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शलभआज औफिस लेट पहुंचा था. तेजी से अपने कैबिन की तरफ बढ़ा तो ऐसा लगा जैसे बगल से मदमस्त खुशबू का ?ांका गुजरा हो. शलभ ने तुरंत मुड़ कर देखा. वह एक लड़की थी जिस के काले घुंघराले लंबे बाल नागन की तरह उस की पीठ पर लहरा रहे थे. वह लिफ्ट की तरह बढ़ गई थी. उसे पीछे से देख कर ही शलभ सम?ा गया था कि लड़की बेहद खूबसूरत है और औफिस में नई आई है.

अभी अपनी सीट पर बैठ कर उस ने 2-4 मेल ही किए थे कि वही लड़की दरवाजा नौक करने लगी. शलभ ने उसे अंदर आने का इशारा किया. हलके पीले टौप और ब्लू जींस में उस का सुनहरा रंग खिल उठा था. ऐसा लगा जैसे कमरे में रोशनी फैल गई हो.

हौले से मुसकराती हुई वह शलभ के सामने बैठ गई और बोली, ‘‘दरअसल मैं इस कंपनी की नई ब्रैंड मैनेजर हूं और कुछ औफिशियल डिस्कशन के लिए आई थी.’’

‘‘जरूर मगर पहले हम एकदूसरे का नाम जान लेते तो बेहतर होता…’’ शलभ ने एकटक उस की तरफ देखते हुए कहा.

‘‘जी हां, सौरी मैं नाम बताना भूल गई. मेरा नाम नेहा है और आप का नाम मैं जानती हूं. काफी तारीफ भी सुनी है आप की.’’

‘‘रियली. वैसे बहुत प्यारा है आप का नाम.’’

‘‘थैंक्स.’’

फिर दोनों देर तक डिस्कशन करते रहे. शलभ को नेहा पहली नजर में ही पसंद आ गई. जल्द ही दोनों के बीच दोस्ती का रिश्ता बन गया. 1-2 महीने के अंदर ही वे लंच एकसाथ करने लगे और शाम में घर के लिए भी एकसाथ ही निकलते. शलभ अपनी कार में नेहा को उस के घर के पास ड्रौप करता और फिर आगे बढ़ जाता. न कभी नेहा ने उसे घर आने का न्योता दिया और न ही शलभ ने इस के लिए कोई इंटरैस्ट दिखाया. नेहा भी कभी शलभ के घर नहीं गई. वे एकदूसरे की पर्सनल लाइफ के बारे में कभी डिस्कशन नहीं करते थे. एक डिस्टैंस मैंटेन करते हुए भी दोनों एकदूसरे का साथ ऐंजौय कर रहे थे.

एक दिन शलभ ने बताया कि उसे औफिशियल मीटिंग के लिए हैदराबाद

जाना है. उस ने नेहा को भी साथ चलने की सलाह दी. नेहा ने अपने टीम हैड से बात की और इस ट्रिप को बिजनैस मीटिंग के रूप में अप्रूव करा लिया. हैदराबाद में दोनों अलगअलग कमरे में रुके. औफिशियल काम निबटाने के बाद दोनों ने हैदराबाद में बहुत अच्छा समय साथ बिताया. खास जगहों की सैर की. मार्केट जा कर शौपिंग भी की.

अब तो अकसर दोनों औफिशियल मीटिंग के लिए साथ जाने लगे. कई दफा औफिस से जल्दी फ्री हो कर भी घूमने निकल जाते. कोई नई फिल्म लगती तो दोनों फिल्म देखने भी जाते. नेहा को कुछ शौपिंग करनी होती तो भी वह शलभ को ही साथ लेती. शलभ कहीं न कहीं अब नेहा को ले कर गंभीर होने लगा था. वह उसे अपनी जीवनसाथी बनाने के बारे में भी सोचने लगा था. मगर वह नेहा के दिल की बात नहीं जानता था. इधर नेहा भी शलभ के साथ दिल से जुड़ चुकी थी. शलभ के बिना रहने की वह कल्पना भी नहीं करना चाहती थी.

एक दिन नेहा शलभ के साथ बैठी कौफी पी रही थी. आज शलभ उस से अपने दिल की बात कहने का बहाना ढूंढ़ रहा था. काफी सोचविचार कर शलभ ने कहा, ‘‘यार नेहा मैं सोच रहा था कि अब तुम्हें अपने पेरैंट्स से मिलाने का समय आ गया है. आर यू कंफर्टेबल?’’

‘‘श्योर,’’ प्यार से नेहा ने जवाब दिया. उस के चेहरे पर हया की लाली फैल गई थी.

तभी अचानक उस का मोबाइल बजा. उस

ने जैसे ही कौल रिसीव किया कि उस का चेहरा बन गया. वह काफी परेशान दिखने लगी. तुरंत कुरसी से उठती हुई बोली, ‘‘यार शलभ कुछ इमरजैंसी है मु?ो तुरंत घर जाना पड़ेगा. मैं निकलती हूं.’’

‘‘मगर बात क्या है नेहा मु?ो बताओ? कोई परेशानी है? मैं ड्रौप कर देता हूं तुम्हें.’’

‘‘नहीं कोई ऐसी बात नहीं. मैं चली जाऊंगी. वैसे भी तुम्हारी एक मीटिंग है, इसलिए तुम परेशान मत हो. आई विल मैनेज,’’ कह कर वह तेजी से निकल गई.

नेहा ने एक कैब की और जल्द घर पहुंच गई. सूजी बरामदे में बहुत बेचैनी के साथ चहलकदमी कर रही थी. नेहा को देखते ही वह दरवाजा खोलते हुए बोली, दीदी पता नहीं पीयूष को क्या हो गया है. दोपहर से ही तेज बुखार है. आज तो उस ने खाना भी नहीं खाया.

‘‘मगर तुम ने पहले फोन क्यों नहीं किया?’’ पीयूष का माथा छूते हुए नेहा ने कहा.

‘‘दीदी मु?ो लगा डाक्टर अभिषेक की दवा से वह ठीक हो जाएगा. फिर आज आप की कोई अर्जेंट मीटिंग भी थी न.’’

‘‘पर मैं ने कहा हुआ है न सूजी कि पीयूष से बढ़ कर मेरे लिए कुछ नहीं. अच्छा यह बता डाक्टर अभिषेक आए थे चैकअप के लिए तो बीमारी क्या बताई उन्होंने?’’

‘‘कह रहे थे वायरल ही लग रहा है.’’

‘‘ठीक है तुम जाओ और जल्दी से जूस ले कर आओ,’’ सूजी को किचन में भेज कर वह डाक्टर को फोन लगाने लगी.

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