धीरेधीरे शादी के 11 साल गुजर गए. पर मैं एक बेटे की मां न बन सकी. मेरी सिर्फ एक बेटी थी. इस बीच दीर्घा से सुबोध का तलाक हो गया. एक दिन मैं ने सुबोध को अपनी मां से कहते सुना, ‘‘क्यों न दीर्घा को वापस ले आया जाए?’’
‘‘तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या? बेहतर होगा तुम परिस्थितियों से सम झौता करो. बेटी की परवरिश बेटे की तरह करो.’’
‘‘मम्मी, मु झे बेटा चाहिए.’’
‘‘डाक्टर ने क्या कहा?’’
‘‘वे कुछ भी कहें. परंतु मैं अब और इंतजार नहीं कर सकता. मु झे बेटा चाहिए.’’
बेटे की चाह में तुम 2 बार दीर्घा का ऐबौर्शन करा चुके हो. यह अच्छी बात नहीं.
अब क्षण भर की चुप्पी के बाद सुबोध बोला, ‘‘क्यों न दीर्घा से अपना बेटा वापस ले आया जाए?’’
‘‘कैसी बेतुकी बात कर रहो हो? जिद कर के तुम ने दीर्घा के रहते सुधा के साथ विवाह किया. इस से उस की जिंदगी तो तुम ने बरबाद कर ही दी. अब उस के बच्चे को ला कर घर की शांति भंग करना चाहते हो?’’
‘‘कुछ भी हो मैं अपने बच्चे को नहीं छोड़ सकता.’’
‘‘यह कभी संभव नहीं होगा. कोई मां
अपने कलेजे के टुकड़े को इतनी आसानी से नहीं देगी. बच्चा 11 साल का हो गया है. वह आएगा ही नहीं.’’
‘‘तब मैं दीर्घा से भी साथ चलने के लिए कहूंगा.’’
‘‘यह कभी संभव नहीं.’’
इन बातों के बाद जो मैं ने सुनी थी, सुबोध मेरे कमरे में आया. उस का दोहरा चरित्र देख कर मेरा मन टूट चुका था.
‘‘मैं ने तुम दोनों की बातें सुन ली है,’’ मेरा स्वर तल्ख था.
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