अभी कुछ ही देर पहले ट्रेन लंदन के पैडिंगटन स्टेशन से औक्सफोर्ड रेलवे स्टेशन पर आई थी. सोफिया ने अपना बैग पीठ पर डाला और सूटकेस के साथ कोच से नीचे आई. कुछ

देर प्लेटफौर्म पर इधरउधर देखा फिर दिए गए दिशानिर्देश के अनुसार टैक्सी स्टैंड की ओर

चल पड़ी.

उस दिन औक्सफौर्ड में मूसलाधार बारिश हो रही थी. टैक्सी स्टैंड पर पहले से ही काफी लोग टैक्सी की कतार में खड़े थे. औक्सफोर्ड

एक छोटा शहर है जो अपनी यूनिवर्सिटी के लिए दुनियाभर में जाना जाता है. वहां स्टूडैंट्स पैदल

या साइकिल से चलते हैं. सोफिया के आगे एक हमउम्र लड़का भी सामान के साथ खड़ा था. उसे लगा कि यह लड़का भी जरूर यूनिवर्सिटी जा

रहा होगा.

करीब 20-30 मिनट पर एक टैक्सी आई. उस ने लड़के से पूछा, ‘‘अगर मैं गलत नहीं तो तुम भी औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी जा रहे हो? हम लोग बहुत देर से खड़े हैं टैक्सी के लिए. अगर तुम्हें एतराज न हो तो हम दोनों टैक्सी शेयर

कर लें.’’

‘‘मु झे कोई एतराज नहीं बशर्ते टैक्सी वाला भी मान जाए,’’ लड़के ने कहा और कुछ पल उसे घूरने लगा.

‘‘क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रहे हो? तुम्हें प्रौब्लम है तो रहने दो, मैं टैक्सी का इंतजार कर लूंगी.’’

‘‘सौरी. मु झे कोई प्रौब्लम नहीं होगा. उम्मीद है तुम फेयर शेयर करोगी तो मु झे फायदा ही है . फेयर नहीं शेयर करोगी तब भी मु झे कोई प्रौब्लम नहीं है,’’ बोल कर लड़का मुसकरा पड़ा.

फिर दोनों टैक्सी में सवार हुए. लड़के ने कहा, ‘‘मैं सैंडर हूं. मैं सैंडर सिट्रोएन नीदरलैंड से हूं पर इंग्लिश मेरा विषय रहा है और मैं वहां के इंग्लिश स्पीकिंग क्षेत्र से हूं. बाद में हम लोग स्कौटलैंड चले आए पर अब मेरे पेरैंट्स नहीं हैं.’’

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