लेखक- इनायतबानो कायमखानी
अभी पहला पीरियड ही शुरू हुआ था कि चपरासिन आ गई. उस ने एक परची दी, जिसे पढ़ने के बाद अध्यापिकाजी ने एक छात्रा से कहा, ‘‘सलमा, खड़ी हो जाओ, तुम्हें मुख्याध्यापिकाजी से उन के कार्यालय में अभी मिलना है. तुम जा सकती हो.’’
सलमा का दिल धड़क उठा, ‘मुख्याध्यापिका ने मुझे क्यों बुलाया है? बहुत सख्त औरत है वह. लड़कियों के प्रति कभी भी नरम नहीं रही. बड़ी नकचढ़ी और मुंहफट है. जरूर कोई गंभीर बात है. वह जिसे तलब करती है, उस की शामत आई ही समझो.’
‘तब? कल दोपहर बाद मैं क्लास में नहीं थी, क्या उसे पता लग गया? कक्षाध्यापिका ने शिकायत कर दी होगी. मगर वह भी तो कल आकस्मिक छुट्टी पर थीं. फिर?’
सामने खड़ी सलमा को मुख्या- ध्यापिका ने गरदन उठा कर देखा. फिर चश्मा उतार कर उसे साड़ी के पल्लू से पोंछा और मेज पर बिछे शीशे पर रख दिया.
‘‘हूं, तुम कल कहां थीं? मेरा मतलब है कल दोपहर के बाद?’’ इस सवाल के साथ ही मुख्याध्यापिका का चेहरा तमतमा गया. बिना चश्मे के हमेशा लाल रहने वाली आंखें और लाल हो गईं. वह चश्मा लगा कर फिर से गुर्राईं, ‘‘बोलो, कहां थीं?’’
‘‘जी,’’ सलमा की घिग्घी बंध गई. वह चाह कर भी बोल न सकी.
‘‘तुम एक लड़के के साथ सिनेमा देखने गई थीं. कितने दिन हो गए
तुम्हें हमारी आंखों में यों धूल झोंकते हुए?’’
मुख्याध्यापिका ने कुरसी पर पहलू बदल कर जो डांट पिलाई तो सलमा की आंखों में आंसू भर आए. उस का सिर झुक गया. उसे लगा कि उस की टांगें बुरी तरह कांप रही हैं.