औफिस का छोटा लेकिन सुव्यवस्थित चैंबर. ग्लासडोर से अंदर का नजारा साफ दिखता था. टेबल पर रखे लैपटौप पर काम करती महिमा आज नीली साड़ी में काफी आकर्षक लग रही थी. महिमा हमेशा की तरह समय पर औफिस पहुंच गई थी.

विभाग के विभिन्न कार्यालयों में होने वाले औडिट से संबंधित शैड्यूल का मेल देखते ही राजस्व अधिकारी महिमा ने अपने पूरे स्टाफ को चैंबर में बुला लिया.

‘‘इस महीने की 20 तारीख को हमारे औफिस में औडिट पार्टी आएगी जो 22 तक रहेगी. आप लोग अपनेअपने सैक्शन से जुड़े हुए सभी डौक्यूमैंट्स कंपलीट कर लें. ध्यान रखिए कि किसी भी फाइल या रजिस्टर में औडिट पैरा बनने की नौबत न आए. हर एंट्री सही होनी चाहिए,’’ महिमा ने सब को निर्देश दिए.

‘‘विमलजी, संस्थापन शाखा के इंचार्ज होने के नाते आप की जिम्मेदारी सब से अधिक है और काम भी. सब से ज्यादा औब्जैक्शन इन्हीं फाइलों में लगते हैं. इसलिए आप विशेष ध्यान रखिएगा,’’ महिमा ने विमलजी को अलग से हिदायत दी.

‘‘मैडम, औडिट पार्टी को खुश करने का जिम्मा राकेशजी को दे दीजिए. उन्हें औफिस में औडिट करवाने का बरसों का अनुभव है. पहले भी वही ये सब काम करवाते आए हैं. कभी कोई औडिट पैरा नहीं बना,’’ विमल ने महिमा को सलाह दी.

‘‘मैं कुछ समझी नहीं. इस में राकेशजी क्या करेंगे? वे तो किसी सैक्शन के इंचार्ज भी नहीं हैं,’’ महिमा के माथे पर सिलवटें उभर आईं.

‘‘आप अभी नई हैं न, नहीं समझेंगी कि औडिट कैसे करवाया जाता है. मैं राकेशजी को भेजता हूं, वे आप को सबकुछ समझा देंगे.’’ विमल तो यह कह कर चैंबर से निकल गया लेकिन महिमा के लिए कई सारे प्रश्न छोड़ गया.

महिमा 2 साल पहले ही दिल्ली के इस औफिस में ट्रांसफर हो कर आई है. भोपाल शहर में पलीबढ़ी थी वह. स्कूल के बाद कालेज में हर ऐक्टिविटी में आगे रहती. अपनी बात कहने में वह कभी पीछे नहीं रही थी. उस का यही आत्मविश्वास उसे और भी आकर्षक बनाता था. यहां इसे राजस्व अधिकारी का स्वतंत्र प्रभार दिया गया है. इस से पहले वह उच्च अधिकारी की अधीनस्थ थी, इसलिए यह औडिट वाला काम कभी उस के जिम्मे नहीं आया था. अलबत्ता अनुभव की उस के पास कमी नहीं थी. 35 वर्ष की हो चुकी थी वह. इस बार पहली दफा उसे स्वतंत्ररूप से अपने औफिस का औडिट करवाना था.

‘‘जी मैडम, आदेश करें,’’ राकेश ने बहुत ही विनम्रता से हाथ जोड़ते हुए कहा.

‘‘राकेशजी, औफिस में औडिट होने वाला है. मैं ने सुना है कि आप को औडिट करवाने का बहुत अनुभव है. आप के निर्देशन में औडिट हो तो कभी कोई औडिट पैरा नहीं बनता.’’ महिमा ने राकेश को पढ़ने की कोशिश की.

‘‘अरे मैडम, यह तो इन सब का प्रेम है वरना मैं तो बस अपनी ड्यूटी निभाता हूं. आखिर यह औफिस मेरा भी तो है,’’ राकेश विनम्रता से कुछ और झुक आया.

