, क्रीम किसलिए चाहिए तुम्हें? गोरा होने के लिए... हुंह... जब कुदरत ने तुम्हें सांवला बना दिया है, तो तुम रोजी की तरह कभी गोरी नहीं हो सकती.
तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं करती?’’ मनोज मेघा की एक छोटी सी डिमांड पर गुस्से से बिफरते हुए बोला था.
‘‘क्या यही कारण है कि तुम रोजी से शादी करना चाहते हो? मेरा रंग खराब है इसलिए?’’ मेघा बोली.
‘‘कारण चाहे जो भी रहा हो, लेकिन मैं रोजी से शादी करूंगा और हर हाल में करूंगा. अब हर चीज का कारण बताना मैं तुम्हें जरूरी नहीं समझता,’’ मनोज पलंग से उतर कर
खिड़की के पास चला गया और नीचे बालकनी
में देखने लगा.
उस दिन के बाद वह वापस कभी मनोज के पास नहीं गई. अपने दोनों बच्चों आदि और अवंतिका के साथ वह अपने पिता के घर पर ही रह रही थी.
इस बीच मेघा ने अपने पिता से निशांत के बारे में बताया था कि वह उस से शादी करना चाहता है. रंजीत बाबू अपनी बेटी की समझदारी के कायल थे. एक गलती उन से अपनी जिंदगी में मनोज जैसे दामाद को पा कर हुई थी. वे अपनी गलती का पश्चात्ताप भी करना चाहते थे.
इस तरह सालभर बीत गया. पतझड़ के बाद फिर से वसंत आया. पेड़ों पर नए पत्ते आए. बाग गुलजार हो गए और मेघा ने निशांत को अपने घर बुलाया और अपने पिताजी से मिलवाया. रंजीत बाबू निशांत की प्रगतिशील सोच से बहुत प्रभावित हुए.