जमानाकहां से कहां पहुंच गया पर मिसेज शर्मा अभी भी पुरानी सदी का अजूबा हैं. मगर सम?ाती अपनेआप को मौडर्न. यह बात और है कि नईनई चीजों से उन्हें डर लगता है, पर पंगा घर में आने वाली हर नई वस्तु से लेना होता है. फिर चाहे वह स्मार्ट फोन हो, आईपौड हो या सीडी अथवा डीवीडी प्लेयर. वैसे तो अब ये सब आउट औफ फैशन हो गए हैं.

कितना हसीन था वह दिन जब शर्मा परिवार तैयार हो कर स्मार्ट फोन लेने गया था. एक तूफान से बेखबर बच्चों ने स्मार्ट फोन पसंद कर लिया और घर पहुंचतेपहुंचते उस का असर मिसेज शर्मा के सिर चढ़ कर बोलने लगा था.

जैसे ही फोन की घंटी बजी तो उन्होंने ऐसे चौंक कर उठाया मानो वह कोई बम हो, जो अगर जल्दी नहीं उठाया तो फट जाएगा.

बच्चे भी बातबात पर कहते, ‘‘ममा, क्या होगा आप का?’’

‘‘अब क्या होना,’’ एक लंबी सांस खींच कर वे कहतीं, ‘‘मेरा जो होना था वह हो गया है.’’

बच्चों ने सम?ाया, ‘‘ममा यह स्मार्ट फोन है.’’

‘‘लो अब बोलो. स्मार्ट तो इंसान होते हैं… कहीं फोन भी स्मार्ट होते हैं? अब इस फोन में ऐसा क्या है, जो मु?ा में नहीं?’’ मिसेज शर्मा तुनक कर बोलीं.

तब बच्चों ने सम?ाया, ‘‘इस में सोशल नैटवर्किंग होती है जैसे फेसबुक, ट्विटर, याहू कर सकते हैं.’’

‘‘लो बोलो ‘याहू’ तो मैं भी कर सकती हूं शम्मी कपूर को मैं ने एक पिक्चर में ‘याहू’ करते देखा है. फेसबुक पर क्या होता है?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘उस पर हम अपने दोस्तों के साथ चैटिंग कर सकते हैं. कमैंट्स पढ़ते हैं.’’ बच्चों ने बताया.

‘‘अच्छा, हमारी किट्टी पार्टी की तरह.’’

‘‘ममा, क्या होगा आप का? कहां स्मार्ट फोन और कहां किट्टी पार्टी.’’

मिसेज शर्मा ने बच्चों को समझया, ‘‘किट्टी पार्टी में भी तो हम एक

से एक नए कपड़े पहन कर जाते हैं ताकि बाकी तारीफ करने वाली महिलाएं तारीफ करें और जलने वाली जलें… चैटिंग तो हम भी करते हैं. आप लोग जो स्टेटस डालते हो वह तो पुराना हो जाता है. हमारा तो लाइव टैलीकास्ट होता है. जलवा दिखाओ और हैंड टू हैंड कमैंट्स ले लो.’’

‘‘ममा, आप कहां की बात कहां ले जाती हैं.’’

जब बच्चे पहली बार लैप्पी यानी लैपटौप ले कर आए तो फिर उन के दिमाग ने उस के सिगनल पकड़ने शुरू कर दिए.

उन्होंने उसे बड़े प्यार से उठाया और अपनी गोद में बैठाया जैसे छोटे बच्चे को बैठाते हैं. फिर उसे गरदन गिरागिरा कर देखने लगीं. समझ नहीं आ रहा था कि कैसे चलेगा? जब 15-20 मिनट की जद्दोजेहद के बाद भी नहीं चला पाईं तो बच्चों ने फिर ममा, ‘‘क्या होगा आप का?’’ डायलौग दोहराया. फिर उन के प्लीज कहते ही उन्होंने पलक झपकते उसे चला दिया. वे उन के टेक सेवी होने पर बलिहारी हो गईं. पर फिर वही मुसीबत कि अब क्या करूं? कंप्यूटर को तो माउस घुमाघुमा कर चला लेती थीं, गाने सुन लेती थीं, गेम खेल लेती थीं.

पर इस माउस ने उन्हें बहुत दौड़ाया. उन की चीखें निकाली हैं. अकसर उन का और माउस का आमनासामना रसोई में हो जाता था. फिर तो ‘आज तू नहीं या मैं नहीं’ वाली स्थिति उत्पन्न हो जाती थी पर जीत हमेशा उस की ही होती थी. पर कंप्यूटर के माउस को उन्होंने खूब घुमाया और अपना बदला पूरा किया.

अब इस लैप्पी के ‘टचपैड’ को कैसे औपरेट करूं? गाने सुनना चाहती हूं तो वह गेम खोल देता है. सिर खुजाखुजा कर वे परेशान हो गई थीं. तभी हाथ से चाय का प्याला छलका और चाय लैपटौप पर जा गिरी. बच्चों को पता न चले इसलिए फटाफट उसे धोने चली गईं और फिर धो कर अच्छी तरह कपड़े से सुखा दिया.

पर यह क्या? लैप्पी को तो जैसे किसी की नजर लग गई? वह चल ही नहीं रहा था यानी उसे मिसेज शर्मा की हाय. ओ नहीं, चाय लग गई थी. 2 दिन लैप्पी कंप्यूटर क्लीनिक में रह कर आया, बेचारा. तभी चलने लायक हुआ.

तब बच्चों ने फरमान सुनाया, ‘‘ममा, अब आप इस से दूर ही रहना.’’

पर अब लगता है उन का सीपीयू कुछकुछ काम कर रहा है और इस का नैटवर्क अलग ही सिगनल पकड़ रहा है, उड़तीउड़ती खबर सुनी है कि घर में ‘आईपैड’ आने वाला है यानी अब उन का बेड़ा पार है और आईपैड का बंटाधार है.

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