‘‘तो ठीक है, करवाइए औडिट. मैं भी आप की कुशलता देखना चाहती हूं,’’ महिमा उसे निर्देश दे कर टेबल पर रखी फाइलें देखने लगी. राकेश कुछ देर तो खड़ा रहा, फिर चैंबर से बाहर चला गया.

लगभग 40 के आसपास होगा राकेश. आंखों पर काले फ्रेम का चश्मा. माथे की त्योरियां उसे गंभीर बनाती थीं. बातें नापतौल कर करता था. अच्छी तरह से प्रैस की हुई सफेद कमीज उस पर फब रही थी.

‘‘मैडम, औडिट पार्टी के ठहरने, खानेपीने और घूमनेफिरने पर कुल मिला कर लगभग 10-12 हजार रुपए का खर्चा आएगा,’’ दूसरे दिन राकेश ने एक कागज पर लिखा हिसाब महिमा के सामने टेबल पर रख दिया. इतने रुपयों के खर्चे को सुन कर महिमा चौंक गई.

‘‘क्या बात कर रहे हैं, उन के ठहरने और खानेपीने का खर्चा भला हम क्यों करेंगे? क्या इस हैड में औफिस बजट का कोई अलग से प्रावधान है? मुझे तो याद नहीं आ रहा.’’ महिमा कुछ समझी नहीं थी.

‘‘अरे मैडम, ये सब तो नौर्मल बातें हैं. जिस औफिस का औडिट होता है, सारा खर्चा उसी को करना पड़ता है. क्या आप को सचमुच कुछ भी नहीं पता?’’ अब हैरान होने की बारी राकेश की थी.

‘‘नहीं, मैं सचमुच इस बारे में नहीं जानती. वैसे भी, इतने पैसों की व्यवस्था कहां से होगी?’’ महिमा ने अपनी शंका रखी.

‘‘अरे मैडमजी, मलाई वाली सीट पर बैठने वाले अधिकारी ही अगर इस तरह की बातें करेंगे तो फिर सूखी सीट वालों का क्या होगा,’’ राकेश ने उसे इशारों में समझाया.

महिमा ने वह कागज अपने पास रख कर राकेश को जाने के लिए कहा. महिमा ने देखा कि कागज में शहर के एक बड़े होटल में 2 कमरे, सुबह के नाश्ते से ले कर रात के खाने का खर्चा, एक दिन आसपास के दर्शनीय स्थान पर भ्रमण हेतु लक्जरी गाड़ी के साथसाथ होटल से औफिस लानेलेजाने के लिए गाड़ी आदि का ब्योरा लिखा था. यह सारी व्यवस्था 4 व्यक्तियों के लिए थी. देख कर महिमा का माथा घूम गया.

उस ने 2-3 दिन औडिट के सारे पहलुओं पर विचार किया. किसी भी फाइल में औब्जैक्शन लगने के बाद भविष्य में होने वाले पत्राचार और उस के बाद की मानसिक परेशानियों के बारे में भी विस्तार से सोचा. 1-2 अनुभवी अधिकारियों से भी परामर्श किया. हालांकि सब का इशारा इसी तरफ था कि राकेश की डील मान ली जाए लेकिन उस का मन उस का साथ नहीं दे रहा था.

‘‘जब मेरे रिकौर्ड में कोई कमी ही नहीं होगी तो फिर औडिट पैरा बनेगा कैसे?’’ उस का आत्मविश्वास अपने चरम पर था. अपना काम पूरी ईमानदारी से करती थी.

‘‘अरे मैडम, यह औडिट है. यहां पूरा हाथी निकलने के बाद भी उस की पूंछ कांटे में फंस सकती है,’’ अनुभवी लोगों का कहना था.

‘‘छोडि़ए न मैडमजी, आप तो यह गरमागरम चाय पी कर तरोताजा हो जाइए. याद रखेंगी शीतल के हाथ की बनी चाय को,’’ औफिस की लेडी प्यून ने एक कप चाय उस की टेबल पर रख दी तो महिमा मुसकरा उठी.

