शुभि ने 5 महीने की अपनी बेटी सिया को गोद में ले कर खूब प्यारदुलार किया. उस के जन्म के बाद आज पहली बार औफिस जाते हुए अच्छा तो नहीं लग रहा था पर औफिस तो जाना ही था. 6 महीने से छुट्टी पर ही थी.
मयंक ने शुभि को सिया को दुलारते देखा तो हंसते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘मन नहीं हो रहा है सिया को छोड़ कर जाने का.’’
‘‘हां, आई कैन अंडरस्टैंड पर सिया की चिंता मत करो. मम्मीपापा हैं न. रमा बाई भी है. सिया सब के साथ सेफ और खुश रहेगी, डौंट वरी. चलो, अब निकलते हैं.’’
शुभि के सासससुर दिनेश और लता ने भी सिया को निश्चिंत रहने के लिए कहा, ‘‘शुभि, आराम से जाओ. हम हैं न.’’
शुभि सिया को सास की गोद में दे कर फीकी सी हंसी हंस दी. सिया की टुकुरटुकुर देखती आंखें शुभि की आंखें नम कर गईं पर इस समय भावुक बनने से काम चलने वाला नहीं था. इसलिए तेजी से अपना बैग उठा कर मयंक के साथ बाहर निकल गई.
उन का घर नवी मुंबई में ही था. वहां से 8 किलोमीटर दूर वाशी में शुभि का औफिस था. मयंक ने उसे बसस्टैंड छोड़ा. रास्ते भर बस में शुभि कभी सिया के तो कभी औफिस के बारे में सोचती रही. अकसर बस में सीट नहीं मिलती थी. वह खड़ेखड़े ही कितने ही विचारों में डूबतीउतरती रही.
शुभि एक प्रसिद्ध सौंदर्य प्रसाधन की कंपनी में ऐक्सपोर्ट मैनेजर थी. अच्छी सैलरी थी. अपने कोमल स्वभाव के कारण औफिस और घर में उस का जीवन अब तक काफी सुखी और संतोषजनक था पर आज सिया के जन्म के बाद पहली बार औफिस आई थी तो दिल कुछ उदास सा था.