सुरेश भी अकसर बिना किसी बात के उस से चिड़चिड़ा कर बोल पड़ता था. कभीकभार तो मीना के ऊपर उस का इतना गुस्सा फूटता कि अगर चाय का कप हाथ में होता तो उसे दीवार पर दे मारता. ऐसे ही कभी खाने की थाली उठा कर फेंक देता. इस तरह गुस्से में जो सामान हाथ लगता, वह उसे उठा कर फेंकना शुरू कर देता. इस से आएदिन घर में कोई न कोई नुकसान तो होता ही, साथ ही घर का माहौल भी खराब होता.

ऐसे में मीना को सब से ज्यादा फिक्र अपने 2 मासूम बच्चों की होती. वह अकसर सोचती कि इन सब बातों का इन मासूमों पर क्या असर होगा? यही सब सोच कर वह अंदर ही अंदर घुटते हुए चुपचाप सबकुछ सहन करती रहती.

मीना अपनेआप पर हमेशा कंट्रोल रखती कि घर में झगड़ा न बढ़े, पर ऐसा कम ही हो पाता था. आजकल सुरेश भी औफिस से ज्यादा लेट आने लगा था.

जब भी मीना लेट आने की वजह पूछती तो उस का वही रटारटाया जवाब मिलता, ‘‘औफिस में बहुत काम था, इसलिए आने में देरी हो गई.’’

एक दिन मीना की सहेली सोनिया उस से मिलने आई. तब मीना का मूड बहुत खराब था. सोनिया के सामने वह झूठमूठ की मुसकराहट ले आई थी, इस के बावजूद सोनिया ने मीना के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफसाफ पढ़ ली थीं.

मीना ने सोनिया को कुछ भी नहीं बताया और अपनेआप को उस के सामने सामान्य बनाए रखने की कोशिश करती रही थी. कभी उस का मन कहता कि वह सोनिया को अपनी समस्या बता दे, लेकिन फिर उस का मन कहता कि घर की बात बाहर नहीं जानी चाहिए. हो सकता है, सोनिया उस की समस्या सुन कर खिल्ली उड़ाए या फिर इधरउधर कहती फिरे.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...