बेचारी शीतल, अभी कोई उम्र है उस की नौकरी करने की. अभी 20 की ही तो हुई है. लेकिन क्या करे. घर की सारी जिम्मेदारी भी तो उसी के कंधों पर आ गई. सच में, सिर पर पिता का हाथ होना बहुत जरूरी है. महिमा की सोच की सूई अब औडिट से हट कर शीतल की तरफ घूम गई. सलवारसूट पहने हुए शीतल को देख उसे तरस आ गया.

शीतल के पिताजी इसी औफिस में बाबू थे. सालभर पहले एक सड़क दुर्घटना में उन की मृत्यु होने के बाद इसे अनुकंपा के आधार पर यहां चपरासी की नौकरी मिल गई. हालांकि शीतल ने आगे की पढ़ाई जारी रखी हुई है ताकि उसे क्लर्क की पोस्ट मिल जाए लेकिन इन सब कामों में वक्त लगता है.

खूबसूरत, चुलबुली शीतल पूरे औफिस की लाड़ली है. सब उसे अपनी बेटी की तरह प्यार करते हैं. महिमा के भी खूब मुंह लगी है. महिमा चाय पीने लगी. चाय वाकई अच्छी बनी थी. अदरक का अलग स्वाद आ रहा था. उस का दिमाग एक बार फिर से राकेश के हिसाब में उलझ गया.

क्या होगा अगर औडिट में कोई औब्जैक्शन लगा भी तो. जवाब दे दिया जाएगा. यदि वह अपना काम ईमानदारी से कर रही है तो फिर उसे डरने की क्या जरूरत है. आखिर उस ने तय किया कि वह राकेश की इस डील को स्वीकार नहीं करेगी.

उस ने सभी सैक्शन अधिकारियों को निर्देश दिए कि हर एंट्री में पूरी सावधानी बरती जाए. पिछले वर्षों में हुए औडिट के औब्जैक्शन पढ़ कर उन्हें पहले ही दुरुस्त करने की हिदायत भी दी. वह खुद इन सब पर बराबर नजर रखे हुए थी. एक सप्ताह की मेहनत के बाद अब वह पूरी तरह से संतुष्ट थी. कहीं किसी कमी की गुंजाइश उसे नहीं लग रही थी.

‘‘मैडम, मैं औडिट पार्टी से उत्तम बोल रहा हूं. हमारी पार्टी कल सुबह 8 बजे  पहुंच जाएगी. आप स्टेशन पर गाड़ी भिजवा दीजिएगा,’’ महिमा के पास फोन आया.

‘‘आप टैक्सी या औटो ले लीजिए. हमारी गाड़ी तो कल सुबह जल्दी ही साइट पर निकलेगी,’’ महिमा ने दोटूक जवाब दिया. दूसरी तरफ कुछ देर के लिए शांति सी रही.

‘‘चलिए, कोई बात नहीं. आप होटल का ऐड्रेस मेरे नंबर पर व्हाट्सऐप कर दीजिए,’’ उत्तम ने आगे कहा.

‘‘होटल तो नहीं है. आप चाहें तो आप के रुकने की व्यवस्था औफिशियल गैस्टहाउस में करवा सकती हूं. बहुत ही नौर्मल रेट पर अच्छी सुविधा आप को मिल जाएगी,’’ महिमा ने कहा, तो दूसरी तरफ फिर से शांति छा गई.

‘‘धन्यवाद मैडम, आप कष्ट न करें. हम अपनी व्यवस्था देख लेंगे. आप अपनी देख लीजिएगा,’’ उत्तम ने धमकीभरे स्वर में कहा और फोन कट गया. महिमा मानसिक रूप से अपनेआप को औडिट के लिए तैयार करने लगी. उस ने राकेश, विमल सहित सभी कर्मचारियों को समय से औफिस पहुंचने के निर्देश दिए और स्वयं साइट पर जाने की तैयारी करने लगी. शीतल से भी आवश्यक रूप से पूरा समय औफिस में रुकने को कहा गया. उसे हिदायत थी कि वह मेहमानों को 2 समय चायपानी करवा दे.

सुबह ठीक साढ़े 9 बजे उत्तम अपनी टीम के साथ औफिस में मौजूद था. आते ही उस ने कर्मचारियों का हाजिरी रजिस्टर मांगा. महिमा को टूर पर देख कर उस का पारा चढ़ गया. शेष सभी कर्मचारी औफिस में उपस्थित थे. राकेश विनम्रता से झुका हुआ उस के सामने खड़ा था.

