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लेखक- विनय कुमार सिंह

रोरो कर जरीना का बुरा हाल था. बेटी कल से वापस नहीं लौटी थी. शाम जैसेजैसे रात की तरफ बढ़ रही थी, उस का दिल बैठा जा रहा था. रोज की ही तरह वह घर से कालेज के लिए निकली थी. घर से कालेज वैसे तो ज्यादा दूर नहीं था लेकिन औटो और बस दोनों लेने पड़ते थे उसे वहां पहुंचने के लिए. उस ने बेटी को गेट तक छोड़ा था और जब वह औटो में बैठ गई थी तो जरीना वापस आ गई थी.

तकरीबन रोजाना ही अखबार में अपहरण और ह्यूमन ट्रैफिकिंग की खबरें छपती रहती थीं. पढ़ कर जरीना कई बार बहुत दुखी भी हो जाती थी और अकसर उसे गुस्सा भी आ जाता था. कोसने लगती थी सब को, कानून व्यवस्था, समय, लड़कों और सब से ज्यादा अपनेआप को. वजह थी, उस का लड़की की मां होना और ऐसी लड़की की जिस का पिता नहीं है.

यह इंसानी फितरत ही है जिस में कमजोर व्यक्ति अकसर अपनेआप को सब से पहले कारण मान लेता है किसी घटना के लिए, चाहे वह उस के लिए जिम्मेदार हो या न हो. यह स्वभावगत कमजोरी होती है, खासतौर से महिलाओं की, क्योंकि उन के पास ज्यादा विकल्प नहीं होते. और यही वजह थी कि जरीना भी अपनेआप को इस का जिम्मेदार मानने लगी थी.

रात आंखों में ही बीती और हर खटके पर उसे लगता जैसे बेटी आ गई हो. लेकिन सुबह की रोशनी ने जब उस के कमरे में प्रवेश किया. वह कुरसी पर ही औंधी पड़ी हुई थी. अब तक पड़ोसियों को भी खबर हो चुकी थी और हर कोईर् अपने हिसाब से कयास लगा रहा था. सब की अपनीअपनी राय और अलगअलग सलाह.

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