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सबकुछ इसी तरह हौलेहौले चल रहा था कि कल अचानक औफिस में हलचल मच गई. सचिवालय से आई एक मेल ने स्टाफ को पंख लगा दिए. जिस ने भी इसे पढ़ा वह उड़ाउड़ा जा रहा था. दरअसल, विभाग की तरफ से अगले सप्ताह जयपुर में 5 दिन का एक ट्रेनिंग कार्यक्रम संचालित होने वाला है जिस में हरेक संभाग से3 से 4 कर्मचारियों को भाग लेने का प्रस्ताव है. स्वयं के अतिरिक्त 3 अन्य कर्मचारियों के नाम अजय को प्रस्तावित करने हैं.

अब चूंकि सारा कार्यक्रम सरकारी खर्चे पर हो रहा है तो कोई क्यों नहीं जाना चाहेगा. आम के आम और गुठलियों के दाम. 5 दिन शाही खानापीना और स्टार होटल में रहना. बचे हुए समय में जयपुर घूमना. भला ऐसे स्वर्णिम अवसर को कौन नहीं लपकना चाहेगा.मानव के लिए मंत्रीजी के यहां से फोन आ गया था, इसलिए एक नाम तो तए हो ही गया. नैना ने अपने नये होने का हवाला देते हुए काम सीखने की इच्छा जाहिर की और इमोशनल ब्लैकमेल करते हुए लिस्ट में अपना नाम जुड़वा लिया.

नैना का नाम जोड़ने में खुद अजय का भी स्वार्थ था. इस बहाने वह नैना और मानव के बीच की कैमिस्ट्री नजदीक से सम झ पाएगा. चौथे नाम के लिए अजय ने अपने चमचे मयंक का नाम चुना और लिस्ट सचिवालय मेल कर दी.चूंकि अजमेर से जयपुर की दूरी अधिक नहीं है. इसलिए चारों ने एकसाथ अजय की कार से जाना तय किया. अजय गाड़ी चला रहा था और मयंक उस के साथ आगे बैठा था. पीछे की सीट पर मानव और नैना बैठे थे. गाड़ी तेज रफ्तार से चल रही थी.

अजय का ध्यान बीचबीच में शीशे की तरफ जा रहा था जहां से वह मानव और नैना के मचलते हुए हाथ साफसाफ देख पा रहा था. उन की हरकतें उसे बेचैन कर रही थीं. उस का मन तो कर रहा था कि दोनों को वहीं हाई वे पर ही उतार दे, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकता था क्योंकि नौकरी तो उस की भी अभी बहुत बाकी थी और वह नदी में रह कर मगरमच्छ से बैर मोल लेना तो अफोर्ड नहीं कर सकता था. सभी कर्मचारियों के रुकने की व्यवस्था आरटीडीसी के होटल तीज में की गई थी और ट्विन शेयरिंग के आधार पर कमरे दिए गए थे.

प्रशिक्षणार्थियों में महिलाओं की संख्या अपेक्षाकृत कम थी और विषम भी.संयोग से नैना को जो कमरा अलौट हुआ उस में कोई अन्य महिला नहीं थी. वे चारों सुबह लगभग 9 बजे जयपुर पहुंचे. चैकइन करने के बाद नाश्ता और फिर 10 बजे से 1 बजे तक प्रशिक्षण. 1 बजे से 2 बजे तक लंच और फिर5 बजे तक क्लास. इस बीच 11 और 4 बजे चाय की भी व्यवस्था थी. शेष 4 दिन भी यही व्यवस्था रिपीट होनी थी.शाम को 5 बजे के बाद मानव और नैना गुलाबी नगरी घूमने निकल गए. मानव उसे राजमंदिर सिनेमा में फिल्म दिखाने ले गयाऔर उस के बाद उसे स्पैशल तिवाड़ी की चाट खिलाई.

रात 10 बजे दोनों खिलखिलाते हुएट्रेनिंग सैंटर आए. हालांकि लोगों की निगाहों से बचने के लिए वे दोनों आगेपीछे अंदर घुसे थे लेकिन अजय ने उन्हें एकसाथ कैब से उतरते देख लिया था. मानव की हठधर्मी पर उस का खून उबल रहा था, लेकिन क्या करता. इस तरह एकसाथ घूमने से कुछ भी साबित नहीं होता. वह खुद भी तो जोधपुर वाली रिया मैडम के साथ शाम को कौफी पीने जीटी गया ही था.अगले 3 दिन फिर यही हुआ. कभी कनक गार्डन तो कभी हवामहल. कभी मोती डूंगरी तो कभी अजमेरी गेट. दोनों साथसाथ घूम रहे थे. आज ट्रेनिंग का अंतिम दिन था.

