लेखिका : मंजरी सक्सेना
सड़क पर गाड़ी दौड़ाते हुए बैंक्वेट हौल में जगमग शादियों के पंडाल देख और म्यूजिक की धुन से मु?ो लगा जैसे मेरे कानों में किसी ने गरम सीसा उड़ेल दिया हो. जिन आवाजों से मैं पीछा छुड़ा कर उस दिन शहर के बाहर यहां आई थी, वे यहां भी जहर घोलने चली आईर् थीं. सड़क पर कितनी ही बरातें दिखी थीं जो बैंक्वेट हौल के सामने नाचों में जुटी थीं.
न मालूम कितनी बातें मेरे दिमाग में बिजली की तरह कौंध गईं और एकाएक जैसे मैं आकाश से धरती पर आ गिरी. सोचने लगी, मैं कहां पहुंच गईर् थी उन मधुर कल्पनाओं में जो कभी साकार नहीं होंगी. लेकिन फिर सोचने लगी कि तो क्या मुझे इन्हीं कल्पनाओं के सहारे जीना पड़ेगा क्योंकि मेरी जिंदगी में जो उदासी और दर्द आ गया उस क अंत नहीं. अब क्या मेरी बरात में ऐसी धूमधाम नहीं होगी? कितनी प्लानिंग की थी अपनी शादी की मैं ने भी और मेरे मांबाप ने भी. अब मैं खुद तो दुखी हूं ही, साथ में मांबाप, भाईबहन भी चिंतित हैं.
काश, शादी से पहले मेरे पैर की हड्डी न टूटी होती तो मेरी मधुर प्लानिंग यों जल कर राख न होती.
नगाड़ों की धुन अब पास आती जा रही थी और मैं फिर सोचने लगी थी कि 10 दिन बाद मेरी बरात आएगी भी या नहीं, मेरी डोली उठेगी या नहीं और दुलहनों की तरह मैं भी कभी लाल जोड़ा पहन सकूंगी या नहीं या सबकुछ महीनों के लिए खा जाएगा.
मुझे दूसरे पहलू पर भी सोचना था. वैडिंग के लिए होटल बुक हो चुका था. लोगों ने टिकट भी खरीद लिए थे. इंतजाम तो सारे हो ही चुके हैं. हर सामान के लिए पहले से पैसा दिया जा चुका है जिस के लिए भैया को कितनी मशक्कत करनी पड़ी है और फिर सागर के बीचोंबीच हनीमून के लिए होटल के भी तो सारे इंतजाम कर लिए थे. शादीब्याह कोई गुडि़यों का खेल तो है नहीं कि उस का दिन टलता रहे. उन्होंने भी तो अब तक अपने रिश्तेदारों को आमंत्रित कर लिया था. आजकल लड़कों की शादियों पर भी सब खूब खर्च करते हैं. सागर ने बैचलर ट्रिप भी और्गेनाइज कर लिया था.