नलिनी लगभग 10 वर्षों बाद अपने ननिहाल बरेली जा रही थी. वह बहुत खुश थी. रास्ते में फरुखाबाद में लगे टैंट की नगरी को देख कर उसे अपना बचपन याद आ गया जब वह अपनी मम्मी और नानी के साथ कई बार रामनगरिया मेला घूमने आया करती थी. उसे हमेशा से मेले की भीड़भाड़ और वहां पर साधु/महात्मा लोगों का जमघट आकर्षित करता रहा है.
उन की अजीबोगरीब वेशभूषा-कहीं नागा बाबा तो कहीं मचान पर बैठा साधु, कोई बाबा एक पैर पर खड़ा रह कर तपस्या करता होता आदिआदि. वह बचपन से इन दृश्यों को देख कर रोमांचित हो उठती थी. हालांकि अब उसे यह सब ढकोसला और पाखंड लगता लेकिन वह अपने को आज भी नहीं रोक पाई थी. मेले में लगने वाले हर माल और तरहतरह के झोले देख वह अपने बचपन के दिनों में खो गई.
तभी एक साधुओं के पंडाल के बाहर एक आदमकद पोस्टर को देख कर वह चौंक पड़ी. यह चेहरा तो पहले कहीं देखादेखा सा और पहचाना सा लग रहा है. बहुत कोशिश के बाद याद कर पाने में असमर्थ हो जाने पर जिज्ञासावश वह उस पंडाल के अंदर पहुंच गई. वहां पर स्टेज पर बहुत बड़ा सा कटआउट लगा था और नाम लिखा था मां आनंदेश्वरी.
वह उलझीउलझी हुई सी एक स्टौल पर गई और चाय पी लेकिन मन उस कटआउट में ही उलझ रहा था. उस ने उस कटआउट का एक फोटो खींच लिया था. वह अपनी मामी से जरूर इस के बारे में पूछेगी, यह सोचती हुई वह बरेली पहुंच गई थी और फिर सबकुछ भूल गई. जिन गलियों में वह इक्खटदुक्खट और आइसपाइस खेल खेला करती थी, अब वहां बड़ीबड़ी अट्टालिकाएं और शोरूम खुल चुके थे.
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