‘‘क्या बात है राकेशजी, मैडम नई हैं या उन के लिए यह काम नया है? बहुत अकड़ में रहती हैं,’’ उत्तम ने अपनी कड़वाहट राकेश पर उतारी.

‘‘यह सब नई फसल है साहब, धीरेधीरे सीख जाएंगी. आप तो अपना काम शुरू कीजिए. हम हैं न आप की सेवा में. आप मुझे आदेश कीजिए,’’ राकेश ने उत्तम को खुश करने की कोशिश की. फिर उस ने शीतल को आवाज लगाई, ‘‘अरे शीतल, चायपानी का इंतजाम करो, भई.’’ थोड़ी ही देर में शीतल मुसकराती हुई चाय के साथ समोसे भी ले आई. समोसे देख कर उत्तम का मूड कुछ ठीक हुआ.

‘‘हूं, मैडम को साइट पर जाने का बहुत शौक है न, चलो, औडिट की शुरुआत मैडम की गाड़ी की लौगबुक से ही करते हैं. राकेशजी, पिछले 2 वर्षों की लौगबुक मंगवा दीजिए,’’ उत्तम ने समोसे खा कर एक लंबी सी डकार मारी. शीतल लौगबुक ले आई. उत्तम उस की एकएक एंट्री को बड़े गौर के साथ चैक करने लगा. वह साथसाथ एक सादे कागज पर नोट्स भी बनाता जा रहा था.

लौगबुक के बाद उस ने स्टौक रजिस्टर, बजट का इस्तेमाल, हाजिरी रजिस्टर, फर्नीचर आदि का हिसाब, टैलीफोन का बिल रजिस्टर आदि की जांच की. 2 दिन लगातार इस काम में जूझते उत्तम की मुलाकात महिमा से नहीं हुई. जानबूझ कर या काम की अधिकता, इन 2 दिनों में महिमा लगातार टूर पर ही बनी हुई थी. आज औफिस में औडिट का आखिरी दिन था. राकेश ने महिमा से औफिस में रह कर उत्तम से डिस्कस करने का अनुरोध किया.

ठीक साढ़े 9 बजे महिमा अपनी सीट पर थी. कुछ ही देर में राकेश उत्तम के साथ आता हुआ दिखाई दिया. महिमा ने देखा कि उत्तम नाटे कद का सांवला सा व्यक्ति है जिस की तोंद कुछ बाहर को निकली हुई है. पेट बड़ा होने के कारण पैंट बारबार कमर से लुढ़क कर नीचे आ रही थी जिसे वह बैल्ट से पकड़ कर ऊपर खींच रहा था. उस की यह हरकत देख कर महिमा के होंठों पर बरबस मुसकान आ गई. उसी समय शीतल कुछ फाइलें ले कर वहां आई. उसे उत्तम की हरकत पर मुसकराता देख कर शीतल भी खिलखिला दी.

‘‘नमस्कार मैडमजी, आज आखिर आप के दर्शन हो ही गए. मुझे तो लगा था आप से बिना मिले ही जाना होगा,’’ उत्तम के शब्दों में छिपे व्यंग्य को महिमा आसानी से समझ रही थी. उस ने उस को कोई जवाब नहीं दिया, सिर्फ बैठने का इशारा किया.

‘‘आप के औफिस में तो घपला ही घपला है, मैडमजी. जहां हाथ रखिए, वहीं दर्द है,’’ उत्तम ने एक पुरानी फिल्म के गाने की पंक्ति के साथ बत्तीसी खोल कर अपने पान से रंगे दांत दिखा दिए. उस के साथ ही उस के मुंह से आती गुटखे की गंध पूरे चैंबर में फैल गई. महिमा ने कुछ पल को अपनी सांस रोक कर उस गंध को हवा में लुप्त होने दिया, फिर हाथ को नाक के सामने लहराते हुए सांस ली. उत्तम उस की नाखुशी को समझ गया था. वह बाहर जा कर पीक थूक आया.

