सचमुच लड़कियां बड़ी भोली होती हैं. हाय, इतनी भोलीभाली लड़कियां हमारे जमाने में नहीं होती थीं. होतीं तो क्या हम प्यार का इजहार करने से चूकते. तब लड़कियां घरों से बाहर भी बहुत कम निकलती थीं. इक्कादुक्का जो घरों से निकलती थीं, वे बस 8वीं तक पढ़ने के लिए. मैं गांवदेहात की बात कर रहा हूं. शहर की बात तो कुछ और रही होगी.

हाईस्कूल और इंटरमीडिएट में मेरे साथ एक भी लड़की नहीं पढ़ती थी. निगाहों के सामने जो भी जवान लड़की आती थी, वह या तो अपने गांव की कोई बहन होती थी या फिर कोई रिश्तेदार जिस से नजर मिलाते हुए भी शर्म आती थी. इस का मतलब यह नहीं कि गांव में प्रेमाचार नहीं होता था. कुछ हिम्मती लड़केलड़कियां हमारे जमाने में भी होते थे जो चोरीछिपे ऐसा काम करते थे और उन के चर्चे भी गांव वालों की जबान पर चढ़े रहते थे.

लेकिन तब की लड़कियां इतनी भोली नहीं होती थीं, क्योंकि उन को बहलानेफुसलाने और भगा कर ले जाने के किस्से न तो आम थे, न ही खास. अब जब मैं बुढ़ापे के पायदान पर खड़ा हूं तो आएदिन न केवल अखबारों में पढ़ता हूं, टीवी पर देखता हूं, बल्कि लोगों के मुख से भी सुनता हूं कि हरदिन बहुत सारी लड़कियां बलात्कार का शिकार होती हैं. लड़कियां बयान देती हैं कि फलां व्यक्ति या लड़के ने बहलाफुसला कर उस के साथ बलात्कार किया और अब शादी करने से इनकार कर रहा है. यहां वास्तविक घटनाओं को अपवाद समझिए.

 

तभी तो कहता हूं कि आजकल की पढ़ीलिखी, ट्रेन, बस और हवाई जहाज में अकेले सफर करने वाली, अपने मांबाप को छोड़ कर पराए शहरों में अकेली रह कर पढ़ने वाली लड़कियां बहुत भोली हैं.

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