नरेन उस के पास आ गया. लेकिन चेक देख कर चौंक गया, “यह चेक... तुम्हारे पास कहां से आ गया...? ये तो मैं ने स्वामीजी को दिया था.”
“नरेन, बहुत रुपए हैं न तुम्हारे पास... अपने खर्चों में हम कितनी कटौती करते हैं और तुम...” वह गुस्से में बोली. लेकिन नरेन तो किसी और ही उधेड़बुन में था, “यह चेक तो मैं ने सुबह स्वामीजी को ऊपर जा कर दिया था... यहां कैसे आ गया...?”
“ऊपर जा कर दिया था..?” रवीना कुछ सोचते हुए बोली, “शायद, स्वामीजी का चेला रख गया होगा...”
“लेकिन क्यों..?”
”क्योंकि, लगता है स्वामीजी को तुम्हारा चढ़ाया हुआ प्रसाद कुछ कम लग रहा है...” वह व्यंग्य से बोली.
“बेकार की बातें मत करो रवीना... स्वामीजी को रुपएपैसे का लोभ नहीं है... वे तो सारा धन परमार्थ में लगाते हैं... यह उन की कोई युक्ति होगी, जो तुम जैसे मूढ़ मनुष्य की समझ में नहीं आ सकती...”
“मैं मूढ़ हूं, तो तुम तो स्वामीजी के सानिध्य में रह कर बहुत ज्ञानवान हो गए हो न...” रवीना तैश में बोली, “तो जाओ... हाथ जोड़ कर पूछ लो कि स्वामीजी मुझ से कोई
अपराध हुआ है क्या... सच पता चल जाएगा.”
कुछ सोच कर नरेन ऊपर चला गया और रवीना अपने कमरे में चली गई. थोड़ी देर बाद नरेन नीचे आ गया.
“क्या कहा स्वामीजी ने..” रवीना ने पूछा.
नरेन ने कोई जवाब नहीं दिया. उस का चेहरा उतरा हुआ था.
“बोलो नरेन, क्या जवाब दिया स्वामीजी ने...”
“स्वामीजी ने कहा है कि मेरा देय मेरे स्तर के अनुरूप नहीं है...” रवीना का दिल
किया कि ठहाका मार कर हंसे, पर नरेन की मायूसी व मोहभंग जैसी स्थिति देख कर वह चुप रह गई.