घर पर अकसर मैं अकेला होता... अकेला होने पर एक भी पल ऐसा न गुजरता जब मेरे दिमाग में कुमुद न होती. मैं यह निरंतर समझने की कोशिश करता रहता कि आखिर कुमुद जैसी सुंदर, युवा, पढ़ीलिखी और सरकारी नौकरी में लगी, बुद्धिमान लड़की ने जयेंद्र जैसे बदसूरत, अपने से दोगुनी उम्र वाले 2 बच्चों के पिता से शादी कैसे कर ली? जयेंद्र को इस महल्ले में लोग सब से बेवकूफ, प्रतिभाहीन, खब्ती आदमी मानते थे.
लोभी इतना कि बीमार बीवी का उस ने ठीक से इलाज इसलिए नहीं कराया क्योंकि इलाज में पैसा ज्यादा खर्च होता जबकि शहर में उस के पास 2-3 बड़े गोदाम थे, जिन का अच्छाखासा किराया आता था. उस का अपना निजी टैंट हाउस भी था. बच्चे पढ़ने में कमजोर थे इसलिए कुमुद उन्हें ट्यूशन पढ़ाने आया करती थी. जयेंद्र के पास पैसे की कोई कमी नहीं थी पर अखबार वह खरीदता नहीं था. उस के घर में बच्चों की किताबकापियों के अलावा और कोई किताब कहीं दिखाई नहीं देती थी.
कुमुद से मेरा परिचय कुछ इस तरह हुआ कि एक दिन पड़ोस में दांतों के एक नकली डाक्टर के गलत इंजेक्शन लगाने से मरीज की मृत्यु हो गई जिस के कारण उस के घर वालों ने डाक्टर की दुकान पर हमला कर दिया. लड़ाईझगड़ा, गालीगलौज और मारपीट के समय कुमुद वहीं से गुजर रही थी. वह घबरा कर मेरे चबूतरे पर चढ़ आई. मैं ने उस को आतंकित और कांपते देखा तो उस से कह दिया कि आप भीतर घर में चली जाएं. यहां झगड़ा बढ़ सकता है. कुछ सकुचा कर वह अंदर चली आई और फिर बातें हुईं.