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आज के दिन के खर्च का हिसाब लगाया जाए तो आसानी से 15 हजार रुपए तक पहुंच जाएगा. ममता समाज को ऐसा ही वैभव दर्शन करवाने की कामना से हर नवरात्र पर 9 दिन अपने घर में कीर्तन रखवाया करतीं. रानी ने भी प्रसाद में अपनी ओर से लाए फल सजवा दिए. कीर्तन प्रारंभ होने पर आदतन रानी ने ढोलक और माइक अपनी ओर खींच लिए. न तो वे किसी और को ढोलक बजाने देतीं और न ही माइक पर भजन गाने का अवसर प्रदान करती. यह मानो उन का एकाधिकार था.

सारी गोष्ठी में रानी के स्वर और थाप गूंजते. उन के मुखमंडल का तेज देखने लायक होता, जैसा उन से महान भक्त इस संसार में दूसरा कोई नहीं. रानी का प्रभुत्वपूर्ण व्यवहार देख पाखी का मन प्रतिवाद करता कि यह कैसी पूजा है जहां आप स्वयं को अन्य से श्रेष्ठ माननेमनवाने में लीन हैं. मुख से गा रहे हैं, ‘तेरा सबकुछ यहीं रह जाएगा...’ और एक ढोलकमाइक का मोह नहीं छूटते बन रहा.

कम उम्र की महिलाएं रानी के चरणस्पर्श करतीं तो वे और भी मधुसिक्त हो झूमने लगतीं. कोई कहती, ‘देखो, कैसे भक्तिरस के खुमार में डूब रही हैं,’ तो कोई कहती कि इन पर माता आ गई है. यह सब देखते हुए पाखी अकसर विचलित हो उठती. उसे इन आडंबरों से पाखंड की बू आती है. वह अकसर स्वयं को अपने आसपास के परिवेश में मिसफिट पाती. कितनी बार उस के मनमस्तिष्क में यह द्वंद्व उफनता कि काश, उस की सोच भी अपने वातावरण के अनुरूप होती तो उस के लिए सामंजस्य बिठाना कितना सरल होता. यदि उस के विचार भी इन औरतों से मेल खाते, तो वह भी इन्हीं में समायोजित रहती.

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