‘‘जी, दिखाइए, क्या घपला है,’’ महिमा ने उस से कागज मांगे.

‘‘सब से पहला तो यही है कि आप ने गाड़ी पूरे महीने के लिए किराए पर रखी है. लेकिन आप की लौगबुक कहती है कि आप इस का इस्तेमाल 15 दिनों से अधिक नहीं करतीं. यानी, आप ड्राइवर को मुफ्त का पैसा दे कर विभाग को चूना लगा रही हैं. क्यों न विभाग को होने वाले इस नुकसान की भरपाई आप के वेतन में से की जाए,’’ उत्तम ने फिर से दांत दिखाए.

‘‘बेशक ड्राइवर को पैसा पूरे महीने का मिल रहा है लेकिन गाड़ी कम चला कर हम सरकार का ईंधन भी तो बचा रहे हैं. आप इसे इस नजरिए से देखिए न. वैसे भी हमारी तो इमरजैंसी ड्यूटी है. कभी भी बाहर जाना पड़ सकता है, इसलिए गाड़ी तो पूरे महीने और चौबीसों घंटे के लिए ही रखनी पड़ेगी न,’’ महिमा ने अपना पक्ष रखा.

‘‘हम किसे किस नजरिए से देखें, यह आप हम पर छोडि़ए. दूसरी बात यह है कि कर्मचारियों ने आकस्मिक अवकाश पहले मना लिया और उन के प्रार्थनापत्र बाद की तारीख में दर्ज हुए हैं,’’ उत्तम ने अपनी आंखें महिमा के चेहरे पर टिका दीं.

‘‘तो क्या हुआ? आकस्मिक अवकाश का अर्थ ही है कि उसे आकस्मिक कार्य के लिए लिया जाता है. अब आकस्मिकता भी भला कभी बता कर आती है. कर्मचारी ने अवकाश स्वीकृत तो करवाया ही है, चाहे देर से ही सही,’’ महिमा ने फिर से अपना पक्ष रखा.

‘‘ये सब बातें आप औडिट पैरा के जवाब में लिखलिख कर देती रहिएगा. और भी कई खामियां हैं जो मैं लिख कर ऊपर सरकार को भेज दूंगा. फिर आगे जो भी विभाग की मरजी,’’ उत्तम ने कहा और अपने कागजपत्र समेटने लगा. महिमा को समझ में नहीं आया कि क्या कहे.

‘‘उत्तम साहब, चलिए नाश्ता ठंडा हो रहा है,’’ कहता हुआ राकेश उसे दूसरे कमरे में ले गया. उसे वहां छोड़ कर वह तुरंत ही महिमा के पास आया.

‘‘मैडम, औडिट के पैरा बहुत बुरे होते हैं. सालों निकल जाते हैं जवाब देतेदेते. इसीलिए सब लोग कुछ लेदे कर औफिस में ही सैट करने की कोशिश करते हैं. अपने औफिस के पैरा तो ऐसे हैं जिन्हें आप चाहें तो यहीं टेबल पर ही ड्रौप कर सकती हैं और न चाहें तो लंबे खींच सकती हैं. और फिर गाड़ी वाला पैरा तो आप पर व्यक्तिगत प्रहार है. जरा ठंडे दिमाग से सोचिए,’’ राकेश ने महिमा को समझाने की कोशिश की. बात शायद कुछकुछ महिमा को समझ में भी आ गई थी. राकेश की बातों में दम तो था.

‘‘ठीक है, आप देखिए क्या हो सकता है. विचार करते हैं.’’ महिमा राकेश से सहमत होने लगी.

‘‘जी मैडम, आप ने बिलकुल सही फैसला लिया है. मैं उत्तम से बात कर के देखता हूं. पार्टी को लंच पर ले कर जा रहा हूं, वहीं सब सैट करने की कोशिश करता हूं. उम्मीद है सब ठीक हो जाएगा,’’ यह कह कर राकेश चैंबर से बाहर निकल गया.

दोपहर बाद लगभग 4 बजे राकेश आया. महिमा ने देखा कि उस का मुंह उतरा हुआ था. उत्तम और उस की टीम उस के साथ नहीं थी. राकेश चुपचाप आ कर महिमा के सामने बैठ गया.

