यह सारा कुछ हम ने इस तरह से किया कि ठेले वाले भैया को लगे कि पास की दुकान पर बैठा हुआ वह लड़का हमारा परिचित है.
चाट खाते हुए हम ने ठेले वाले भैया से कहा, ‘‘भैया, आप इस के पैसे उन से ले लेना, वे हमारे पहचान वाले हैं,’’ मैं ने अपनी उंगलियों के इशारे से उस लड़के की ओर इशारे किया. चाट वाले ने मेरे द्वारा लक्ष्य किए गए उस लड़के की ओर देखा और सिर हिला कर हामी भर दी.
चाय पीने के बाद वह लड़का ठेले के पास खड़ी अपनी बाइक से लग कर खड़ा हो गया और हमारी तरफ ही देखने लगा. मैं ने मुसकरा कर उसे बाय कहा और सरस्वती के साथ तेजतेज कदमों से चलती हुई कालेज के गेट से अंदर दाखिल हो गई. अंदर आते वक्त मैं ने वापस बाहर पलट कर देखा वह लड़का सच में उस ठेले वाले को पैसे दे रहा था.
अचानक मुझे अपने किए पर शर्मिंदगी महसूस हुई. मैं भागती हुई कालेज गेट से बाहर निकली ताकि ठेले वाले को उस लड़के से पैसा लेने से रोक सकूं, लेकिन मेरे वहां पहुंचने से पहले ही वह लड़का पैसे दे कर अपनी बाइक स्टार्ट कर चुका था. जाते हुए उस ने एक बार फिर से मेरी ओर मुसकरा कर देखा था. ऐसा लगा जैसे वह जानबू झ कर हमारी प्लानिंग का हिस्सा बना था, वह जानबू झ कर बेवकूफ बना था.
इस घटना के घटे हुए करीब 2 हफ्ते बीत चुके थे. मैं और सरस्वती दोनों इस घटना को भूल कर अपनी आने वाले परीक्षा की तैयारी में जुटे हुए थे कि एक दिन कालेज से लौटने के बाद हम ने वही बाइक होस्टल के गेट पर खड़ी देखी. वही लड़का अंदर डाइनिंग एरिया के साथ लगे कुरसी पर होस्टल वार्डन के पास बैठा था.