अगले दिन सुबह वंदना को यह देख कर सचमुच आश्चर्य हुआ कि कविता का भाई उसे मायके ले जाने के लिए आया हुआ है.
विकास के हावभाव से उस की नाराजगी साफ झलक रही थी. इस कारण घर में कोई ज्यादा बोल भी नहीं रहा था.
कविता ने जब विदा ली तब वंदना उसे यह सुनाने से चूकी नहीं, ‘‘भाभी, मुझे मालूम है कि आप मेरे यहां आ कर रहने से खुश नहीं हो. मेरे विदा होते ही आप का कमर दर्द भी ठीक हो जाएगा और यहां वापसी भी आ जाओगी.’’
कविता की आंखों में जो आंसू उभरे उन्हें नाटक बता कर वंदना ने खारिज कर दिया. कविता के न रहने पर वंदना ने घर के कामकाज में अपनी मां का हाथ बंटाना खुशीखुशी किया. विकास उस से नाराज बना रहा. कमला भी चुपचुप रहती. अपने पिता में भी उस ने बदलाव महसूस किया. वे भी गंभीर और सोच में डूबे नजर आते.
मायके आ कर वंदना इस बार न ज्यादा आराम कर सकी न मौजमस्ती. लौटने वाले दिन उसे एक और झटका लगा.
कमला ने उसे अपने पास बैठा कर चिंतित लहजे में जानकारी दी, ‘‘वंदना,
तुम्हारे भाई और पिता दोनों को बिजनैस में अचानक तगड़ा नुकसान हुआ है. कर्जा लेने की नौबत आ गई है.’’
‘‘उफ, यह तो बड़ी बुरी खबर है मां,’’ वंदना की आंखों में फौरन चिंता के भाव उभरे.
‘‘इस बार मनोज से तुम हमारी तरफ से हाथ जोड़ कर माफी मांग लेना.’’
‘‘माफी किस बात के लिए?’’
‘‘हम अपनी मजबूरी के चलते तुम्हारे साथ न कोई सामान भेज पाएंगे, न ही रुपए दे पाएंगे.’’
‘‘इस बात की तुम सब फिक्र न करो.
पहले क्या तुम लोगों ने उन्हें इतना सारा नहीं दे रखा है…’’ सब जल्दी ठीक हो जाएगा और उन सब की अगर कोई शिकायत हुई तो वह दूर हो जाएगी.’’
‘‘जब तक बिजनैस संभल नहीं जाता हम तुम से मिलने भी नहीं आ पाएंगे. तुम अपना
ध्यान रखना बेटी,’’ कमला की आंखों में आंसू छलक आए.
‘‘मेरी फिक्र मत करो मां. मुझे अपने घर में कोई दिक्कत न कभी हुई है न आगे होगी.’’
इसी तरह के आश्वासन अपने पिता व भाई को देते हुए वंदना ने उन दोनों की भी चिंता दूर करने की कोशिश दिल से करी.
वंदना उन के सामने खूब मुसकराती रही, पर वापस घर में कदम रखते हुए उस का मन भी अजीब सी बेचैनी से भर उठा.
यह पहला अवसर था जब वंदना के सामान में सासससुर, ननद व पति को देने के लिए कई सारे उपहार मौजूद नहीं थे. सब को उम्मीद रहती थी कि घर में एसी लगवाने को वह रुपए साथ लाई होगी, पर उस का पर्स खाली था. मनोज के पिता का फोन मनोज के पास आया कि उस के पास कुछ पैसे हों तो वह एक नया सोफा खरीद ले.
‘‘बिजनैस में ज्यादा नुकसान हो जाने के कारण इस बार मैं ने पापा और भैया को अपने ऊपर खर्चा करने से बिलकुल रोक दिया. आप यह बुरी खबर सब को बता देना,’’ मनोज को यह बताते हुए वंदना ने खुद को शर्मिंदा होते महसूस किया, तो उसे अपने ऊपर तेज गुस्सा आया. वह अकेले मनोज के साथ तो रहती थी पर मनोज के मातापिता, भाई और बहन वंदना के लाए सामान को बड़े हक से इस्तेमाल करते थे.
मनोज ने वंदना से कुछ कहा तो नहीं, पर वंदना ने उस की आंखों की चमक को साफ बुझते देखा.
उस रात जब दोनों ड्राइंगरूम में बैठे थे तो वंदना ने बताया कि खाली हाथ आने के प्रति बाकी लोगों की प्रतिक्रिया भी उस के प्रति बड़ी खराब रही.
‘‘आजकल सैंसैक्स उछाल मार कर आसमान छू रहा है और समधीजी का बिजनैस घाटे में चला गया. अपनी समझ में यह बात बिलकुल नहीं आई,’’ मनोज ने अपने पिता की बात दोहराई.
‘‘देखोजी, इस बात का जिक्र करना बंद करो कि खाली हाथ मायके से आई है. यों दोनों घरों की बाहर वालों के सामने बेइज्जती कराने से क्या फायदा है,’’ उस की सास की नाखुशी उन की आवाज की चुभन में साफ झलक रही थी.
‘‘बढ़ती गरमी में इस साल भी सड़ना पड़ेगा,’’ कह मनोज ने उसे यों गुस्से से घूरा जैसे एसी न लगवा कर वंदना ने कोई जुर्म किया हो.
किसी बाहर वाले के सामने वंदना के मायके से खालीहाथ आने का जिक्र नहीं करेंगे, इस बात को कई बार उस के सामने दोहराने के बावजूद किसी ने भी इस पर अमल नहीं किया.
हर रिश्तेदार, पड़ोसी व परिचित के सामने यह बात कह दी गई कि बहू के मायके से मिलने वाली चीजों का दुनिया को लालच हो, पर हमें बिलकुल नहीं है. हमारी वंदना इस बार मायके से खाली हाथ आई है, पर हम मैं से किसी के माथे पर न कोई शिकन है, न मुंह पर शिकायत का एक शब्द.
वंदना ने 2 दिन बाद रात को मनोज से शिकायत करी, ‘‘आप के घर वालों ने यह क्या तमाशा बना रखा है. मुंह से वे कुछ भी कहें,
पर मन लालची हैं सब के और यह बात मेरी समझ में अब अच्छी तरह से आ गई है. यह देख कर मेरे मन को गहरा सदमा लगा है कि उन सब का मेरे प्रति प्यार, उन के व्यवहार की मिठास मेरे मायके से आने वाले सामान और रुपए के कारण ही थी.’’
‘‘मेरे घर वाले लालची नहीं हैं. उन्हें अफसोस इस बात का है कि तुम्हारे मम्मीपापा ने रीतिरिवाज न निभाते हुए तुम्हें यों खाली हाथ भेज दिया. इस कारण हमारी भी बेइज्जती हुई है,’’ मनोज के इस कठोर जवाब को सुन कर वंदना रोंआसी सी हो गई.
कड़वी, चुभने वाली बातें उसे और भी कईर् मामलों में सुनने को मिलने लगीं. उसे नौवल पढ़ने का शौक था. इस बार से पहले मायके जाने से पहले उसे अपने इस शौक को पूरा करने का खूब मौका खुशीखुशी दे देते थे. घर का बहुत सा काम कर देते थे. मनोज की मां भी आए दिन खाना बना देती थी. एक वाई भी आती थी.