अजयऔफिस के लिए निकला तो आरती भी उसे कार तक छोड़ने नीचे उस के साथ ही उतर आई. यह उस का रोज का नियम था. ऐसा दृश्य कहीं और देखने को नहीं मिलता था कि मुंबई की सुबह की भागदौड़ के बीच कोई पत्नी रोज अपने पति को छोड़ने कार तक आए. आरती का बनाया टिफिन और अपना लैपटौप बैग पीछे की सीट पर रख आरती को मुसकरा कर बाय बोलते हुए अजय कार के अंदर बैठ गए.

आरती ने हाथ हिला कर बाय किया और अपने रूटीन के अनुसार सैर के लिए निकलने लगी तो कुछ ही दूर उस की नैक्स्ट डोर पड़ोसिन अंजलि भी औफिस के लिए भागती सी चली जा रही थी. आरती पर नजर डाली और कुछ घमंड भरी आवाज में कहा, ‘‘हैलो आरती, भई सच कहो, सब को औफिस के लिए निकलते देख दिल में कुछ तो होता होगा कि सभी कुछ कर रहे हैं, काश मैं भी कोई जौब करती? मन तो करता होगा सुबह तैयार हो कर निकलने का. यहां तो लगभग सभी जौब करती हैं.’’

आरती खुल कर हंसी, ‘‘न बाबा, तुम लोगों को औफिस जाना मुबारक. अपन तो अभी सैर से आ कर न्यूज पेपर पढ़ेंगे, आराम करेंगे, फिर बच्चों को कालेज भेजने की तैयारी.’’

‘‘सच बताओ आरती, कभी दिल नहीं  करता कामकाजी स्त्री होने का?’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं करता. कमाने के लिए पति है मेरे पास,’’ आरती हंस दी, फिर कहा, ‘‘तुम थकती नहीं इस सवाल से? कितनी बार पूछ चुकी हो?’’

‘‘फिर तुम किसलिए हो?’’ कुछ कड़वे से लहजे में अंजलि ने पूछा तो उस के साथ तेज चलती हुई आरती ने कहा, ‘‘अपने पति को प्यार करने के लिए… लो, तुम्हारी बस आ गई,’’ आरती उसे बाय कह कर सैर के लिए निकल गई.

बस में बैठ कर अंजलि ने बाहर झंका. आरती तेज कदमों से सैर कर रही थी.

रोज की तरह 1 घंटे की सैर कर के जब तक आरती आई, पीहू और यश कालेज जाने के लिए तैयार थे. फै्रश हो कर बच्चों के साथ ही उस ने नाश्ता किया, फिर दोनों को भेज न्यूज पेपर पढ़ने लगी. उस के बाद मेड के आने पर रोज के काम शुरू हो गए.

आरती एक पढ़ीलिखी हाउसवाइफ थी. नौकरी न करने का फैसला उस का खुद का था. वह घरपरिवार की जिम्मेदारियां बहुत संतोष और खुशी से निभा कर अपनी लाइफ में बहुत खुश थी. आराम से रहती, खूब हंसमुख स्वभाव था, न किसी से शिकायतें करने की आदत थी, न किसी से फालतू उम्मीदें.

वह वर्किंग महिलाओं का सम्मान करती थी, सम?ाती थी कि इस महानगर की भागदौड़ में घर से निकलना आसान काम नहीं होता, पर उसे यह बात हमेशा अजीब लगती कि वह वर्किंग महिलाओं का सम्मान करती है तो आसपास की वर्किंग महिलाएं अंजलि, मीनू और रीता उस के हाउसवाइफ होने का मजाक क्यों बनाती हैं? उसे नीचे क्यों दिखाती हैं?

उसे याद है जब वह शुरूशुरू में इस सोसाइटी में रहने आई तो अंजलि ने पूछा था, ‘‘कुछ काम नहीं करतीं आप? बस घर में रहतीं?’’

उस के पूछने के ढंग पर आरती को हंसी आ गई थीं. उस ने अपने स्वभाव के अनुसार हंस कर जवाब दिया था, ‘‘भई, घर में भी जो काम होते हैं, उन्हें करती हूं, अपना हाउसवाइफ होना ऐंजौय करती हूं.’’

‘‘तुम्हारे पति तुम्हें कहते नहीं कि कुछ काम करो बाहर जा कर?’’

‘‘नहीं, वे इस में खुश रहते हैं कि जब वे औफिस से लौटें तो मैं उन्हें खूब टाइम दूं, उन्हें भी घर लौटने पर मेरे साथ समय बिताना अच्छा लगता है.’’

‘‘कमाल है.’’

आरती हंस दी पर उसे यह समझ आ गया था कि इन लोगों को आसपास की हाउसवाइफ की लाइफ बिलकुल खराब लगती है. यहां तो मेड भी आ कर उत्साह से पहला सवाल यही पूछती है कि मैडम, काम पर जाती हैं क्या?

