‘‘दवाखा लो मां,’’ गर्विता ने अपनी बीमार मां को पानी का गिलास थमाते हुए कहा, ‘‘तुम कभी समय से दवा नहीं खातीं.’’
मां कोई जवाब दे पातीं उस से पहले ही गर्विता का फोन बजने लगा. उस ने देखा धीरज का फोन था.
गर्विता अभी कुछ सोच ही रही थी कि मां बोल उठीं, ‘‘वह इतने दिनों से फोन कर रहा है उठा कर बात क्यों नहीं कर लेती.’’
कुछ सोच कर उस दिन गर्विता ने फोन
उठा लिया.
‘‘तुम्हें कितने दिनों से फोन मिला रहा हूं उठाती क्यों नहीं?’’ उधर से तड़क कर धीरज ने पूछा, ‘‘मां बीमार हैं अपने पोते को बहुत याद कर रही हैं. तुम वापस कब आओगी? कल ही आ जाओ युग को ले कर और हां अब अपनी मां की बीमारी का बहाना मत बनाना. तुम ने 2 साल निकाल दिए... कभी पापा बीमार हैं, कभी मां. ऐसे भी कोई मांबाप अपनी बेटी को घर बैठा लेते हैं. मेरा बेटा भी मु झे ठीक से नहीं जानता. मु झे कुछ नहीं सुनना... कल के कल ही आ जाओ,’’ कह कर धीरज ने फोन काट दिया.
न सलाम न किसी का हालचाल ही पूछा. गर्विता न कुछ बोल सकी न उस ने कुछ बोलने का मौका ही दिया. बस एक हुक्म सा सुना कर फोन काट दिया.
गर्विता ने आंगन में खेलते युग की तरफ देखा तो पुरानी सब यादें ताजा हो गईर्ं. धीरज का फोन जैसे उस के पुराने जख्मों को हरा कर गया. उसे वह दिन याद आ गया जब शादी के 7 साल बाद उसे और धीरज को पता चला था कि वे मातापिता बनने वाले हैं. वे दोनों बेहद खुश थे, वो ही क्या परिवार में सभी खुश थे. सभी को इस खुशखबरी का कब से इंतजार था आने वाले नन्हे मेहमान के लिए.
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