मैं  अपने चैंबर में बैठ कर मेज पर  रखी फाइलों को निबटा रहा था. उसी समय नरेश एक रौबदार मूंछ वाले व्यक्ति के साथ कमरे में घुसा. लंबा कद और घुंघराले बालों वाले उस व्यक्ति की उम्र कोई 40 साल के आसपास की लग रही थी. चेहरे से परेशान उस व्यक्ति का परिचय नरेश ने कराया, ‘‘यह कैलाशजी हैं, गुजराती होटल के मैनेजर. इन के मकानमालिक ने इन का सारा सामान घर से निकाल कर सड़क के किनारे रखवा दिया है. बेचारे, बहुत मुसीबत में हैं. सर, इन की मदद कर दें.’’

‘‘इन्होंने मकान का भाड़ा नहीं दिया होगा?’’

‘‘अजी, किराया तो मैं पहली तारीख की शाम को एडवांस में ही दे देता हूं, अपुन मर्द आदमी है. किसी का उधार नहीं रखते.’’

‘‘तो फिर उस की बहन या लड़की को छेड़ा होगा?’’

‘‘सर, इस उम्र में किसी की बहन या लड़की को क्यों छेड़ेंगे.’’ कैलाश बोला, ‘‘मैं पिछले 10 सालों से उस का किराएदार हूं, अब मकानमालिक को लगता है कि कहीं मैं उस का मकान न हड़प लूं. इसलिए पिछले एक साल से डरा रहा है कि मकान खाली करो, वरना सामान निकाल कर बाहर फेंक दूंगा.’’

‘‘अब उस ने सामान बाहर फेंक कर अपनी धमकी पूरी कर दी,’’ मैं बोला.

‘‘जी, आप ने बिलकुल ठीक सोचा. अपुन मर्द आदमी है. चाहे तो मकान मालिक का सिर फोड़ सकता है, पर नरेश ने समझाया कि ऐसा बिलकुल नहीं करना. अब नरेश ही आप के पास मुझे ले कर आया है,’’ कैलाश ने उत्तर दिया.

नरेश मेरे पास पिछले 5 महीनों से वकालत का काम सीख रहा था. नरेश और कैलाश आपस में अच्छे मित्र थे. मैं ने नरेश को आदेश दिया कि वह कैलाश को साथ ले कर थाने जाए और पहले वहां कैलाश की रिपोर्ट दर्ज करा कर उस रिपोर्ट की कापी मेरे पास ले कर लौटे.

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