लेखक- नारायण शांत
लड़का अपने शहर रायपुर को छोड़ कर भिलाई पहुंच गया, वहां के बारे में वह बहुत कुछ सुन चुका था. वह किसी घरेलू नौकरी की तलाश में था ताकि उसे पढ़नेलिखने की सुविधा भी मिल सके. ऐसा ही एक परिवार था, जहां से दोचार दिन में ही नौकरनौकरानियां काम छोड़ कर चल देते, क्योंकि उस घर की मालकिन के कर्कश स्वभाव से तंग आ कर वे टिक ही नहीं पाते थे. एक दिन लड़का उसी बंगले के सामने जा खड़ा हुआ और उस मालकिन से नौकरी देने का आग्रह करने लगा.
पहले तो उस ने लड़के की बातों पर कोई गौर नहीं किया, लेकिन फिर बोली, ‘‘लड़के, तुम क्याक्या काम कर सकते हो ’’ लड़के का आग्रह सुन कर मालकिन को लगा कि जरूर वह पहले कहीं काम कर चुका है. वह उस से बोली, ‘‘ठीक है, आज और अभी से मैं तुम्हें काम पर रखती हूं.’’
‘‘मालकिन, एक शर्त मेरी भी है,’’ लड़के ने हाथ जोड़ कर कहा.
‘‘बताइए, क्या है तुम्हारी शर्त ’’
‘‘मैं काम के बदले पैसा नहीं लूंगा बल्कि आप मुझे खाना, कपड़ा और मेरी पढ़ाईलिखाई की व्यवस्था कर दें,’’ लड़के ने दयनीय स्वर में कहा. पहले तो यह सुन कर मालकिन हड़बड़ा गई लेकिन अपनी मजबूरी को देखते हुए उस ने कह दिया, ‘‘ठीक है, लेकिन पढ़ाई-लिखाई के कारण घर का काम प्रभावित नहीं होना चाहिए.’’ लड़के को उस घर में काम मिल गया. वह सब से आखिर में सोता और सवेरे सब से पहले उठ कर काम शुरू कर देता. फिर काम निबटा कर स्कूल जाता. लड़का इस घर, नौकरी और पढ़ाईलिखाई, सभी से बड़ा खुश था. वह अपना काम भी पूरी ईमानदारी, लगन और मेहनत से करता. मालकिन को घरेलू नौकरचाकरों पर रोब झाड़ने की बुरी आदत थी, लेकिन उसे भी लड़के में जरा भी खोट दिखाई नहीं दिया. वह उस के काम से खुश थी.