जाए? आप की मंडली में तो सभी संपन्न घरों से आती हैं. जो चढ़ावा आता है और जो कुछ आप ने प्रसाद के लिए सोचा है, सब मिला कर किसी झोपड़पट्टी के बच्चों को दूधफल खिलाने के काम आ जाएगा.’’
‘‘कैसी बात करती हो, पाखी? तुम खुद तो अधर्मी हो ही, हमें भी अपने पाप की राह पर चलने को कह रही हो. अरे, धर्म से उलझा नहीं करते. अभी सुनी नहीं तुम ने मेरी भाभी वाली बात? हाय जिज्जी, यह कैसी बहू लिखी थी आप के नाम,’’ रानी चाची ने पाखी के सुझाव को एक अलग ही जामा पहना दिया. उन के जोरजोर से बोलने के कारण आसपास घूम रहा संबल भी वहीं आ गया, ‘‘क्या हो गया, चाचीजी?’’
‘‘होना क्या है, अपनी पत्नी को समझा, अपने परिवार के रीतिरिवाज सिखा. आज के दिन तो कम से कम ऐसी बात न करे,’’ रानी के कहते ही संबल ने आव देखा न ताव, पाखी की बांह पकड़ उसे घर के अंदर ले गया.
‘‘देखो पाखी, मैं जानता हूं कि तुम पूजाधर्म को ढकोसला मानती हो, पर हम नहीं मानते. हम संस्कारी लोग हैं. अगर तुम्हें यहां इतना ही बुरा लगता है तो अपना अलग रास्ता चुन सकती हो. पर यदि तुम यहां रहना चाहती हो तो हमारी तरह रहना होगा,’’ संबल धाराप्रवाह बोलता गया.
वह अकसर बिदक जाया करता था. इसी कारण पाखी उस से धर्म के बारे में कोई बात नहीं किया करती थी. परंतु वह स्वयं को धार्मिक आडंबरों में भागीदार नहीं बना पाती थी. इस समय उस ने चुप रहने में ही अपनी और परिवार की भलाई समझी. वह जान गईर् थी कि संबल को रस्में निभाने में दिलचस्पी थी, न कि रिश्ते निभाने में.