क्लास के बाद मानव और नैना शहर घूमने निकल गए. अजय भी मयंक के साथ छोटी चौपड़ की तरफ निकल गया. छोटी चौपड़ के बाद वे लोग जौहरी बाजार की तरफ आ गए. अजय अपनी पत्नी के लिए साड़ी पसंद करने लगा. खानेपीने के बाद जबवे लोग वापस ट्रेनिंग सैंटर पहुंचेतो नैना के कमरे की लाइट जली हुई थी.‘‘आज ये दोनों जल्दी वापस आ गए लगते हैं,’’

अजय ने कहा.‘‘कौन जाने, गए ही नहीं हों. जब मनोरंजन का साधन घर में ही मौजूद हो तो फिर बाहर क्यों जाना?’’ मयंक ने बाईं आंख दबा कर चुटकी लेते हुए कहा तो अजय की छठी इंद्री जाग उठी. वह नैना के कमरे की तरफ चल दिया. वह यह जानने के लिए जिज्ञासु हो उठा कि बंद कमरे में मानव है या नहीं और यदि है तो उन के बीच क्या चल रहा है. बिना अधिक विचार किए उस ने दरवाजा नोक कर दिया. कुछ पल की खामोशी के बाद अंदर हलचल हुई.

शायद खिड़की का पल्ला भी थोड़ा सा खुला था और उस में से किसी ने बाहर  झांका भी था. चुप्पी के बाद अचानक भीतर से अजय को कुछ आवाजें भी सुनाई दीं.‘‘यह क्या कर रहे हो, छोड़ो मु झे,’’ नैना गुस्से में कह रही थी.‘‘नैना… क्या हुआ नैना. कौन है तुम्हारे साथ?’’

कहते हुए अजय जोरजोर से दरवाजा पीटने लगा. तभी दरवाजा खुला और मानव फुफकारता हुआ बाहर लपका.‘‘क्या हुआ? क्या किया मानव ने,’’ अजय ने पूछा. हालांकि उसे यह भी दोनों की कोई चाल ही लग रही थी, लेकिन फिर भी वह अनभिज्ञ बना रहा. नैना सिसक रही थी.‘‘हुआ तो कुछ नहीं लेकिन हो बहुत कुछ जाता. मैं तो इसे अपना अच्छा दोस्त सम झ रही थी लेकिन यह तो,’’

नैना ने शेष शब्द आंसुओं के हवाले कर दिए.‘‘तुम फिक्र मत करो. मानव के खिलाफ अपने विभाग की विशाखा कमेटी में शिकायत दर्ज करवाओ. मैं तुम्हारे पक्ष में गवाही दूंगा,’’ कहते हुए अजय ने उसे सांत्वना दी.‘‘रहने दीजिए सर, होनाजाना तो कुछ है नहीं बेकार ही मेरी बदनामी हो जाएगी,’’  नैना ने अपनेआप को संयय करते हुए कहा.‘‘अरे, यह क्या बात हुई भला.

महिलाएं शिकायत नहीं करतीं तभी तो पुरुषों के हौसले बढ़ते हैं. फिर महिलाएं ही सरकार से शिकायत भी करती हैं कि सरकार कुछ करती नहीं. सरकार को क्या सपने आते हैं कि फलांफलां के साथ कहीं कुछ गलत हुआ है. तुम शिकायत करो बल्कि अभी इसी वक्त मु झे लिख कर दो, मैं मानव के खिलाफ कार्यवाही करता हूं,’’ अजय ने नैना को शिकायत करने के लिए राजी किया. क्या करती नैना. इस समय उसे अपनी इज्जत बचानी प्राथमिकता लग रही थी.चूंकि अजय के सामने यह सारी घटना घटित हुई थी, इसलिए इसे  झुठलाया भी नहीं जा सकता था. बात नैना की इज्जत पर बन आई थी. यदि अजय की बात नहीं मानती तो सीधेसीधे दोषी करार दे दी जाती. खुद की इज्जत बचाने की खातिर उसे अजय की बात माननी ही पड़ी.

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