उस के आसपास वर्किंग महिलाएं ही ज्यादा थीं जो पूरा दिन घर में रहने वाली महिलाओं को किसी काम का न समझतीं. अजय और आरती ने प्रेम विवाह किया था.

आरती के कोई जौब न करने का फैसला अजय को ठीक लगा था. इस में उसे कोई भी परेशानी नहीं थी. अंजलि, मीनू, रीता के पति भी एकदूसरे को अच्छी तरह जानते थे. वह तो किसी पार्टी में किसी के दोस्त के यह पूछने पर कि भाभीजी क्या करती हैं तो आरती को निहारता हुआ हंस कर कह देता कि उस का काम है मुझे प्यार करना और वह बखूबी इस काम को अंजाम देती है.

आसपास खड़ी हो कर यह बात सुन रहीं अंजलि, मीनू और रीता इस बात पर एकदूसरे को देखतीं और इशारे करतीं कि यह देखो यह भी अजीब ही है.

ऐसी ही एक पार्टी में मीनू के पति ने बात छेड़ दी, ‘‘आरतीजी, आप बोर नहीं होतीं घर रह कर? मीनू तो घर में रहने पर बहुत जल्दी बोर हो जाती है. यह तो बहुत ऐंजौय करती है अपने पैरों पर खड़ी होने को. हर काम अपनी मरजी से करने में एक अलग ही खुशी होती है. आप तो काफी ऐजुकेटेड हैं, आप क्यों कोई जौब नहीं करतीं?’’

आरती ने खुशदिली से कहा, ‘‘मुझे तो शांति से घर रहना पसंद है. मैं ने तो शादी से पहले ही अजय से कह दिया था, मैं कोई जौब नहीं करूंगी, मैं बस घर में रह कर अपनी जिम्मेदारियां उठाऊंगी. फिर आरती ने और मस्ती से कहा, ‘‘मैं क्यों करूं कोई काम, मेरा पति है काम करने के लिए, वह कमाता है, मैं खर्च करती हूं मजे से, और मजे की बातें आज बता ही देती हूं, मैं अपने मन में अजय को आज भी पति नहीं, प्रेमी ही  समझती हूं अपना जो मेरे आसपास रहे तो मुझे अच्छा लगता है, मैं नहीं चाहती कि मैं कोई जौब करूं और वह मुझ से पहले आ कर घर में मेरा इंतजार करे.

‘‘किसी भी मेड के हाथ का बना खाना खा कर मेरे पति और मेरे बच्चों की हैल्थ खराब हो, मुझे तो अजय का हर काम अपने हाथों से करना अच्छा लगता है. आप लोगों को पता है कि मैं लाइफ की किन चीजों को आज भी ऐंजौय करती हूं. जब अजय नहा कर निकलें तो मैं उन का टौवेल उन के हाथ से ले कर तार पर टांग दूं, उन का टिफिन कोई बोझ समझ कर नहीं, मुहब्बत से पैक करूं और बदले में पता है मुझे क्या मिलता है, आरती बताते हुए ही शर्मा गई, ‘‘अपने लिए ढेर सी फिक्र और प्यार. असल में आप लोग घर में रहने को जितनी बुरी चीज सम?ाने लगे हैं, उतनी बुरी बात यह है नहीं.

‘‘मैं जब वर्किंग लेडीज की रिस्पैक्ट कर सकती हूं तो आप लोगों को एक हाउसवाइफ के कामों की वैल्यू क्यों समझ नहीं आती. कल हमारी पीहू भी अपने पैरों पर खड़ी होगी, जौब करेगी, यह उस की चौइस ही होगी कि उसे क्या पसंद है. हां, वह किसी हाउसवाइफ का मजाक कभी नहीं उड़ाएगी, यह भी जानती हूं मैं.’’

सब चुप से हो गए थे. आरती के सभ्य शब्दों में कही बात का असर जरूर हुआ था. सब इधरउधर हुए तो रीता ने कहा, ‘‘आरती, मुझे तुम्हें थैंक्स भी बोलना था. उस दिन जब घर पर रिमी अकेली थी, हम दोनों को औफिस से आने में देर हो गई थी तो तुम ने उसे बुला कर पीहू के साथ डिनर करवाया, हमें बहुत अच्छा लगा.’’

‘‘अरे, यह कोई बड़ी बात नहीं है, बच्चे तो बच्चे हैं, पीहू ने बताया कि रिमी अब तक अकेली है तो मैं ने उसे बुला लिया था.’’

