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‘‘औफिस  से लौटते हुए भावेश सीधे मौल की ओर चला गया. उसे अपने लिए एक नई ड्रैस खरीदनी थी. अगले हफ्ते हैड औफिस में एक बड़ा अधिवेशन होने वाला था. वह खरीदारी कर के जैसे ही शौप से मुड़ा सामने से उसे एक खूबसूरत लड़की आते दिखाई दी. छोटी सी स्कर्ट और स्लीवलैस टौप में दुबलीपतली लड़की बहुत खूबसूरत लग रही थी. अचानक उस की नजरें उस पर टिक गईं. उसे वह चेहरा जाना पहचाना सा लगा. जिस से वह चेहरा मेल खा रहा था उस की इस रूप में कल्पना नहीं की जा सकती थी.

भावेश का मन यह मानने के लिए भी तैयार नहीं था. उस ने भी एक गहरी नजर भावेश पर डाली. अनायास उस के मुंह से निकल गया, ‘‘रीवा.’’

उस ने पलट कर देखा. नजरें मिलते ही वह उसे पहचान गई और पलट कर सीधे भावेश के गले लग गई. बोली, ‘‘भावेश तुम? उम्मीद नहीं थी तुम से इस तरह कभी मुलाकात होगी.’’

हड़बड़ा कर भावेश ने इधरउधर देखा. शुक्र था वहां कोई नहीं था. जल्दी से अपने को अलग करते हुए बोला, ‘‘मैं भी तुम्हें पहचान नहीं पाया. मन इस बात को स्वीकार नहीं कर पा रहा था. इसीलिए अनायास तुम्हारा नाम मुंह से निकल गया.’’

‘‘अच्छा ही हुआ. मुझे भी तुम पहचाने से लगे थे. तुम्हारी ओर से कोई परिचय न पा कर मैं ने यह बात अपने दिमाग से झटक दी. कितने बदल गए हो तुम भावेश.’’

‘‘तुम ने कभी अपने ऊपर नजर डाली है. तुम क्या थी और क्या हो गई?’’

‘‘कुछ भी तो नहीं बदला है. बस कपड़े और स्टाइल बदल गया.’’

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