जीबी रोड दिल्ली की बदनाम जगहों में से एक है. रेड लाइट एरिया. तमाम कोठे, कोठा मालकिनें और देहव्यापार में लगी सैक ड़ों युवतियां यहां इस एरिया में रहती हैं. मैं सेन्ट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स (सीआईएसएफ) में सब इंस्पेक्टर के तौर पर तैनात थी. ट्रेनिंग पूरी हुए अभी छह महीना ही हुआ था. नई ज्वाइनिंग थी. एक रोज दिल्ली मेट्रो में सफर के दौरान एक लड़की लेडीज कोच में बेहोश हो गई थी. रात नौ बजे का वक्त था. उस लड़की को संभालने के लिए जो दो लोग आगे बढ़े उनमें एक मैं थी और दूसरी वंदना. तब मैं वंदना को जानती नहीं थी. वह तो उस रोज उस मेट्रो मे मेरी सहयात्रि भर थी. उस बेहोश लड़की को लेकर हम कोच से बाहर आए. तब तक मेट्रो कर्मचारी भी पहुंच गए थे.
काफी देर बाद उस लड़की को होश आया. मैं और वंदना तब तक उसके साथ ही रहे. उसका पता पूछ कर हम रात के ग्यारह बजे ऑटो से उसके घर तक छोड़ने गए. वापसी में मैंने पहली बार वंदना से उसका नाम पूछा था और उसने मेरा. फिर पता चला कि वह एक पत्रकार है, आगरा से दिल्ली आयी है, किसी पत्रिका में काम करती है. वंदना मुझे बहुत कुछ अपनी तरह ही लगी. मेरी ही उम्र की थी. हिम्मती, बेखौफ, तेज, मददगार और मिलनसार. हमारी दोस्ती हो गई. फोन पर लम्बी-लम्बी बातें होतीं. छुट्टी मिलती तो दोनों साथ ही शॉपिंग भी करते और फिल्में भी देखते थे.
उस रोज हम रेस्त्रां में बैठे इडली-सांभर खा रहे थे कि अचानक वंदना ने मुझे जीबी रोड चलने का न्योता दे दिया. पुलिस में होते हुए भी मुझे एकबारगी झिझक लगी, मगर फिर मैंने हामी भर दी. पूछा, ‘किस लिए जाना है? क्या स्टोरी करनी है?’
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