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अब सब का व्यवहार बदल गया. उस ने नौवल खोला नही कि मनोज कोई शिकायत भरी बातें सुना कर उस के लिए कोई न कोई काम निकाल लेता.

‘‘समझदार पत्नी न नौवल पढ़ती है, न देर तक सोती है. अब तुम नईनवेली नहीं रही हो, वंदना. घर के कामों की जिम्मेदारी संभालनी शुरू करो अब,’’ सासससुर की नई टोकाटाकी की शुरूआत से वंदना का दिल तो बहुत कुढ़ता, पर पति के आदेशा का पालन करने को वह मजबूर थी.

मनोज औफिस से लौटता तो रोज ही उसे खूब सुनाता कि किस की पत्नी क्याक्या खाना टिफिन में देती.

‘‘वंदना तुम्हें ढंग से सब्जी तक बनानी नहीं आती. धेले भर का काम नहीं सिखाया तुम्हारी मां ने. तुम्हें पूरा दिन सोने को मिले, तो भी कम है. तुम्हारा अमीर बाप की बेटी होना मेरे किस काम का.’’

ऐसी शिकायतों व रोजरोज होने वाले क्लेशों के कारण वंदना और मनोज के संबंध बिगड़ने लगे.

वंदना अपना पक्ष बयां करती, तो मनोज ध्यान से उस की बातें सुनने के बजाय फौरन चिड़ और गुस्से का शिकार हो जाता. गुस्से में आ कर उस ने एक शाम वंदना के कई नौवल फाड़ दिए.

‘‘तुम सुधर जाओ, नहीं तो किसी दिन मेरा हाथ तुम पर उठ जाएगा.’’

एक दिन मनोज के मुंह से यह धमकी सुनने के बाद वंदना घंटों रोई और पूरे 3 दिनों तक उस ने उस से सीधे मुंह बात नहीं करी.

वंदना का अपने पति व ससुराल वालों के बदले व्यवहार को देख कर खूब खून फुंकता तो दूसरी तरफ उस के मन में अपने मातापिता व भाई के प्रति भी गहरी शिकायत व नाराजगी बढ़ती गई.

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