‘‘क्या तय हुआ राकेशजी, आप का उतरा हुआ चेहरा बता रहा है कि मामला सैट नहीं हुआ. क्या अपने बजट से बाहर जा रहा है?’’ महिमा की निगाह राकेश के चेहरे पर टिकी थी.

‘‘सिर्फ बजट से ही नहीं, इस बार तो मामला हद से भी बाहर जा रहा है,’’ राकेश ने कहा.

‘‘क्या बात है? मैं समझी नहीं. जरा खुल कर बताइए. अरे शीतल, जरा 2 गिलास पानी तो लाना,’’ महिमा ने आवाज लगाई तो शीतल तुरंत 2 गिलास ठंडा पानी ले कर हाजिर हो गई. ट्रे को टेबल पर रख कर वह भी वहीं खड़ी हो गई.

‘‘शीतल, तुम जाओ,’’ राकेश ने उसे भेज दिया और धीरेधीरे पानी के घूंट भरने लगा. ऐसा लग रहा था मानो वह पानी के साथ और भी बहुतकुछ निगलने की कोशिश कर रहा है. चैंबर में छाई चुप्पी महिमा को अखरने लगी.

‘‘कुछ बोलिए भी, उत्तम क्या चाह रहा है,’’ आखिर महिमा ने चुप्पी तोड़ी.

‘‘उत्तम को शीतल चाहिए,’’ राकेश किसी तरह से बोल पाया.

‘‘क्या? मैं कुछ समझी नहीं.’’ महिमा के माथे पर लकीरें गहरा गईं. राकेश आगे कुछ भी नहीं बोल सका. चुपचाप पानी के घूंट भरता रहा लेकिन महिमा सबकुछ समझ गई थी.

‘‘उस की हिम्मत कैसे हुई इस तरह का घटिया प्रस्ताव रखने की. विश्वास नहीं हो रहा कि कोई व्यक्ति इतना नीचे भी गिर सकता है. अरे, शीतल उस की बेटी की उम्र से भी छोटी होगी. निर्लज्ज कहीं का. कह दो उसे, जो रिपोर्ट बनानी है, बना दे. जो औब्जैक्शन लगाने हैं, लगा दे. ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, मामला ड्रौप होने में बरसों लग जाएंगे. लग जाने दो. अरे, गलतियां तो हरेक से होती हैं. निकालने लगो तो कमियां हर जगह मिल जाती हैं. तो क्या हुआ, आखिर कमियां दूर भी तो होती ही हैं. जो होगा, देखा जाएगा. अगर कुछ पैसा जेब से भी भरना पड़ा तो भर दूंगी, लेकिन उस मासूम को औडिट के नाम पर बलि नहीं चढ़ाऊंगी.’’ महिमा गुस्से से उबलने लगी थी. शीतल का मासूम चेहरा महिमा की आंखों के आगे आ गया.

राकेश ने जेब से निकाल कर उत्तम द्वारा बनाए गए औडिट पैरा का बड़ा सा लैटर महिमा की टेबल पर रख दिया.

‘‘मैं जानता था आप का यही फैसला होगा, इसलिए उत्तम को लंच के बाद वहीं से स्टेशन विदा कर आया. अब सब मिल कर बनाते हैं उस के पैरा के जवाब,’’ राकेश मुसकरा दिया. राकेश को आज महसूस हो रहा था कि ईमानदारी व्यक्ति को कई बार कितना निडर बना देती है. मन ही मन वह महिमा के निर्णय से प्रभावित था.

‘‘पैसा तो सारी दुनिया कमाती है, राकेशजी, मैं ने अपने स्टाफ का विश्वास कमाया है. यह मेरे लिए बहुत बड़ी पूंजी है,’’ महिमा ने कहा और औडिट की लगाई हुई आपत्तियां पढ़ने लगी.

चैंबर के दरवाजे पर खड़ी शीतल अपने आंसू पोंछ रही थी. महिमा के प्रति उस के मन में सम्मान कई दरजे बढ़ गया था.

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