डाक्टर से पीयूष के बारे में जरूरी डिस्कशन कर वह बेटे को दवा की अगली खुराक देने लगी. पीयूष बेचैन था और रहरह कर रो रहा था. देर रात तक वह पीयूष का सिर गोद में लिए बैठी रही. फिर उसी की बगल में सो गई.
दरअसल, पीयूष नेहा का 10 साल का बेटा था. नेहा एक तलाकशुदा महिला थी. उस का पति विपुल हैदराबाद में मैनेजर था. विपुल से नेहा ने लव मैरिज की थी. दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे. घर वालों के खिलाफ जा कर नेहा ने यह शादी कर ली थी. दोनों ने एक खूबसूरत शादीशुदा जिंदगी की शुरुआत भी की. उन के प्यार का प्रतीक जब नेहा के गर्भ में आया तो विपुल खुशी से पागल हो गया. उसे बच्चों से बहुत लगाव था. वह अपने भाई के बच्चों को भी हर समय गोद में लिए रहता. यही वजह थी कि जब नेहा के प्रैगनैंट होने की खबर मिली तो उस ने अपने पूरे औफिस में मिठाई बंटवाई.
निश्चित समय पर नेहा ने एक खूबसूरत बेटे को जन्म दिया. उस दिन विपुल ने अपने महल्ले में ढोलनगारे बजवाए. नाचगाने का प्रोग्राम करवाया. नेहा और बच्चे के स्वागत में पूरे घर को सजाया. खिलौनों से पूरा कमरा भर दिया. बहुत प्यार से दोनों ने बच्चे का नाम पीयूष रखा. पीयूष बड़ा होने लगा मगर जल्द ही दोनों को यह बात सम?ा आने लगी कि वह एक नौर्मल चाइल्ड नहीं है.
डाक्टर से चैकअप के बाद पता चला कि वह डाउन सिंड्रोम की समस्या से ग्रस्त है. डाक्टर ने यह भी बताया कि डाउन सिंड्रोम की समस्या जेनेटिक होती है. विपुल को याद आया कि नेहा के सगे चाचा को भी यह समस्या रही है. डाक्टर से मिलने और सब जान लेने के बाद विपुल का व्यवहार नेहा और उस के बच्चे से एकदम बदल गया. वह बहुत चिड़चिड़ा रहने लगा. उस ने फिर एक और डाक्टर से बात की. इस डाक्टर ने भी वही बातें बताईं.
विपुल को इस तरह परेशान देख कर नेहा उसे सम?ाने लगी, ‘‘देखो विपुल
बच्चे की बीमारी पर हमारा वश नहीं. हमें कुदरत ने जैसी भी संतान दी है उसे ही हम अपना सारा प्यार देंगे. बहुत से लोगों के साथ ऐसा होता है. इस सच को ऐक्सैप्ट कर लो विपुल तभी खुश रह पाओगे.’’
‘‘नहीं मैं न इस सच को ऐक्सैप्ट कर सकता हूं और न ही इस बच्चे को. यह मेरा फाइनल डिसिजन है.’’
‘‘यह क्या कह रहे हो? इसे ऐक्सैप्ट नहीं करोगे? क्या मतलब है तुम्हारा?’’ नेहा ने परेशान स्वर में पूछा.
‘‘यही मतलब है कि मु?ो यह बच्चा नहीं चाहिए,’’ मुंह फेरते हुए विपुल ने कहा.
‘‘नहीं चाहिए तो क्या जान से मारोगे इस नन्ही सी जान को? देखो कैसे मुसकरा रहा है. इस पर तुम्हें प्यार नहीं आता विपुल?’’
‘‘नहीं नेहा मु?ो इस पर प्यार नहीं आता. मैं इस की शक्ल भी देखना नहीं चाहता. मैं एक स्पैशल चाइल्ड का बाप कहलाना पसंद नहीं करता. हम इसे किसी अनाथालय में छोड़ आएंगे.’’
‘‘नहीं मैं ऐसा नहीं करने दूंगी. यह मेरा बच्चा है. मैं ने इसे 9 महीने कोख में रखा है. अपने खून से सींचा है.’’
‘‘तो ठीक है तुम इसे या मु?ो किसी एक को चुन लो. वैसे भी तुम इसी तरह के बीमार बच्चों को जन्म दोगी. तुम्हारे खानदान में ही दोष है. मैं तुम से अलग होना चाहता हूं.’’
विपुल के मुंह से इतने कड़वे शब्द सुनने और उस के प्यार की असलियत सम?ाने के बाद नेहा कुछ नहीं कह पाई. उस ने फैसला कर लिया. वह विपुल से अलग हो गई और बच्चे के साथ नई जिंदगी की शुरुआत की. कुछ ही दिनों में उस ने एक अच्छी कंपनी में जौब भी शुरू कर दी. वैसे भी वह एमबीए की पढ़ाई कर रही थी, इसलिए नौकरी मिलने में दिक्कत नहीं हुई.
