जाने दीजिए. अपनीअपनी आस्था की बात है.’’
मगर उस दिन वे दोनों लौटे तो उतने खुश नहीं थे जितने खुश हर बार सिम्मी के पेट के उभार को देखते हुए हुआ करते थे. जैसाकि आज का समाज है, धर्म पर सवाल उठाने वालों को कोई पसंद नहीं करता, धर्म पर किसी तर्क को स्वीकार नहीं किया जा सकता, वैसे ही आज सिम्मी की बात दोनों को चुभ गई थी.
6 महीने हो चुके थे. डाक्टर छवि के क्लीनिक पर सिम्मी का नियमित चैकअप होता. उस के खानेपीने के इंतजाम का पूरा ध्यान रखा जाता.
एक दिन अमोल ने कहा, ‘‘कुछ माल लेने बनारस जा रहा हूं, अमृता. तुम भी चलोगी? सुबह जा कर शाम को आ जाएंगे. 15 किलोमीटर ही दूर है, कार से रात तक भी आ गए तो कोई दिक्कत नहीं.’’
अमृता खुशीखुशी तैयार हो गई. बोली, ‘‘मु?ो मैदागिन छोड़ देना, मैं नमिता से मिल लूंगी. कितने सालों से उस से नहीं मिली. फोन पर हर बार आने के लिए कहती है.’’
‘‘हां, ठीक है, यह अच्छा रहेगा. उसे बता दो कि तुम कल आ रही हो.’’
अगले दिन अमोल और अमृता बनारस के लिए निकल गए. अमृता और नमिता ने लखनऊ में बचपन साथ ही बिताया था. दोनों राजाजीपुरम में एक ही गली में रहते, साथ पढ़ती थीं.
दोपहर में जब दोनों सहेलियां सुस्ताने लेटीं तो सिम्मी की पूरी बात अमृता ने नमिता से शेयर कर ली. वह यह सब सुन कर खुश हुई.
अचानक अमृता उठ कर बैठ गई, ‘‘नमिता, एक चक्कर मार्केट का काट लूं? बच्चे के लिए कुछ ले आएं? राजातालाब छोटी जगह है, यहीं से कुछ ले जाऊं? यहां ज्यादा अच्छी नई चीजें मिलेंगी.’’