पता नहीं लोग कहां से टूटे, फटेपुराने जूते उठा लाते हैं और मंचों पर फेंकने लगते हैं. कुछ को जूते लग भी जाते हैं तो कुछ माइक स्टैंड का सहारा ले कर बच भी जाते हैं. जोश में कुछ लोग अपने नए जूते भी उछाल देते हैं. मैं ने भी बचपन में कई बार इमली और अमिया तोड़ने के लिए पत्थर की जगह चप्पलें उछालीं. पर जब वे चप्पलें पेड़ पर अटक गईं और लाख कोशिशों के बाद भी नीचे नहीं गिरीं, तो चप्पलें उछालना छोड़ दिया, क्योंकि चप्पलों का उछालना कई बार बड़ा महंगा पड़ा.
लोग चप्पलजूतों की जगह सड़े टमाटर और सड़े अंडे उछालते हैं, जो सामने वाले को घायल कम रंगीन अधिक कर देते हैं. महंगाई का जमाना है. पुराने जूते काम आ सकते हैं पर सड़े टमाटर फेंकने के अलावा और किसी काम के नहीं रहते. अब इन्हें कहां फेंका जाए, यह आप की जरूरत पर निर्भर करता है.
सड़कों पर जूते चलना आम बात है. सड़कों पर न चलेंगे तो और कहां चलेंगे? हां, जूते स्वयं नहीं चलते, चलाए जाते हैं. चाहे हाथ से चलाए जाएं या फिर पांव से, पर चलेंगे जरूर. पहले जब जूतों का चलन नहीं था तब जूतों से संबंधित मुहावरे भी नहीं बने थे. एक स्पैशल अस्त्रशस्त्र से भी लोग अछूते थे. लड़ाई के लिए बेशक हाथ में कुछ हो या न हो, पर पैरों में जूते हों तो काम चल जाता है. पैर से निकाला और चालू. चलाने के लिए किसी बटन को दबाने की आवश्यकता नहीं. एक जूता चलता है तो सैकड़ों जूते चलने को बेताब हो जाते हैं.
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