इस बात को आज 8 साल बीत चुके थे. पीयूष पढ़ाई करने लगा था. नेहा उसे
समयसमय पर थेरैपी के लिए ले जाती. नेहा ने अपनी मेहनत और लगन से औफिस में भी
अच्छा रुतबा बना लिया था. उसे बहुत तेजी से तरक्की मिली थी और उस ने अपना 3 बीएचके का फ्लैट ले लिया था. पीयूष की देखभाल के लिए उस ने सूजी नाम की फुलटाइम मेड लगा रखी थी. वह पीयूष का पूरा खयाल रखती और घर के सदस्य की तरह रहती. यही वजह थी
कि नेहा को औफिस संभालने में दिक्कत नहीं आती थी.
हाल ही में कंपनी की तरफ से उसे तरक्की दे कर नई ब्रांच में भेजा गया था जहां उस की मुलाकात शलभ से हुई. कहीं न कहीं अब वह शलभ के साथ एक खूबसूरत जीवन की कल्पना करने लगी थी. मगर जिंदगी उसे कुछ और ही सच दिखाने वाली थी.
दरअसल, उस दिन औफिस से नेहा के जाते ही शलभ के दोस्त और कुलीग अरुण एवं शालिनी ने प्रवेश किया. उन्होंने शलभ के कमरे से नेहा को हड़बड़ाए हुए निकलते देख लिया था.
आते ही अरुण ने शलभ से पूछा, ‘‘क्या हुआ, नेहा इतनी जल्दी कहां चली गई?’’
‘‘पता नहीं यार. अचानक कोई फोन कौल आई और वह परेशान सी चली गई. कुछ बताया भी नहीं.’’
‘‘आई गैस, उस के बेटे की तबीयत खराब होगी.’’
‘‘बेटा?’’ शलभ ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘हां, एक दिन बताया था उस ने. उस दिन भी वह परेशान थी. मेरे पूछने पर कहने लगी कि बेटे की तबीयत ठीक नहीं और उसे मेड के भरोसे छोड़ कर आना पड़ा है.’’
‘‘क्यों घर में और कोई नहीं बच्चे को संभालने के लिए?’’ अरुण ने सवाल किया.
‘‘नहीं वह अकेली रहती है.’’
‘‘मगर उसे बेटा है, ऐसा कैसे? क्या वह शादीशुदा है?’’ शलभ को एक ?ाटका सा लगा.
‘‘फिलहाल उस का स्टेटस डिवोर्सी का है. उस ने पति से कई साल पहले तलाक ले लिया था. अकेली ही बच्चे को पाल रही है.’’
‘‘पर उस ने मु?ो तो कुछ नहीं बताया,’’ शलभ की आंखों में कई सवाल थे.
‘‘इस औफिस में ये सब बातें केवल मु?ो ही पता हैं. दरअसल मैं और नेहा पिछले
औफिस में भी साथ काम करते थे. वहां हमारी अच्छी दोस्ती हो गई थी. मैं तो उस के घर भी गई हूं. बहुत बड़ा और सुंदर घर है उस का.’’
‘‘और बच्चा? बच्चा कितना बड़ा है?’’ शलभ ने सवाल किया.
‘‘बच्चा वैसे तो 8-10 साल का होगा मगर वह स्पैशल चाइल्ड है न सो अब भी संभालना कठिन होता है उसे.’’
‘‘स्पैशल चाइल्ड?’’
‘‘हां. उस का बेबी जन्म से ही डाउन सिंड्रोम की समस्या से पीडि़त है. मैं तो उस की हिम्मत की दाद देती हूं. इतनी बड़ी जिम्मेदारी वह
अकेली उठा रही है. सुना है उस के पति ने भी इस बच्चे की वजह से ही उसे तलाक दिया था. वह इस बच्चे को किसी अनाथालय में छोड़ने को तैयार नहीं हुई और अकेले ही उसे पालने का फैसला लिया.’’
नेहा के बारे में ये सारी जानकारी पाने के बाद शलभ खुद को ठगा हुआ सा महसूस करने लगा. जिस लड़की को वह अपना पहला प्यार सम?ा रहा था वह तो शादीशुदा और एक बच्चे की मां निकली. बच्चा भी साधारण नहीं बल्कि एक स्पैशल चाइल्ड. वह पूरी रात सो नहीं सका. उसे इस बात का भी अफसोस था कि ये सारी बातें उसे दूसरों से पता चलीं. खुद नेहा ने उसे कुछ नहीं बताया. जिस रिश्ते को वह इतना सीरियसली लेने लगा था वह रिश्ता तो ?ाठ की बुनियाद पर टिका निकला. उसे नेहा से नफरत सी होने लगी. वैसे भी एक तलाकशुदा बीमार बच्चे की मां को वह अपना सारा जीवन नहीं सौंप सकता. बात ज्यादा बड़ी नहीं थी सो उस के लिए कदम पीछे करना आसान था. उस ने फैसला ले लिया था कि वह अब नेहा से दूरी बढ़ा लेगा.
नेहा 2 दिन औफिस नहीं आई. पहले अगर नेहा एक दिन भी औफिस नहीं आती थी तो शलभ 4 बार फोन कर डालता था. मगर इस बार उस ने हालचाल भी नहीं पूछा. यह बात नेहा को खटक रही थी.