आज औफिस में लंच करते हुए चारों सहेलियों फलक, दीप्ता, वमिका और मनुश्री बहुत उत्साहित थीं, जबसे औफिस नई जगह गोरेगांव शिफ्ट हुआ था तब से औफिस के कई लोगों को घर बदलने की जरूरत आ पड़ी थी.
ये चारों अभी जहां रहती थीं, वहां से औफिस पास ही था. अब गोरेगांव से सब का घर दूर पड़ रहा था तो चारों ने फैसला किया था कि एक अच्छा सा फ्लैट औफिस के आसपास ही किराए पर ले कर शेयर कर लेंगीं. आज औफिस के बाद 3-4 फ्लैट देखने जाने वाली थीं, ब्रोकर से बात हो गई थी.
मुंबई शहर को देखने के कई नजरिए हो सकते हैं, बाहर से आने वालों को इस शहर की रंगीनियां भाती हैं, किसी को यहां का किसी से लेने देने में इंटरेस्ट न होना भाता है, किसी को यहां का स्ट्रीट फूड अच्छा लगता है, किसी को यहां के फैशन, किसी को इस शहर का एक अलग मिजाज पसंद आता है. एक मुंबई में कई मुंबई बसती हैं. कई इलाके हैं, कई बिल्डिंग्स हैं, कई सोसाइटी हैं. वैसे तो हर शहर का एक मिजाज होता है पर मुंबई पर कहने के लिए अकसर बहुत कुछ होता है जैसाकि इस समय ये चारों बात कर रही हैं, फलक कह रही है, ‘‘यार. मैं तो कल एक फ्लैट देखने गई तो फ्लैट के मालिक ने मेरा मुसलिम नाम देख कर ही मुंह बना लिया, पूछा, ‘मुसलिम हो.’ मैं ने कहा, ‘हां.’ तो नालायक बोला, ‘मैं अपना फ्लैट किसी मुसलिम को नहीं दे सकता,’ सोचो, यार. यह मुंबई है, एक महानगर. यहां लोग ऐसी सोच रख सकते हैं, अब देख रही हूं जब घर से बाहर रहने की नौबत आई है, नहीं तो मैं तो इसी शहर में पली बढ़ी हूं, इन सब चीजों से कभी वास्ता ही नहीं पड़ा था. अजीब सा लग रहा है.’’