उस के प्रेम की निजता तभी तक थी जब तक उस की खबर किसी और को नहीं लगती. परंतु हाय, उस की आंखों ने चुगली कर दी थी. माता को इन दिनों पुत्र का खोयाखोया रहना नहीं भा रहा था. बात पिता तक पहुंची, व्यावहारिक तथा इंद्रियगम्य देवेन को पुत्र के दिल का हाल समझते ज्यादा देर नहीं लगी.
कुमाऊं के छोटे से गांव के एक धर्मपरायण परिवार में उन का जन्म हुआ था. पिता थे एक शिव मंदिर के पुजारी और माता थी सरल गृहिणी जिन्हें मुंह खोलने की स्वतंत्रता भोजन के समय ही थी. पहाड़ के मोटे चावल और मडुवे की रोटी को निगल वे झल के तीखे उतारचढ़ाव पार कर स्कूल पढ़ने जाते थे. उन के पिता इच्छा के अनुरूप कई पुत्रों के पिता तो अवश्य बने, परंतु जीवित एकमात्र देवेन ही रह पाए थे.
उस गांव के प्रजातंत्र में भी इतना साहस नहीं था कि वह पंडित श्री सूर्यनारायण की बात काट दे. परंतु फिर भी पिता के विरोध के बावजूद अपने ही पौरुष की बैसाखियों को टेकते वह मेधावी छात्र एक दिन छलांग लगा कर देहरादून का प्रसिद्ध हीरा व्यवसायी बन गया था.
स्वयं के अनुभवों ने उन की सोच को आधुनिक और प्रगतिशील बना दिया था. उन का अपने पुत्र के साथ व्यवहार भी मित्रवत ही था. इसलिए अपने पुत्र के पास जा कर उस की प्रेयसी के बारे में पूछने में उन्हें कोई संकोच नहीं हुआ. परंतु प्रेयसी की उम्र जान कर उन का प्रगतिशील हृदय भी धिक्कार उठा था. वे जानते थे नवल की उम्र में विमोह होना प्राकृतिक है. इसलिए क्रोध उन्हें उस प्राध्यापिका पर आ रहा था. बड़ी ही चतुराई से उन्होंने नवल को नानी से मिलने के लिए भेज दिया और स्वयं उस मोहिनी से मिलने पहुंच गए.