तार पर नजर पड़ते ही नसीम बौखला गया. उस का हृदय बड़ी तीव्रता से धड़का. लगा, हलक से बाहर आ जाएगा. किसी तरह उस ने अपनेआप को संभाला और तार ले कर घर के अंदर बढ़ गया.
घर में सुरैया और अम्मी ने खाने से निवृत्त हो कर अभी हाथ ही धोए थे कि नसीम के लटके मुंह को देख कर उस की अम्मी पूछ बैठीं, ‘‘क्या बात है, नसीम, दफ्तर नहीं गए?’’
‘‘अम्मी..’’ कहने के साथ ही नसीम की आंखें भीग गईं, ‘‘असद भाई कल सुबह दिन का दौरा पड़ने से चल बसे. यह तार आया है.’’
नसीम का इतना कहना था कि घर में कुहराम मच गया. उस की बीवी सुरैया और अम्मी बिलखबिलख कर रो पड़ीं. दुख तो नसीम को भी बहुत था, लेकिन किसी तरह उस ने अपनेआप को संभाला तथा सुरैया और अम्मी को जल्दी से तैयार होने को कह कर अपने दफ्तर को चल दिया. दफ्तर से उस ने 3 दिन की छुट्टी ली और घर लौट आया. तब तक सुरैया और अम्मी तैयार हो चुकी थीं.
वह रिकशा ले आया और अम्मी तथा सुरैया को ले कर बस अड्डे को रवाना हो गया.
7 वर्ष पूर्व शमीम आपा की शादी असद भाई के साथ हुई थी. असद भाई अपने घर में सब से बड़े थे. घर का सारा बोझ उन्हीं के कंधों पर था. शमीम आपा को पा कर असद भाई अपने सारे गम भूल गए. शमीम आपा ने अपनी बुद्धिमानी से घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली थी और घर की चिंता से उन्हें पूरी तरह मुक्त कर दिया था.