मीनू आरती के ऊपर वाले फ्लैट में रहती थी. उस ने पूछ लिया, ‘‘आरती, तुम ने जो अजय को औफिस में कल करेले की सब्जी दी थी, उस की रैसिपी देना. अमित ने भी टेस्ट की थी. बोल रहे थे कि बहुत बढि़या बनी थी. ऐसी सब्जी उन्होंने कभी नहीं खाई थी और पता है अमित बता रहे थे कि अजय तुम्हारी बहुत तारीफ करते हैं.’’

अमित और अजय एक ही औफिस में थे. आरती हंस पड़ी, ‘‘अजय का बस चले तो वे रोज करेले बनवाएं, रैसिपी भी बता दूंगी और जब भी कभी बनाऊंगी, भेज भी दूंगी.’’

थोड़े दिन आराम से बीते. काफी दिन से कोई आपस में मिला नहीं था. कोरोना वायरस का प्रकोप शुरू हो गया था. सब वर्क फ्रौम होम कर रहे थे. अब अंजलि, मीनू, रीता की हालत खराब थी, न घर में रहने का शौक, न आदत. सब घर में बंद. लौकडाउन ने सब की लाइफ ही बदल कर रख दी थी, न कोई मेड आ रही थी, न कोई घर के काम संभाल पा रहा था. अब सब आपस में बस कभीकभी फोन ही करते.

एक आरती थी जिस ने कोई भी शिकायत किसी से नहीं की. जितना काम होता, उस में किसी की थोड़ी हैल्प ले लेती. अजय तो अब और हैरान था कि जहां उस का हर दोस्त फोन करते ही शुरू हो जाता कि यार, कहां फंस गए, औफिस के काम करो. फिर घर में लड़ाई भी होने लगी है ज्यादा. वहीं वह आरती को धैर्य से सब संभालता देखता. वह भी थोड़ेबहुत काम सब से करवा लेती पर ऐसे नहीं कि घर में जैसे कोई तूफान आया है.

आराम से जब बच्चे औनलाइन पढ़ते, वह खुद औफिस के कामों में बिजी होता, आरती सब शांति से करती रहती. इस दौरान तो उस ने आरती के और गुण भी देख लिए. वह उस पर और फिदा था.

अमित परेशान था. घर से काम करने पर तो औफिस के काम ज्यादा रहने लगे थे. ऊपर

से उसे अपने बड़े बालों पर बहुत गुस्सा आता रहता. सारे सैलून बंद थे. कहने लगा, ‘‘एक तो इतनी जरूरी वीडियो कौल है आज, औफिस के कितने लोग होंगे और मेरे बाल देखो, शक्ल ही बदल गई घर में रहतेरहते. क्या हाल हो गया है बालों का.’’

उस की चिकचिक देख मीनू ने कहा, ‘‘चिढ़ क्यों कर रहे हो. सब का यही हाल होगा. बाकियों ने कहां कटवा रखे होंगे बाल. सब ही परेशानी में हैं आजकल.’’

अमित को बहुत देर झंझलाहट होती रही. उस दिन की मीटिंग शुरू हुई तो सभी के बाल बढ़े हुए थे. पहले तो सब कलीग्स इस बात पर हंसे, फिर अचानक अजय के बहुत ही फाइन हेयर कट पर सब की नजर गई तो सब बुरी तरह चौंके.

एक कलीग ने कहा, ‘‘यह तुम्हारा हेयरकट कहां हो गया इतना बढि़या. कहां हम सब जंगली लग रहे हैं और तुम तो जैसे अभीअभी किसी सैलून से निकले हो.’’

अजय ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आरती ने किया है यह और मेरा ही नहीं, बच्चों का भी.’’

सब दोस्त आरती की तारीफ करने लगे थे. अमित अपने लुक पर बहुत ध्यान देता था. जब वह काम से फ्री हुआ, उस ने एक ठंडी सांस ली. उठ कर फ्रैश हुआ और शीशे के सामने खड़ा हो कर खुद को देखने लगा.

मीनू भी वहीं लैपटौप पर कुछ काम कर रही थी. पूछा, ‘‘क्या निहार रहे हो?’’

‘‘अपने बाल.’’

‘‘क्या कोई और काम नहीं है तुम्हें? हो गई न मीटिंग? सब के ऐसे ही बढ़े हुए थे न?’’

‘‘अजय का हेयरकट बहुत जबरदस्त था.’’

‘‘क्या?’’ मीनू चौंकी.

‘‘हां, आरती ने अजय और बच्चों का बहुत शानदार हेयरकट कर दिया है. मुंह चमक रहा था अजय का, यह औरत क्या है.’’

मीनू ने ठंडी सांस ले कर कहा, ‘‘यह पिया बावरी है.’’

अमित को हंसी आ गई, ‘‘डियर, कभी तुम भी बन जाओ पिया बावरी.’’

मीनू ने हाथ जोड़ दिए, मुसकरा कर कहा, ‘‘आसान नहीं है.’’

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